राजकुमार गुप्ता 
मथुरा। भारतीय किसान यूनियन चढूनी के मंडल अध्यक्ष रामवीर सिंह तोमर ने केंद्र सरकार से चौधरी चरण को भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग की है। भाकियू चढूनी के डा सतीश चन्द्र, प्रेम सिंह सिकरवार, कुंतभोज रावत, राधेश्याम सिकरवार, प्रताप सिंह प्रधान आदि ने सवाल उठाया है कि किसानों और खेतीहर मजदूरों के सच्चे हमदर्द, उनके हक और अधिकारों के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पूर्व प्रधान मंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से कब नवाजा जाएगा? किसान नेता एवं सामाजिक कार्यकर्ता श्री तोमर ने कहा कि उनके निधन के बाद से ही लगातार यह सवाल उठ रहा है। लेकिन किसी सरकार ने इस दिशा में पहल नहीं की। जबकि इस दौरान वे भी सरकार में आए, जो चौधरी चरण सिंह की  राजनेतिक नर्सरी से निकल कर ऊंचाइयों पर पहुंचे। चौधरी साहब का जीवन ईमानदारी और बेहद सादगी पूर्ण था। वह अनुशासित ढंग से चलने वाले व्यक्तित्व के धनी थे। वकालत जैसे व्यावसायिक पेशे में भी चौधरी चरण सिंह उन्हीं मुकदमों को स्वीकार करते थे, जिनमें मुवक्किल का पक्ष न्यायपूर्ण होता था। कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन 1929 में पूर्ण स्वराज्य उद्घोष से प्रभावित होकर युवा चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया। 1930 में महात्मा गाँधी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन के तहत नमक कानून तोडने का आह्वान किया गया। गाँधी जी ने ‘‘डांडी मार्च‘‘ किया। आजादी के दीवाने चरण सिंह ने गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिण्डन नदी पर नमक बनाया। परिणामस्वरूप चरण सिंह को 6 माह की सजा हुई। जेल से वापसी के बाद चरण सिंह ने महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में स्वयं को पूरी तरह से स्वतन्त्रता संग्राम में समर्पित कर दिया। 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी चरण सिंह गिरफतार हुए। फिर अक्टूबर 1941 में मुक्त किये गये। सारे देश में उस समय असंतोष व्याप्त था। महात्मा गाँधी ने करो या मरो का आह्वान किया। अंग्रेजों भारत छोड़ो की आवाज सारे भारत में गूंजने लगी। 9 अगस्त 1942 को अगस्त क्रांति के माहौल में युवा चरण सिंह ने भूमिगत होकर गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, मवाना, सरथना,  बुलन्दशहर के गाँवों में गुप्त क्रांतिकारी संगठन तैयार किया। मेरठ कमिश्नरी में  चरण सिंह ने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर अंग्रेज़ी हुकूमत को बार-बार चुनौती दी। मेरठ प्रशासन ने चरण सिंह को देखते ही गोली मारने का आदेश दे रखा था। एक तरफ पुलिस चरण सिंह की टोह लेती थी, वहीं दूसरी तरफ युवक चरण सिंह जनता के बीच सभाएं करके निकल जाता था। आखिरकार पुलिस ने एक दिन चरण सिंह को गिरफ्तार कर ही लिया। राजबन्दी के रूप में डेढ़ वर्ष की सजा हुई। जेल में ही चौधरी चरण सिंह की लिखित पुस्तक ‘‘शिष्टाचार‘‘, भारतीय संस्कृति और समाज के शिष्टाचार के नियमों का एक बहुमूल्य दस्तावेज है। उनकी राजनेतिक विरासत कई जगह बंटी। उड़ीसा में बीजू जनता दल हो या बिहार में राष्ट्रीय जनता दल हो या जनता दल यूनाइटेड या ओमप्रकाश चौटाला का लोक दल , अजीत सिंह का ऱाष्ट्रीय लोक दल हो या मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी होंl। उनके द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था। एक जुलाई 1952 को यूपी में उनके बदौलत जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को अधिकार मिला। उन्होंने लेखापाल के पद का सृजन भी किया। किसानों के हित में उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया।  चौधरी साहब साहब ही थे जिन्होंने  सहकारी खेती का विरोध, कृषि कर्ज माफी, कृषि को आयकर से बाहर रखने, किसानों को जोत बही दिलाने, नहर पटरी पर चलने पर जुर्माना वसूलने का ब्रिटिश कानून खत्म करने, कृषि उपज की अंतरराज्यीय आवाजाही पर रोक हटाने और कपड़ा मिलों को 20 प्रतिशत कपड़ा गरीबों लिए बनवाने जैसे शानदार काम किए। चौधरी साहब उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्य्मंत्री रहे। उसके बाद वो केन्द्र सरकार में गृहमंत्री बने तो उन्होंने मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। 1979 में वित्त मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक "नाबार्ड" की स्थापना की। 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस के सहयोग से प्रधानमंत्री बने। बाद में कांग्रेस की ओर से कुछ ऐसी शर्तें रखी गईं जिनको चौधरी साहब ने मानने से साफ इनकार कर दिया, इसलिए लोकसभा में सिंह के बहुमत की पुष्टि करने से ठीक पहले कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया। उन्होंने 20 अगस्त 1979 को प्रधान मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

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