दिल्ली के चुनाव हो चुके है | 70 सीट के लिए 673 उम्मदीवारों के भाग्य’ का फैसला दिल्ली की 1.33 करोड़ मतदाताओं में से करीब 67 प्रतिशत ने मत देकर किया | चुनावों में खोखले वादों से जनता को लुभाने की कोशिश की गई | चुनाव के नतीजे जो भी आयेमुख्यमंत्री के सिंहासन पर किंग हो या क्विन ,उससे जनता को कोई लाभ होने वाली नहीं है | इस चुनाव में भी जीत उसी की होगी जो अभी तक जीतता आया है | इस चुनाव में जितेगा वहीजो दिल्ली और देश को लूटना चहता है, और हार उसकी होगीजो दो जून के रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है | सभी पर्टियां जनता को लूट कर उसमें से एक छोटा हिस्सा देकर जनता को बरगलाने में लगी हुई थी | जनता के हक को मार कर जनता को भीख दी जा रही थी और कौन कितना भीख देगा,  बताने की होड़ लगी हुई थी |

महिला सुरक्षा की बात तीनों पार्टियों (कांग्रेस,  बीजेपी और आप) ने बहुत जोर-शोर से की है - हम सी.सी. टीवी लगायेंगे महिला कमांडो बनायेंगे महिलाओं को बसों में सुरक्षा देंगे,  महिलाओं को सशक्त बनायेंगे आदि,  आदि | जब ये तीनों पार्टियों ने मिलकर 19 महिलाओं (भाजपा 8 आप 6,  कांग्रेस 5) को उम्मीदवार बनाया तो इनका महिला सशक्तिकरण का दावा खोखला नजर आया | दिल्ली में महिला उम्मीदवारों की संख्या 59 लाख से अधिक है,  लेकिन महिला सशक्तिकरण की बात करने वाली पार्टियों के पास योग्य महिला उम्मीदवार नहीं हैं | क्या महिलाओं को घरों में रखकर महिला सशक्तिकरण का नारा लगाया जायेगा ?  महिलाओं को 50 प्रतिशत 33 प्रतिशत या 15 प्रतिशत भी सीट नहीं दी गई | इस बार का गणतंत्र दिवस’ महिला सशक्तिकरण के तौर पर मनाया गया | महिला सशक्तिकरण की बात तो करेंगे लेकिन महिलाओं को संसद - विधानसभाओं में उनका प्रतिशत नहीं देंगे | यह कैसा महिला सशक्तिकरण है ?  हाल के दिनों में दिल्ली के अंदर कई महिलाओं की बलत्कार कर के हत्या की गई है और उनके अंगों को काट-काट कर फेका गया है - यहां महिलाओं की किस तरह की सुरक्षा दी जा रही है ?

दिल्ली की बस्तियों में 55-60 लाख लोग रहते हैं | इस वोट बैंक को अपनी तरफ आकर्षित करते हुए सभी पार्टियों ने जहां झुग्गी वहां मकान’ का नारा दिया | इन पार्टियों के पास सही में इन बस्तिवालों के लिए अपना कोई विजन नहीं है | उन्हें यह पता नहीं है कि जनता किस तरह की दिक्कतों में रह रही है,  उसको किस तरह से हल किया जायेगा | उनके पास इन बस्तिवालों के लिए कोई विजन दस्तावेज या चुनावी घोषणापत्र में नहीं है | महिलाएं खुले में सड़कों के किनारे शौच करती हैं बस्तियों में शौचालय नाममात्र के हैं | बस्तियों में गन्दगी फैली हुई है शिक्षा-स्वास्थ्य की कोई व्यवस्था नहीं है | अधिकांश बस्तियों में पीने के लिए पानी नहीं है,  लोगों को दूर-दूर जाकर पीने के लिए पानी की व्यवस्था करनी पड़ती है या घंटों टैंकरों को इंतजार करना पड़ता है, फिर कहीं जाकर पीने का पानी मिल पाता है | दिल्ली के 0.5 प्रतिशत (आधे प्रतिशत) जमीन पर झुग्गियों में करीब 55-60 लाख लोग रहते हैं | क्या जहां झुग्गी जहां मकान’ के नारे पर इतने लोगों के लिए इतनी ही जमीन मिलेगी ? क्या लोगों को ऐसे ही पिजड़े में रहने के लिये मजबूर किया जायेगा ? कॉलोनियों के नियमितीकरण  की बात की गई लेकिन उस नियमितीकरण में जो कानूनी दाव पेंच हैं उसको सरकार सुलझाना नहीं चाहती है | वह लोगों को मूंगेरी लाल के हसीन सपने दिखा रही है |

