कूटनीति एवं राजनीति : अंधेरी सुरंग - अनुज अग्रवाल
भारत अब अगले एक वर्ष तक G -20 समूह का अध्यक्ष है। दुनिया के अकेले प्रभावी वैश्विक संगठन जो की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का समूह है, का अध्यक्ष होना निश्चित ही हर भारतवासी के लिए गर्व व उपलब्धि की बात है। मगर जिन अनिश्चित व बिगड़ी हुई  वैश्विक परिस्थितियों के बीच भारत G20  समूह का अध्यक्ष बना है वे एक चुनौती की तरह हैं। दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर है। नई विश्व व्यवस्था के लिए संघर्ष तीव्र होते जा रहे हैं। अमेरिका - चीन विश्व युद्ध व रुस - यूक्रेन युद्ध अब सीधा सीधा चीन - नाटो व्यापार युद्ध व रूस - नाटो युद्ध में बदलता जा रहा है। कोविड के बाद के झटकों से दुनिया उबर नहीं पा रही है कि अब उसकी नई लहर फिर से उभर रही है। पोस्ट कोविड बीमारियां व वैक्सीन के दुष्प्रभाव से हो रही मौतें हर  जगह क़हर बरपा रही हैं तो अनेक नई बीमारियाँ हमारे दरवाज़े पर दस्तक दे रही हैं। उस पर मेडिकल माफिया नित अपने खेल खेल हो रहा है। इनके बीच टूटी सप्लाई चेन , अत्यधिक मुद्रास्फीति, व्यापक आर्थिक मंदी व बेरोजगारी  मुँह बाये सामने खड़े हैं। सभी बड़ी कंपनियों में छंटनी प्रारंभ हो चुकी है। इन सबके ऊपर जलवायु परिवर्तन की भयावह समस्या से पूरी पृथ्वी घिर चुकी है। दुनिया का जितना जीडीपी प्रतिवर्ष बढ़ता है, उससे कई गुना अब जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव निगल रहे हैं। सूखे और बाढ़ की बढ़ती निरंतरता से खाद्य संकट दिनों दिन विकराल होता जा रहा है। 
पिछले कुछ दिनों में इंडोनेशिया के बाली में G - 20 का शिखर सम्मेलन और मिश्र के शर्म -अल - शेख में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र का कॉप -27 सम्मेलन आयोजित हुआ। दुनिया को उम्मीद थी कि अंततः मानवता जिन चुनौतियों व समस्याओं से जूझ रही है उनका कोई निदान इन सम्मेलनों से निकल पाएगा और दुनिया राहत की साँस ले पाएगी। किंतु ऐसा कुछ भी नहीं हो सका। दुनिया अधिक बिखरी हुई , अराजक व सन्नाटे में है। जनता की उम्मीदों को अधर में लटका कर , झूठे वादे कर बिना किसी बड़ी कार्ययोजना दिए दुनिया के मठाधीश वि विशेषज्ञ हाथ झाड़ चलते बने। अंधाधुंध संसाधनों के दोहन कर विकास व बाज़ार अर्थव्यवस्था के जिस रास्ते पर दुनिया को पिछली  तीन चार शताब्दियों में धकेला गया उसने प्रकृति को लील लिया है। हमारा अस्तित्व ही दांव पर लगा है किंतु कोई इस होड़ व दौड़ से निकलने को तैयार नहीं। तमाम दावों, वादों वि उपायो के बाद भी पिछले एक वर्ष में ही दुनिया में कुल कार्बन उत्सर्जन 2% बढ़ गया है और कोई भी सरकार व नीति निर्माता न तो बदलने को तैयार हैं और न ही अपनी गलती मान सुधरने को। इन भयावह परिस्थितियों में भारत सरकार व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कंधों पर यह गुरुतर दायित्व है कि वे दुनिया के राजनेताओं व सरकारों को सही दिशा में चलने के लिए तैयार करे। फिलहाल तो रूस ने यूक्रेन व यूरोप की ऊर्जा आपूर्ति बाधित कर दी है और भयंकर ठंड में प्रतिदिन न जाने कितने लोगों की जानें जा रही हैं। यूक्रेन पर रूसी आक्रमणों