बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में दुर्गाकुंड मंदिर और अलईपुरा स्थित शैलपुत्री देवी के मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ी है। श्रद्धालु जय माता दी का उद्घोष करते हुए देवी के दरबार में मत्था टेक कर अपनी मुरादें पूरी करने के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।
शास्त्रीय मान्यता के अनुसार नवरात्र के प्रथम दिन नौ देवियों में से मां शैलपुत्री के दर्शन-पूजन का विधान है। नवरात्र में दुर्गा सप्तशती के अनुसार मां भगवती की पूजा-अर्चना से सुख व सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है। मां दुर्गा, काली, लक्ष्मी एवं सरस्वती की विशेष आराधना फलदायी मानी जाती है।ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान, ध्यान, पूजा अर्चना के पश्चात दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गंध व कुश लेकर भगवती की पूजा एवं व्रत का संकल्प लेना चाहिए। कलश स्थापना का अभिजीत मुहूर्त सुबह 11.36 से लेकर दोपहर 12.24 बजे तक है।
कलश स्वर्ण, रजत या मिट्टी का होना चाहिए। यह जल पूरित होना चाहिए, इस पर स्वास्तिक बना होना चाहिए, कलश के ऊपर कलावा या मौली बंधा होना चाहिए। पुष्प, नकद, चावल, रोली आदि छोड़ें। कलश को मां जगदंबा का स्वरूप मानकर पूजा की जाती है। मिट्टी में जौ के दाने बोए जाते हैं। मां जगदंबा को लाल चुनरी, गुड़हल की माला, नारियल, मेवा व मिष्ठान्न अर्पित किए जाते हैं।नवरात्र में व्रत की समाप्ति पर हवन कर निमंत्रित कन्याओं एवं बटुकों का पूर्ण आस्था व श्रद्धा भक्ति के साथ चरण धोकर पूजन करने के पश्चात भोजन करवाना चाहिए। सामर्थ्य के अनुसार नए वस्त्र, फल, मिष्ठान तथा द्रव्य देकर चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लें।
शास्त्रीय मान्यता के अनुसार नवरात्र के प्रथम दिन नौ देवियों में से मां शैलपुत्री के दर्शन-पूजन का विधान है। नवरात्र में दुर्गा सप्तशती के अनुसार मां भगवती की पूजा-अर्चना से सुख व सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है। मां दुर्गा, काली, लक्ष्मी एवं सरस्वती की विशेष आराधना फलदायी मानी जाती है।ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान, ध्यान, पूजा अर्चना के पश्चात दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गंध व कुश लेकर भगवती की पूजा एवं व्रत का संकल्प लेना चाहिए। कलश स्थापना का अभिजीत मुहूर्त सुबह 11.36 से लेकर दोपहर 12.24 बजे तक है।
कलश स्वर्ण, रजत या मिट्टी का होना चाहिए। यह जल पूरित होना चाहिए, इस पर स्वास्तिक बना होना चाहिए, कलश के ऊपर कलावा या मौली बंधा होना चाहिए। पुष्प, नकद, चावल, रोली आदि छोड़ें। कलश को मां जगदंबा का स्वरूप मानकर पूजा की जाती है। मिट्टी में जौ के दाने बोए जाते हैं। मां जगदंबा को लाल चुनरी, गुड़हल की माला, नारियल, मेवा व मिष्ठान्न अर्पित किए जाते हैं।नवरात्र में व्रत की समाप्ति पर हवन कर निमंत्रित कन्याओं एवं बटुकों का पूर्ण आस्था व श्रद्धा भक्ति के साथ चरण धोकर पूजन करने के पश्चात भोजन करवाना चाहिए। सामर्थ्य के अनुसार नए वस्त्र, फल, मिष्ठान तथा द्रव्य देकर चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लें।
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