पशु पक्षियों को ठण्ड व शीतलहर से बचाव के लिए जारी की गयी एडवाईज़री

बहराइच 29 नवम्बर। शीत ऋतु का प्रारम्भ हो गया है जिससे न्यूनतम तापमान नीचे आ गया है। इस अवस्था में उचित प्रबन्धन के माध्यम से मनुष्यों की भांति पशुओं को भी शीत ऋतु के प्रकोप से बचाना आवश्यक है। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. बलवन्त सिंह ने बताया है कि शीत लहर के कुप्रभाव से जहॉ पशुओं का दूध उत्पादन गिर जाता है वहीं बच्चों की वृद्धि भी रूक जाती है। उचित देख-रेख एवं प्रबन्धन न होने से ठंड के कारण बीमारी से प्रभावित होने पर वाले पशु की मृत्यु भी हो जाती है। पशुओं से सम्बन्धित किसी प्रकार की समस्या/असुविधा/जानकारी के लिये निदेशालय के पशुधन समस्या निवारण केन्द्र के टोल फ्री नम्बर 18001805141 पर सम्पर्क करें।
पशुओं एवं पक्षियों को शीत लहर के प्रभाव से बचाने के लिए मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. बलवन्त सिंह ने एडवाईज़री जारी कर आमजन को सुझाव दिया है कि पशुओं/पक्षियों को आसमान के नीचे खुले स्थान में न बांधंे, बेहतर यह होगा कि पशुओं को घिरी जगह एवं छप्पर/शेड से ढके हुये स्थानों में रखंे। ऐसे स्थानों पर इस बात का विशेष ध्यान रखें कि रोशनदान, दरवाजों एवं खिड़कियों को टाट/बोरे से ढक दें, जिससे सीधी हवा का झोंका पशुओं के मुंह तक न पहुंचे। पशुओं के बाड़े़े में गोबर एवं मूत्र निकास की उचित व्यवस्था रखें ताकि मूत्र/जल के कारण जल भराव जैसी स्थिति न उत्पन्न होने पाये।
सीवीओ डॉ. सिंह ने पशुपालकों को यह भी सुझाव दिया है कि पशु/पक्षियों केे बाड़े में नमी/सीलन का प्रकोप न होने पाये। बिछावन के लिए पुआल/लकड़ी बुरादा/गन्ने की खोई आदि का प्रयोग करें, और बिछावन को समय-समय पर बदलते भी रहंे। ऐसा प्रबन्ध करें कि देर तक पशुबाड़े को धूप मिलती रहे। शीत ऋतु में पशुओं को ताज़ा पानी ही पिलायें। डॉ. सिंह ने बताया कि पशुओं को जूट के बोरे का झूल पहनायें, झूल खिसके नहीं इसके लिए झूल को अच्छी तरह से बांध दें। 
पशुओं एवं पक्षियों को शीत लहर के प्रभाव से बचाने के लिए पशुबाड़े के अन्दर या बाहर अलाव जलायें परन्तु इस बात का विशेष ध्यान रखें, कि अलाव पशुओं/बच्चों की पहुंच से दूर रहे। बेहतर होगा कि पशुओं को अलाव से दूर रखने के लिए पशु के गले में रस्सी छोटी बांधें ताकि पशु अलाव तक न पहुंच सकें। बाड़े में अलाव जलाने पर गैस बाहर निकलने के लिये रोशनदान अवश्य खोल दें। पशुओं को संतुलित आहार दें। आहार में खली, दाना, चोकर की मात्रा को बढ़ा दें। धूप निकलने पर पशु को अवश्य ही बाहर खुले स्थान पर धूप में खड़ा करें। नवजात बच्चों को खीस (कोलस्ट्रम) अवश्य पिलायें, इससे बीमारी से लड़ने की क्षमता में वृद्धि होती है।
मुख्य पशु चिकित्साधिकारी ने पशुपालकों को यह भी सुझाव दिया है कि प्रसव के बाद मां को ठण्डा पानी न पिलाकर, गुनगुना पानी अजवाइन मिलाकर पिलायें। शीत ऋतु में भेड़ बकरियों में पी.पी.आर. बीमारी फैलने की संभावना के मद्देनज़र बचाव का टीका अवश्य लगवायें। चूज़ा/मुर्गी के घरों में उचित तापमान हेतु मानक के अनुसार व्यवस्था करें और तापमान गिरने से रोकने के प्रयास किये जायें। ठण्ड/शीत के मौसम में गर्भित पशु का विशेष ध्यान रखें एवं प्रसव के दौरान जच्चा-बच्चा को ढ़के हुये स्थान में बिछावन पर ही रखकर बचाव करें। 
ठण्ड से प्रभावित पशु के शरीर में कपकपी, बुखार के लक्षण दिखायी देते ही तत्काल निकटवर्ती पशु चिकित्सक को दिखायें, और उनसे प्राप्त परामर्श का पूर्ण रूपेण पालन करें। आपदा से पशु की मृत्यु होने पर राहत राशि प्राप्त करने के लिये राजस्व विभाग से सम्पर्क करें। डॉ. सिंह ने जनपद के समस्त पशु चिकित्साधिकारियों को निर्देशित किया है कि जारी की गयी एडवाईज़री का प्रचार-प्रसार करायें ताकि जिले के पशुपालक आर्थिक क्षति से बच सकें।
                              

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