विद्यालयों में स्वच्छता अभियान, कितना सच कितना झूठ

आंगनबाड़ी केंद्र पर नौनिहालों को नहीं मिल रहा मध्यान भोजन

            गिरजा शंकर गुप्ता ब्यूरों
अंबेडकरनगर। प्रधानमंत्री के सपने स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत के प्रति जिम्मेदार अफसर ही जागरूक नहीं हुए। वह केवल औपचारिकता भर निभाते ही सीमित रहे। इसका जीता जागता प्रमाण तहसील क्षेत्र का सददरपुर प्राइमरी स्कूल है। जहां पर स्कूल परिसर के अन्दर चारों तरफ गंदगी का ढे़र लगा हुआ। बच्चे बदबूदार माहौल में शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर है। इस तरह तरह से जनपद में न जाने कितने स्कूल है जहां पर साफ-सफाई को लेकर तनिक भी शिक्षा विभाग व स्थानीय प्रशासन गंभीर नहीं दिख रहा है।
स्वच्छता अभियान कितना सच कितना झूठ इसे जानने के लिये मीडिया ने सोमवार को अकबरपुर विकास खंड के *प्राइमरी विद्यालय सददरपुर अंदर नगर पालिका परिषद अकबरपुर* की पड़ताल की। विद्यालय में शौचालयों की दशा बेहद खराब है।शौचालय के चारो तरफ झाड़ उग आए हैं। जिससे शौचालय इस्तेमाल लायक नहीं हैं।इस विद्यालय में स्वच्छता व्यवस्था दयनीय है। इस विद्यालय के छात्र आज भी विद्यालय के किनारे खुले में शौच के लिए जाने को विवश हैं। विद्यालय परिसर में बने शौचालय में ताला लगा है। शौचालय के बगल उगी बड़ी-बड़ी घास फूस के चलते कोई शौचालय तक पहुंच नही सकता।
यहां के प्रभारी प्रधानाध्यापिक राधा सिंह का कहना है कि सफाई कर्मी के न आने से यह स्थिति उत्पन्न हुई है। इसकी शिकायत भी शिक्षाधिकारी से की जा चुकी है।किंतु कोई सुनवाई नहीं हुई।जिसके चलते स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को भारी दिक्कत झेलनी पड़ रही है। इस समस्या को लेकर न तो शिक्षा विभाग और न ही प्रशासन गंभीर दिख रहा है। ऐसे में स्कूल में आने वाले बच्चे दुर्गध भरे माहौल में शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर हैं। स्कूल परिसर में गंदगी से संक्रामक रोगों के फैलने का खतरा अलग से उत्पन्न हो गया है। यह तो एक बनागी भर है, शहर में ऐसे तमाम स्कूल हैं जहां पर साफ-सफाई की कोई व्यवस्था नही है। इस तरह की अनदेखी उन स्थानों पर की जा रही है जहां पर देश का भविष्य बैठकर शिक्षा ग्रहण करते है। ऐसे में अन्य स्थानों पर सफाई को लेकर अधिकारियों द्वारा कितना ध्यान दिया जाता है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है। केवल इतना ही नहीं स्वच्छता के प्रति आम नागरिकों के जागरूक होते ही अभियान की शुरुआत में फोटो खिंचवा कर वाहवाही लूटने वाले राजनीतिक और सामाजिक लोग भी अब खामोश हो गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को तभी साकार किया जा सकता है जब आम नागरिक के साथ सरकारी तंत्र भी जागरूक रहे।

जिले मेंं कुपोषण का कलंक मिटाने के लिए हर महीने करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद व्यवस्थाएं लचर बनी हुई है। जबकि 80 प्रतिशत आंगनबाड़ी केंद्र प्राथमिक विद्यालयों में ही चलते हैं और स्कूली बच्चों को मिड-डे मील दिया जाता है। परंतु कोरोना संक्रमण के बाद विद्यालय खुलने के पश्चात बच्चों को मिड डे मील मिलना बंद हो गया।आंगनबाड़ी केंद्र पर भोजन का वितरण भी नहीं हो पा रहा है। इससे केंद्र की व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं।

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