सभी पार्टियों ने अपने को साफ सुथरी छवि वाली बताईं | प्रधानमंत्री ने यहां तक कह डाला कि स्पेशल कोर्ट बनाये जायेंगे और दागीक्रिमनल लोगों को संसद विधान सभाओं से बाहर किया जायेगा। इसी तरह के दावे आप पार्टी और कांग्रेस भी करती रहीं कि वह दागियों भ्रष्टाचारियों को टिकट नहीं देंगे। चुनावों में ठीक इसका उल्टा हुआ | इस बार दिल्ली के 70 सीटों के लिए 673 उम्मीदवार थे,  जिनमें से 117 पर अपराधिक मामले दर्ज हैं और 74 उम्मीदवारों पर गंभीर मामले दर्ज हैं | आप पार्टी के 70 में से 14भाजपा के 68 में से 17 व कांग्रेस के 70 में से 11 उम्मीदवारों पर अपराधिक केस दर्ज हैं | साफ-सुथरी’  देश के भाग्य बदलने वाली’ इन पार्टियों ने जितने अपराधिक उम्मीदवारों को मैदान में उताराउसके आधे महिलाओं को भी अपनी-अपनी पार्टी का उम्मीदवार नहीं बनाया | क्या इसी तरह अपराधिक छवि वालो लोगों को टिकट देकर साफ-सुथरी राजनीति की जा सकती है ?  जनता जहां दो जून की रोटी के लिए संघर्ष कर रही है वहीं करोड़पति उम्मीदवारों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है | 2013 के विधान सभा चुनाव में 33 प्रतिशत करोड़पति उम्मीदवार थे वहीं इस बार के चुनाव में 34 प्रतिशत करोड़पति उम्मीदवार थे |

दिल्ली में खासकर तीनों पार्टियों के उम्मीदवारों ने साम-दाम-दण्ड-भेद का सहारा लिया | वोट के लिए दारूसाड़ी व पैसे बांटे गये | मुद्दों की बजाय व्यक्ति केन्द्रित चुनाव का प्रचार हुआ | सभी एक दूसरे पर कीचड़ उछालते रहे | प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया में करोड़ां रू. देकर प्रचार किया गया बड़े-बड़े होर्डिंग से दिल्ली को पाट दिया गया | चुपके से पार्टी फंड के नाम पर लाखों - करोड़ों में चंदा लिया गया | किसी ने चंदा बताया नहीं तो किसी ने अपनी वेबसाईट पर डालकर अपने को पाक-साफ दिखाने की कोशिश की | कोई अपने को भाग्यशाली बताया तो कोई अपने आप को ईमनदार बताने की कोशिश की | लेकिन एक बात पर सभी सहमत दिखे कि व्यापारियों (पूंजीपतियों) की सेवा करनी है,  उनके हितों पर आंच नहीं आने दी जायेगी | जो भी चुनावी वादे किये गये उसे पूरा कैसे किया जायेगाइस पर सभी पर्टियों का दृष्टिकोण एक था कि यह नहीं बताना है |

कोई भी पार्टी निजीकरण का विरोध नहीं कर रही थी | सभी पार्टियां उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण के नीतियों के समर्थक रही हैं जो कि जनता की बदहालीबेरोजगारी के लिए जिम्मेदार हैं | जनता को उन्हीं  नीतियों का समाना करना पड़ेगा जिससे कि बेकारी-लाचारी बढ़ेगी | जनता को उन्हीं पिजड़े में रहने पड़ेंगे जिस में वह रह रही हैउन्हीं ठेकेदारों कम्पनी मालिकों के रहमों करम पर जीना होगा,  जिन पर जी रही है | इसमें कोई बदलाव आने वाला नहीं है | महिलाओं को घरों के अन्दर ही रखकर सुरक्षा दी जायेगी | जीत किसी भी दल की होहार तो जनता की होकर रहेगी | झंडा बदल जायेगा डंडा बदल जायेगा लेकिन चाबूक वही रहेगी | जनता को अपने हक-अधिकारों के लिए लड़ना ही पड़ेगा |


This Article written by Mr Sunil Kumar and you may reach him on sk688751@gmail.com

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