अधूरा है हिंदी का सम्मान 


प्रत्येक स्वतंत्र देश के लिए स्वयं की एक भाषा होती है, जो उस देश का मान-सम्मान और गौरव होती है। भाषा और संस्कृति ही उस देश की असली पहचान होती है। भाषा ही एक ऐसा जरिया है जिसकी मदद से हम अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। विश्व में कई सारी भाषाएँ बोली जाती है जिसमें हिंदी भाषा का विशेष महत्व है। यह भाषा भारत में सबसे अधिक बोली जाती है और विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में दूसरा स्थान है। हिंदी सिर्फ एक भाषा का काम ही नहीं करती है, यह देश की संस्कृती, वेशभूषा, रहन सहन, पहचान आदि भी है। यह सभी लोगों को एक दूसरे को आपस में जोड़े रखने का काम भी करती है। हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसकी मदद से हर भारतीय आसानी से आपस में समझ सकते हैं। हिंदी सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में बोली जाने वाली भाषा है। इसका अध्ययन विदेशों में भी होता है और विश्व के कोने-कोने से लोग भारत सिर्फ हिंदी सिखने के लिए आते है। ऐसा माना जाता है कि देवभाषा संस्कृत का सरलतम रूप हिंदी भाषा ही है। हिंदी भाषा में संस्कृत के काफ़ी शब्दों का समावेश देखने को मिलता है।

भाषा समाज-द्वारा अर्जित सम्पत्ति भी है और धरोहर भी। भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर, सुनकर, लिखकर व पढ़कर अपने मन के भावों या विचारों का आदान-प्रदान करता है। दूसरे शब्दों में- जिसके द्वारा हम अपने भावों को लिखित अथवा कथित रूप से दूसरों को समझा सके और दूसरों के भावो को समझ सके उसे भाषा कहते है। सरल शब्दों में- सामान्यतः भाषा मनुष्य की सार्थक व्यक्त वाणी को कहते है।

पहले के समय में पूरे भारत का उतर भारत का पूरा भाग हिंदी भाषा का माना जाता था जिसमें मुख्य बिहार, उतरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि है। यहां पर अधिक जनसंख्या होने से हिंदी भाषा पूरे भारत में फैलती गई और धीरे-धीरे हिंदी भाषा पूरे भारत में लोकप्रिय होती गई। आज के समय में हिंदी भाषा वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना रही है। इसकी हर जगह पर सराहना हो रही है। आज के समय में हिंदी मुख्य रूप से भारत के सभी राज्यों में बोली जाती है इन राज्यों में मुख्य रूप से बिहार, उतरप्रदेश, मध्यप्रदेश, उतराखंड राजस्थान आदि आते है। राहुल सांकृत्यायन ने भी कहा है कि इस विशाल प्रदेश के हर भाग में शिक्षित-अशिक्षित, नागरिक और ग्रामीण सभी हिंदी को समझते हैं।

हिंदी भाषा भारत के अलावा नेपाल, दक्षिण अफ्रीका, मॉरीशस, अमेरिका, यमन, युगांडा, जर्मनी, न्यूजीलैंड, सिंगापुर आदि में भी बोलने वालों की संख्या लाखों में है। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, यूके, कनाडा और यूएई में भी हिंदी बोलने वाले और द्विभाषी या त्रिभाषी बोलने वालों की संख्या भी बहुत है। भवानीदयाल संन्यासी का मानना है कि अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई।

हिन्दी जिसके मानकीकृत रूप को मानक हिंदी कहा जाता है, विश्व की एक प्रमुख भाषा है। बहुत लोग मानते हैं कि हिंदी हमारी राष्टभाषा है, लेकिन वास्तव में हिंदी भारत की एक राजभाषा है और केन्द्रीय स्तर पर भारत में सह-आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। हिन्दी हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्दों का प्रयोग अधिक है और अरबी-फ़ारसी शब्द कम हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषा है और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा के बावजूद हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत के संविधान ने किसी भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया है। ऐसा तब है जब महात्मा गाँधी स्वयं मानते थे कि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है।

प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को हिंदी भाषा को सम्मान देने के लिए हिंदी दिवस मनाया जाता है। लेकिन जबतक हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित नहीं किया जाता, तबतक यह सम्मान अधूरा और झूठा है। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि मात्र पढने लिखने एवं बोलने की भाषा होने के अतिरिक्त हिंदी राष्ट्र की प्रतीक, राष्ट्रीय एकता, अंतर्राष्ट्रीय पहचान के रूप में भी भारत का सम्मान बढ़ा सकती हैं।

(राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह खुलेआम कहते थे कि जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। इसी तर्ज पर भारत के प्रथम राष्ट्रपति  देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसादजी का भी मानना था कि जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। जाहिर है हिंदी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओ में से एक है। 100 करोड़ जनता की बोली है, लेकिन विश्व का सबसे समृद्ध साहित्य एवं शब्दकोश वाली हिंदी अभी तक अपने ही वतन भारत में अपमानित हैं।


लेखक: पुनीत गोस्वामी (मीडिया सलाहकार उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद)

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