*"हमने तुम्हें धन्यवाद तक नहीं कहा" — बच्चों ने लिखी प्रकृति को दिल की बात*

*धरती से संवाद का अनोखा अभियान — बच्चों ने शब्दों में रची संवेदना की कहानी*

*देशभर से 11,000 चिट्ठियाँ बनेंगी प्रकृति से संवाद का माध्यम*

*विश्व पर्यावरण दिवस पर शुरू हुआ अभियान- एक पत्र प्रकृति के नाम*

19 मई 2025, बागपत/प्रतापगढ़ — आज प्रतापगढ़ से “एक पत्र प्रकृति के नाम” अभियान का भावनात्मक और संकल्पपूर्ण शुभारंभ हुआ। यह अभियान भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के मिशन लाइफ कार्यक्रम के अंतर्गत नेचर ग्रीन फ्यूचर ट्रस्ट एवं उड़ान यूथ क्लब के सहयोग से प्रारंभ हुआ है, जो एक राष्ट्रीय जनभागीदारी अभियान का रूप लेने वाला है। इसका उद्देश्य देशभर के युवाओं को प्रकृति से एक आत्मीय संवाद की ओर प्रेरित करना है।

इस अभियान की विशेष बात यह है कि देशभर से 11,000 से अधिक पत्रों को संकलित कर उन्हें आगामी 5 जून — विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा जाएगा। यह अभियान 5 जून तक पूरे भारत के विभिन्न विद्यालयों, शैक्षणिक संस्थानों एवं ऑनलाइन माध्यमों में चरणबद्ध रूप से संचालित होगा। अभियान की शुरुआत सोमवार को प्रतापगढ़ के विभिन्न विद्यालयों में हुई, जहाँ बच्चों ने कलम उठाकर प्रकृति माँ को पत्र लिखे। इस पहल का नेतृत्व राज्य युवा पुरस्कार से सम्मानित दो युवा पर्यावरणविद् — प्रतापगढ़ के सुंदरम तिवारी और बागपत के अमन कुमार कर रहे हैं।

डॉल्फिन पब्लिक स्कूल, दिलीपुर और कंपोजिट विद्यालय, घीनापुर दमदम में आयोजित सत्रों में 700 से अधिक विद्यार्थियों ने भाग लिया और अपने मन की बात कागज़ पर उतारी। बच्चों के पत्रों में भावनाएँ थीं, पश्चाताप था, और भविष्य के लिए संकल्प भी। किसी ने लिखा — “प्यारी प्रकृति, माफ़ करना, हमने तुम्हारा ध्यान नहीं रखा।” किसी ने सवाल किया — “जब पेड़ हमें जीवन देते हैं, तो लोग उन्हें क्यों काटते हैं?” और कई बच्चों ने वादा किया — “मैं अब थर्माकोल की प्लेट नहीं लूँगा, खुद अपनी बोतल लाऊँगा, हर साल एक पेड़ लगाऊँगा।” कुछ पत्रों में चित्र थे — फूल, नदी, रोती हुई धरती। एक बच्चे ने लिखा — “तुमने हमें सब कुछ दिया, हमने तुम्हें ‘धन्यवाद’ तक नहीं कहा।” यह सिर्फ लेखन नहीं था, यह संवेदना की पुनर्स्थापना थी।

पर्यावरणविद् सुंदरम तिवारी ने बच्चों से संवाद करते हुए पूछा — “कब आखिरी बार तुमने मिट्टी को हाथ से छुआ?” उनके शब्दों ने बच्चों के भीतर सोच का बीज बोया। उन्होंने समझाया कि पानी की बर्बादी रोकना, प्लास्टिक से परहेज़, और प्रकृति से जुड़ाव — छोटे कदम हैं, लेकिन उनका असर बहुत बड़ा हो सकता है। प्रधानाचार्य मनोज तिवारी ने कहा — “बच्चे प्रतियोगिता के लिए नहीं, दिल से लिख रहे थे।” उन्होंने इसे एक ऐसा अनुभव बताया जिसमें “किताबों से परे बच्चों की चेतना को झकझोरा गया।” शिक्षिका गायत्री त्रिपाठी ने कहा — “संवेदनशीलता पाठ्यक्रम से नहीं, ऐसे अनुभवों से आती है।” कार्यक्रम में शिक्षकों की एक समर्पित टीम — प्रवीण सिंह, शिव शंकर निगम, सरवेश सिंह, प्रखर शुक्ला, अजय पांडे, विनय रंजन ओझा, विनोद पांडे, सतीश पांडे, राजेश पांडे, अभिषेक शर्मा, राज गौरव तिवारी — बच्चों को मार्गदर्शन देते रहे।

*राष्ट्रीय स्तर पर बन रही है भावनाओं की श्रृंखला*
यह केवल प्रतापगढ़ तक सीमित पहल नहीं रही। देशभर में इस अभियान से दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज, समृद्ध संस्कृति फाउंडेशन, 'मेरा युवा भारत' सहित अनेक संस्थान जुड़ रहे हैं। ऑनलाइन गूगल फॉर्म के माध्यम से प्रतिभागी अपने पत्र भेज सकते हैं, और सभी को डिजिटल प्रमाण पत्र भी प्रदान किए जा रहे हैं। सभी संकलित पत्र न केवल प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे जाएंगे, बल्कि उन्हें सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर भी साझा किया जाएगा ताकि बच्चों की भावनाएँ पूरे देश के नागरिकों तक पहुँचें, और एक साझा चेतना का निर्माण हो सके।

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