असगरली उतरौला बलरामपुर की रिपोर्ट

नवरात्रि पर्व‌ पर विशेष- उतरौला (बलरामपुर) उतरौला नगर के बीचों-बीच स्थित मां ज्वाला देवी का शक्तिपीठ है जो सदियों से मां ज्वाला महारानी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता यह है कि मां पाटेश्वरी देवी का कुछ अंश उतरौला की धरती पर गिरा जिसे मां ज्वाला देवी कहा जाता है। यहां चैत मास के नवरात्र में हजारों श्रद्धालु हलुवा प्रसाद खप्पर का चढ़ावा चढ़ा कर श्रद्धा भाव से पूजन अर्चन करके मां ज्वाला देवी का दर्शन करते हैं।
         पौराणिक आख्यान है कि जब भगवान शिव की पत्नी सती बिना निमंत्रण के अपने पिता दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ में आकर अपमानित हु‌ईं तो वह योगनि के आश्रम से जल गईं इस कारण सती के साथ गये शंकर जी के गणों ने दक्ष के यज्ञ को विध्वंस कर दिया।जब यह जानकारी शंकर जी को मिली तो उन्होंने अपने प्रमुख गण वीरभद्र को भेजा जिसने दक्ष का सिर काट लिया।कुध्र शंकर सती के पार्थिव शरीर को लेकर तांडव नृत्य करने लगे और चौदहों भुवन तथा तीनों लोक में घूमने लगे। इस स्थिति को देखकर भगवान विष्णु चिन्तित हुए उन्होंने सोचा कि यदि शंकर स्थिर न हुए तो यह सृष्टि भी स्थिर न रह जायेगी।तब भगवान विष्णु ने अपनी माया से सती के शव को खंड खंड करके गिराना शुरू किया सती के अंग के 51भाग जहां जहां गिरे यही 51शक्तिपीठ कहलाये। देवी पाटन में उनका दसी का कुछ अंश उतरौला की धरती पर गिरा जो पूर्वज बताते हैं कि जिसे मां ज्वाला देवी कहा जाता है। मां ज्वाला देवी के प्रसिद्धि को देखते हुए सोलहवीं शताब्दी में एक छोटे-से शिवाला के रूप में पूजन पाठ होता रहा है।तद्पश्चात नगर के प्रसिद्ध व्यापारी ननकू राम बैजनाथ सर्राफ व नगरवासियों के सहयोग से मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया । मान्यता यह है कि चबूतरे के नीचे पाताल तक सुरंग है जिसका पता आज तक नहीं लग सका है। मां ज्वाला देवी की ज्यों ज्यों ख्याति बढ़ती गई श्रध्दालु श्रद्धा भाव से प्रत्येक सोमवार व शुक्रवार  को कड़ाह, प्रसाद,खप्पर का चढ़ावा चढ़ाते आ रहे हैं।श्रध्दालु शादी विवाह मुंडन आदि अन्य शुभ कार्य करने से पूर्व ही मां ज्वाला देवी का दर्शन व मत्था टेक कर ही शुभारंभ करते हैं। प्रत्येक चैत्र मास व शारदीय नवरात्र में परंपरागत ढंग से पूजन अर्चन किया जाता है।

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