’चंदन किवाड़रू लोकसंस्कृति की सुगंध और मालिनी अवस्थी का योगदान’  रविंद्र आर्य


’ष्भारतीय लोकसंगीत और मालिनी अवस्थीरू चंदन किवाड़ के शब्दों में लोकधरोहरष्’


’जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में ष्चंदन किवाड़ष् का भव्य विमोचन’


रिपोर्टरू रविंद्र आर्य


जयपुरए चारबागरू

लोकसंस्कृति किसी भी समाज की आत्मा होती हैए जो उसकी पहचानए परंपराओं और मूल्यों को संरक्षित रखती है। भारतीय लोककला और संगीत के इस सुगंधित संसार में मालिनी अवस्थी का नाम एक अमिट पहचान बन चुका है। उनकी सुरीली आवाज़ और गेय शैली ने भारतीय लोकसंगीत को नए आयाम दिए हैं। इसी लोकगंध को समेटते हुएए मेरी पहली पुस्तक श्चंदन किवाड़श् पाठकों के समक्ष आई हैए जो भारतीय लोकसंस्कृति की गहराइयों को छूने का एक प्रयास है।


’ष्चंदन किवाड़ष्रू एक साहित्यिक समर्पण’


ष्चंदन किवाड़ष् केवल एक पुस्तक नहींए बल्कि भारतीय लोकसंस्कृति की जड़ों को स्पर्श करने और समझने का एक सेतु है। इस पुस्तक में लोकगीतोंए परंपराओंए रीति.रिवाजों और भारतीय लोकसंगीत की अनमोल धरोहर को शब्दों में उकेरने की कोशिश की गई है। लोककला और साहित्य के इस संगम से पाठकों को एक अनूठा अनुभव मिलेगाए जिससे वे अपनी जड़ों से और अधिक गहराई से जुड़ सकेंगे।


लोकसंगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं हैए बल्कि यह हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना का अभिन्न अंग भी है। ष्चंदन किवाड़ष् के पन्नों में लोकसंगीत की उसी आत्मा को तलाशने का प्रयास किया गया हैए जो हमें अपनी परंपराओं और विरासत से जोड़े रखती है।


’मालिनी अवस्थीरू लोकसंगीत की अमिट पहचान’


मालिनी अवस्थी भारतीय लोकसंगीत की उन दुर्लभ आवाज़ों में से एक हैंए जिन्होंने पारंपरिक संगीत को न केवल जीवंत रखाए बल्कि उसे विश्वपटल पर भी स्थापित किया। उनका गायन केवल एक कला नहींए बल्कि लोकसंस्कृति के प्रति एक निष्ठापूर्ण समर्पण है।


भोजपुरीए अवधीए ब्रज और बुंदेली लोकगीतों को उनके स्वरों ने जो पहचान दी हैए वह अतुलनीय है। उनकी गायकी लोकजीवन के हर रंग को सजीव रूप में प्रस्तुत करती हैकृचाहे वह विरह के स्वर होंए होली की मस्ती होए सावन के कजरी गीत हों या चैती की कोमल धुनें। उनकी आवाज़ में भारतीयता की गहरी जड़ें महसूस की जा सकती हैं।


’लोकसंस्कृति का पुनर्जागरण’


आज के आधुनिक युग मेंए जब पश्चिमी प्रभाव निरंतर बढ़ रहा हैए लोकसंस्कृति और लोकसंगीत का संरक्षण पहले से कहीं अधिक आवश्यक हो गया है। मालिनी अवस्थी जैसी कलाकार और लोकसंस्कृति पर लिखी जाने वाली पुस्तकेंए जैसे ष्चंदन किवाड़ष्ए इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। यह पुस्तक न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का प्रयास हैए बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक मूल्यवान धरोहर साबित होगी।


’27 कहानियाँ जो गीत बनकर नहीं गूंज सकीं’


ष्चंदन किवाड़ष् की सबसे खास बात यह है कि इसमें उन कहानियों को शामिल किया गया हैए जो अब तक केवल गीतों में सुनाई देती थींए लेकिन कभी लिखित रूप में संरक्षित नहीं की गईं। यह पुस्तक 27 ऐसी कहानियों का संकलन हैए जिनका मूल भारतीय लोकजीवन में निहित है और जो सदियों से केवल लोकगायकों के स्वरों में जीवंत थीं। इस संकलन के माध्यम से इन कहानियों को एक स्थायी रूप देने का प्रयास किया गया है।


’जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2025 में ष्चंदन किवाड़ष् का भव्य विमोचन’


2 फरवरी 2025 को वाणी प्रकाशन ग्रुप द्वारा जयपुर के क्लार्क्स आमेर होटल में आयोजित जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में ष्चंदन किवाड़ष् का भव्य विमोचन किया गया। इस विशेष अवसर पर साहित्यए कला और संगीत प्रेमियों की एक बड़ी संख्या उपस्थित रही।


इस विमोचन सत्र में सुप्रसिद्ध लोकगायिका और अभिनेत्री इला अरुणए लेखक यतींद्र मिश्र और वाणी प्रकाशन समूह की अदिति माहेश्वरी गोयल ने पुस्तक पर विस्तार से चर्चा की। चर्चा का केंद्र बिंदु लोककलाए मालिनी अवस्थी की संगीत यात्रा और भारतीय लोकसंस्कृति के संरक्षण का महत्व रहा।


’उम्मीदों का किवाड़’


ष्चंदन किवाड़ष् केवल एक साहित्यिक कृति नहींए बल्कि उन सभी लोकप्रेमियों के लिए एक आमंत्रण हैए जो अपनी जड़ों की सुगंध को महसूस करना चाहते हैं। इस पुस्तक के माध्यम से मैंने लोककथाओंए लोकगीतों और उनकी ऐतिहासिक प्रासंगिकता को सहेजने का प्रयास किया है।


मालिनी अवस्थी जैसी कलाकारों की प्रेरणा से यह पुस्तक अपने उद्देश्य में सफल होगीए यही मेरी आशा है।


’अंतिम विचार’


लोकसंस्कृति हमारी पहचान का अभिन्न अंग है। इसे जीवंत बनाए रखना हमारा कर्तव्य भी है और जिम्मेदारी भी। ष्चंदन किवाड़ष् केवल लोकगीतों और लोककथाओं का संकलन नहींए बल्कि भारतीय लोकसंस्कृति के संरक्षण का एक विनम्र प्रयास है।


’ष्लोकसंस्कृति की यह यात्रा निरंतर जारी रहे और हमारी लोकधरोहर आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचेकृयही मेरी कामना है।ष्’



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लेखकरू रविंद्र आर्य

📞 7838195666


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