क्या बेटी एक अभिशाप है ,
उसका जीवन श्राप  है ।
जिस माँ ने  है जन्म दिया 
उसी ने  दुर्व्यवहार किया,
मैंने माँ का हाथ बटाया
उनके संग में काम कराया  
लेकिन प्यार,
   "भैया के हिस्से आया "

पापा ने घर से विदा किया 
अपनो से  क्यों फिर जुदा किया 
भैया को अपनाया  था 
   मुझे क्यों घर से विदा किया 
जहाँ अनजानों को पाया था
मन मेरा बहुत घबराया था,
रहने लगी मैं सहमी डरी

  ससुराल मे मिली सास खरी 
मैंने सासू के  पैरों छुआ 
सासू ने आशीष दिया ,
बहू तुम सदा सुखी रहो 
तुम्हारे गर्भ से बेटा हो 
 
   सासू भी बेटी मैं भी बेटी 
फिर क्यों आशीर्वाद बेटे का देती  
फिर मुझे और  कुछ ना सूझा 
मैंने  सासु से यह पूछा,माँ
क्यों बेटी एक श्राप है 
 क्या उसका जीवन पाप है ।  

ईश्वर भी जिसे पाने के ख़ातिर खूब रोता है 
नई सृष्टि का निर्माण जिसके द्वारा होता । ये फूलो की महकती खुशबुएँ कहती हैं जमाने से ,
जहाँ पर बेटियां होती वही संसार होता है।
 उस पर क्यों होता है       अत्याचार,
कोई क्यों नहीं करता हमसे प्यार।

प्रियंका द्विवेदी
मंझनपुर कौशाम्बी

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