पिछले सप्ताह हुई तमाम घटनाओ में एक बड़ी बात जिसने व्यापारिक समुदाय का ध्यानाकर्षण किया वह है दुनिया की
सबसे बड़ी आईटी कम्पनी गूगल का भारतमें १० अरब डालर का निवेश करने का प्लान. इतनी
भारी भरकम का निवेश कहाँ होगा किन कम्पनियों में होगा किन शर्तो पर होगा यह सब तो
बाद में पता चलेगा परन्तु हम लोगो के लिए इस समय जब पूरी दुनिया में अर्थव्यस्था धीमी
हो गयी हो और अनिश्चित्ता काफी बढ़ गयी हो
तो इस समाचार से राहत मिलना स्वाभाविक है . सरकार की भी हिम्मत बढ़ गयी है और
सरकारी नीतियों की प्रशंसा करने के लिए भी एक मुद्दा मिल गया है .
लेकिन क्या जब इसी तरह पिछले कुछ वर्षो से अलीबाबा और दूसरी चीनी कम्पनियों से आ रहा था तो भी ख़ुशी इतनी ही थी और तारीफ के
मुद्दे भी यही थे. मोदी सरकार के आने के बाद चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग के भारत
के कई दौरे हुए. अलग अलग मौको पर जब भी
प्रधान मंत्री मोदी की मुलाकात चीन
के राष्ट्रपति से हुई तो हर बार कुछ न कुछ अच्छे होने की सम्भवनाये भी बनी और हुआ
भी. चीन को तमाम देश की अनेक परियोजनायो के ठेके सद्भावना पूर्ण वातावरण बनने के बाद ही
मिले. चीनी कम्पनियों के मुकाबले में जो भारतीय
कम्पनिया खड़ी होने का प्रयास कर रही थी उनको रोकने के लिए ठेके की शर्तो में
परिवर्तन भी किये गए. लेकिन पिछले ५-६ महीनो से विशेष रूप से करोना के फैलने के
बाद से चीन के लिए भारत सरकार का मन बदल गया है. और अब
चीनी हिंदी भाई भाई न रहे . चीन के बोद्ध धर्म का अनुयायी होने के बावजूद चीन आखो का तारा नहीं रहा. हालाँकि जब कभी चीन के
साथ संबंधो की बात होती है तो इस बात का विशेष जिक्र दोनों ही देश करते रहते है .
अभी हाल में घटी एक घटना ने भारत के सम्बन्ध चीन से इस कदर ख़राब कर दिए की अब
चीन की हर बात हमें चाल लग रही है. चीन की नीतियों और सामान का विरोध सब जगह हो रहा है. चीन
से आयात कम करने के साधन ढूंढे जा रहे है. चीन के ठेके रद्द किये जा रहे है.
हालाकिं यह सब कुछ वैसा नहीं है जैसा दिख रहा है. फिर भी पूरी कोशिश है की चीन के
ऊपर जहाँ तक सम्भव है निर्भरता कम हो जाये. यानी सारी परिस्थितयां एक घटना से बदल
गयी.
करोना वायरस दुनिया में चीन से फैला है इस विश्वास के कारण अमेरिका चीन से
बेहद नाराज है. ऐसा करके चीन ने अमेरिका की अर्थव्यस्था को बड़ी चोट पहुचाई है. इससे भी बड़ी बात यह की पूरी दुनिया अमेरिका को सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्था मानती
है. इस लिए उसे आंख दिखाने की बात कोई देश सोच भी नहीं सकता है. पिछले पचास सालो
से यही स्थित दुनिया में है इस लिए ज्यादातर अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के दफ्तर
अमेरिका में है और उसमे सबसे ज्यादा प्रभाव भी अमेरिका और यूरोप के गिनती के देशो
का ही है. चीन की अर्थव्यवस्था पिछले 30-40 वर्षो से बेहतर होनी शुरू हुई और अब
उसका नंबर दूसरे तीसरे नंबर पर पहुच गया है. चीन के
इस तरह से वायरस फ़ैलाने के कारण दुनिया के
अधिकतर देश चीन से नाराज हो गए है .भारत की गिनती भी नाराज देशो में शामिल है.
दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है इस नाते से चीन से नाराज देश एशिया में भारत
को एक विकल्प के रूप में देख रहे है. वास्तव में भारत में चीन का विकल्प बनने के
सभी अच्छे गुण है. अमेरिकन कम्पनियों के
लिए इससे अच्छा अवसर और क्या हो सकता था. हालाँकि अमेरिका से भारत में निवेश पहले से भी आ रहा है लेकिन यह
समय विशेष है. इसलिए फेस बुक जैसी कम्पनी ने रिलाएंस में भारी भरकम निवेश कर दिया.
और दो महीने के अन्दर ही अमेरिका से दूसरी बड़ी कम्पनी गूगल फेस बुक से भी बड़ा
निवेश करने का वादा कर रही है. अब प्रश्न यह उठता है की क्या अमेरिका से हमारा मन
मुटाव या झगडा नहीं हो सकता
? क्या अमेरिका
भारत का स्थाई मित्र है ?
हमें यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए की इस
व्यापरिक दुनिया में कोई किसी का न स्थाई मित्र है न शत्रु. यह सब आर्थिक हितो के अनुसार समय समय पर पहले भी
बदला है और आगे भी बदलता रहेगा. इस लिए हमें अपनी नीतिया लम्बे समय के हितो को
ध्यान में रख कर ही बनाना चाहिए. साथ ही हमेशा याद रखना चाहिए की व्यापार के हित और नियम भावनाओ से न चल कर घाटे और
मुनाफे की गणित पर चलते है. अमेरिका के हित
समय समय पर भारत के हितो से टकराते रहे है. जिसे कभी प्रेम से कभी कूटनीति से
सम्भाला जाता रहा है. भारत दुनिया में बड़ी शक्ति बने यह अमेरिका कभी नहीं चाहेगा. हाँ चीन के मुकाबले भारत को चुनना और समर्थन करना अमेरिकी रणनित का हिस्सा हो सकता है. इसलिए भारत को अपने
दीर्घकालीन हितो को ध्यान में रख कर ही अपनी नीतियाँ बनानी चाहिए. कही ऐसा न हो की
हम चीटी से बचने के लिए चीते को निमंत्रण दे बैठे और बाद में पछताने के सिवा कुछ
भी हाथ में न रहे.
नाम : अजय सिंह “एकल”
निवास :इंद्रा नगर , लखनऊ
कार्य: कार्पोरेट सलाह कार,
समाजिक कार्यकर्त्ता,विचारक, लेखक,पब्लिक स्पीकर
फ़ोन : 9811113345
ईमेल: ajay9811113345@gmail.com

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