की तीव्रता भी बढ़ गई है और राष्ट्रपति पुतिन अब बीस लाख सैनिकों की नई फ़ौज बना पूरे यूरोप को घेरने की तैयारियों में हैं। उधर तुर्की ने सीरिया व इराक पर हमले बढ़ा दिए हैं तो उत्तरी कोरिया लगातार कांटिनेंटल मिसाइलो के परीक्षण कर रहा है । दर्जनों छोटे मोटे युद्ध वि झड़प भी पूरी दुनिया में चल ही रहे हैं। मध्यावधि चुनावों में हार के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन और कोविड प्रतिबंधों के खिलाफ प्रदर्शनों से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग बैकफुट पर हैं और आंतरिक मोर्चे पर अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कई वार फ़्रंट खोल सकते हैं। ये सब संभावित विश्व युद्ध के पूर्व की स्थितिया हैं व दुनिया कभी भी एक लंबी व अनिश्चित लड़ाई की ओर धकेली जा सकती है।
   इन परिस्थितियों के बीच भारत हिमाचल व गुजरात के विधानसभा  एवं दिल्ली के नगर निगम चुनावों से दो चार है।हर राजनीतिक दल पैसे लेकर  टिकट बेचने के आरोपों से घिरा है। विधायकी हो या पार्षद रेट दो से तीन करोड़ का है। लोकसभा के टिकट का रेट पाँच - सात करोड़ तो राज्यसभा के लिए पचास से डेढ़ सौ करोड़ तक पहुँच गया है। विधायकों के पाला बदलने का रेट बीस से पचास करोड़ के बीच है।हर राजनीतिक दल के चुनावों के खर्च हज़ारो करोड़ रुपयों के हैं और अधिकांश काले धन से ही होते हैं। जमीनी स्तर पर बीजेपी हिमाचल वि गुजरात दोनों में ही आगे दिख रही है और एमसीडी में भी अब आप से बराबर की टक्कर में आ गई है किंतु जब तक कोई भी दल लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं वि आदर्शों के बिना जीत भी जाये , जनता को क्या फर्क पड़ता है। समाज में कट्टरता, व्यभिचार , आक्रामकता, स्वार्थ व हिंसा बढ़ती ही जा रही है। यही हाल हर राज्य में सरकारी भर्तियों का है।सभी राज्यों में अधिकांश भर्तियां शक व जांच के दायरे में हैं। केंद्र की सीधी भर्तियों का भी यही हाल है। जिसको जहाँ अवसर मिल रहा है वो लूट रहा है।न्यायपालिका अपनी सामंती सोच से निकल नहीं रही।  नौकरशाही भी अधिक भ्रष्ट हो गई है व सरकारी काम में कमीशन के रेट भी बढ़ गए हैं। न जाने कितने छापे सरकारी जांच एजेंसियां रोज मार रही हैं व टैक्स चोरी , ड्रग्स, स्मगलिंग, फर्जी इनवॉइस, अंडर बिलिंग , आतंकी फंडिंग, फ्रॉड , बैंक के कर्ज के ग़बन , नेटवर्क मार्केटिंग वि फर्जी कॉल सेंटर के माध्यम से लूट, डार्क नेट के खेल , सट्टा, पोर्न , फर्जी डिग्री, अवैध हथियारों और न जाने क्या क्या मामले सामने आ रहे हैं किंतु उससे कई गुना और बढ़ जाते हैं। जो सरकारी कर्मचारी इन जाँचो में शामिल रहते हैं उन पर भी छापे मारे जाने चाहिए क्योंकि वे मांडवाली कर मामलों को रफ़ा दफ़ा भी कर देते हैं। राज्य हो या केंद्र ऐसे मामलों में ऊपर से फ़ोन व दबाव आना अब सामान्य बात हो गई है। बिना बड़े लेनदेन के तो ये फ़ोन व दबाव संभव नहीं। यह कैसा सुशासन है ? यह कौन सा विश्व गुरु भारत है? सच तो यही है हम हर मोर्चे पर अंधेरी सुरंग में हैं चाहे वो राजनीति हो या फिर कूटनीति। 
अनुज अग्रवाल ,संपादक,डायलॉग इंडिया

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