*दिकु, अब लौट भी आओ*

तू दूर गई तो साँसें भी रूठ गई हैं,
आँखों की दुनिया वीरान होकर छूट गई हैं।
तेरे बिना ये दिल बेज़ार सा है,
हर लम्हा मेरा जैसे अंधकार सा है।

हवा से कहूँ या बादलों से बोलूँ,
तेरी यादों का किस्सा, मैं किस किस से तोलूँ?
राहों में बैठा तेरा इंतज़ार करता हूँ,
तू लौट आए, बस यही अरदास करता हूँ।

क्यों ख़ुद को रोक लिया है तूने?
अपने ही दिल को क्यों बाँध लिया है तूने?
हर धड़कन में गूँजती है जो मेरी सदा,
क्या उसे भी मिटा देगी तू एक दफ़ा?

ना शिकवा कोई, ना ही कोई गिला है,
बस एक चाहत—
तू अगर लौट आए, तो सारा जहाँ मिला है।

तेरे बिना ये दुनिया अधूरी लगती है,
हर लफ़्ज़ में जैसे मेरी मजबूरी बसती है।

दिकु, अब और ना सज़ा दे मुझे,
बस एक बार अपने पास बुला ले मुझे।
तेरी बाहों में ही मेरा जहाँ है,
तेरे बिना ये जीवन जैसे ज़हर बना है।
तेरे बिना ये जीवन जैसे ज़हर बना है।

*प्रेम का इंतज़ार अपनी दिकु के लिए...*

प्रेम ठक्कर "दिकुप्रेमी"
9023864367
सूरत, गुजरात

Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने