उतरौला बलरामपुर शासन ने लाखों रुपये खर्च कर विकसित माडल तालाब अपनी रंगत को खो चुके हैं। आज हालत यह है कि माहअप्रैल की शुरूआते ही गर्मी के दिनों में तालाबों की मिट्टी धूल बनकर उड़ रही है।
 प्यास बुझाने के लिए पशु-पक्षियों को इधर उधर भटकना पड़ रहा है। चुनावी ड्यूटी में व्यस्त प्रशासनिक अधिकारियों का दावा है कि जल्द से जल्द ही तालाबों में पानी भराया जाएगा, हालांकि यह दावा कब पूरा होगा यह स्पष्ट नहीं है।
उतरौला तहसील में सैकड़ों सामान्य और माडल तालाब हैं। कुछ गिने-चुने तालाबों में भले ही पानी दिखे जा रहे हैं। लेकिन हकीकत में अधिकतर तालाब सूखे पड़े हैं। जिन तालाबों में पानी की लहरें उठनीं चाहिए, वहां धूल बनकर उड़ रहे है। पखवारे भर पूर्व मुख्य नहर में पानी तो छोड़ा गया, लेकिन माइनरें अब भी सूखी पड़ी हैं। तालाब, पोखरा और माइनर सूखी होने की वजह सेपशु-पक्षियों के सामने विकट की समस्या उत्पन्न हो गई है। तपती धूप में बदन झुलसने और गला सूखने पर जब पशु-पक्षी तालाबों की तरफ़ अपना रुख करते हैं तो सूखे पड़े तालाब देख मायूस होते हैं। इस गंभीर समस्या से पशुपालकों को भी काफी जूझना पड़ रहा है। पशुपालक अपने जानवरों की प्यास बुझाने के लिए हैंड पंप का सहारा ले रहे हैं। पशुपालकों के मुताबिक बेजुबान मवेशी यह तो बता नहीं सकते कि उन्हें प्यास लगी है। हम हैंडपंप से उन्हें कितनी बार पानी पिलाएंगे। 
अप्रैल का पहला आखरी पखवारा चल रहा है, लेकिन प्रशासन इससे बे खबर है। मनरेगा से खुदे तालाबों को संरक्षित एवं सुरक्षित रखने की मुहिम भी कागजों तक ही सीमित है।
असगर अली 
उतरौला 

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