बलरामपुर-बिरजू महाराज कथक संस्थान संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश व एम एल के पी जी कॉलेज बलरामपुर में चल रहे सातदिवसीय ग्रीष्मकालीन कथक नृत्य कार्यशाला के चौथे दिन गुरुवार को प्रतिभागियों को हस्तक के विभिन्न प्रकार के बारे में विधिवत जानकारी दी गई।
     गुरुवार को महाविद्यालय प्राचार्य प्रो0 जे पी पाण्डेय के निर्देशन एवं महाविद्यालय के एसोसिएट एन सी सी ऑफिसर व कार्यशाला संयोजक लेफ्टिनेंट डॉ देवेन्द्र कुमार चौहान के संयोजकत्व में कार्यशाला में प्रतिभागियों ने हस्तक के विभिन्न प्रकार की जानकारी प्राप्त की। कथक गुरु हर्षिता चौहान ने बताया कि कथक में हस्तकों की अपनी भाषा होती है, और हर हस्तक का एक विशेष अर्थ, आकार और विधि होती है. हस्तक नर्तक को एक कहानी बताने या किसी भाव को व्यक्त करने में मदद करते हैं। कथक नृत्य में हस्तकों को दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया गया है: असम्युक्त हस्त (एकल हस्त मुद्राएं) और संयुक्त हस्त (संयुक्त हस्त मुद्राएं). हस्तक, ताल और लय के साथ हाथ के संचालन को कहते हैं. ये विभिन्न प्रकार के हस्तक होते हैं, जिनमें से कुछ  प्रसिद्ध हैं: पताका, अपतका, त्रिकला, हस्तक चक्र और पुष्पक। उन्होंने कहा कि हस्तकों की भाषा को समझने के लिए, मानसिक और शारीरिक संतुलन होना जरूरी है. शुरुआती स्तर पर, हस्तकों के बारे में बताया जाता है, और धीरे-धीरे नर्तक इन मुद्राओं को समझने और उनका उपयोग करने में सक्षम हो जाते हैं। कार्यशाला में प्रतिभागी बड़ी ही मनोयोग से कथक की बारीकियों को समझने का प्रयास करते दिखे।
       इस अवसर पर डॉ वंदना सिंह सहित कई लोग मौजूद रहे।

        हिन्दी संवाद न्यूज से
          रिपोर्टर वी. संघर्ष
            बलरामपुर। 

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