डिप्रेशन और आत्महत्या को कैसे रोके जानते है डॉ सुमित्रा अग्रवाल जी से 

सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल
कोलकाता
सिटी प्रेजिडेंट इंटरनेशनल वास्तु अकादमी
यूट्यूब वास्तु सुमित्रा 

  
मौजूदा समय में ख़ास तौर पर युवा पीढ़ी में डिप्रेशन की समस्याए कुछ ज्यादा ही बढ़ रही है। ख़ास तौर पर १८  से ३६ साल के युवा आत्महत्या करते हैं। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल ८ लाख से भी ज्यादा लोग आत्महत्या कर लेते हैं और इन ८ लाख में ३५००० लोग हमारे भारतीय हैं। हर ५ में से एक इंसान डिप्रेशन का मरीज होता है ।

डिप्रेशन के कारण 

युवाओ की ज़िंदगी में आगे बढ़ने का दबाव होता है,पढ़ाई का दबाव,अच्छी जॉब का दबाव,शादी का दबाव,आर्थिक समस्या का दबाव,ऐसी बहुत समस्याएं युवाओ की ज़िंदगी में होती है जो चिंताओं से ही तनाव बढ़ता है और तनाव से ही मन की परिस्थिति बेहद खराब हो जाती है । 

डिप्रेशन के लक्षण -
१  सिर दर्द 
२  गुमसुम रहना , किसी से बात नहीं करना। 
३ चिड़चिड़ापन 
४  किसी भी चीज में मन ना लगना 
५  सारा दिन नकरात्मकता विचार में डूबे रहना 
६  ज़िंदगी जीने की जज्बा का कम होना 
७ वजन बढ़ भी सकता है और कम भी हो सकता है।
८ अधिक नहाना या बिलकुल नहीं नहाना। 
९ अनिद्रा या बहुत अधिक सोना। 
१० भूखे रहना या अत्यधिक खाना। 

इन लक्षणों को अनदेखा नहीं करना चाहिए और तुरंत अच्छे डॉक्टर से मिलना सुनिश्चित होता है। जब डॉक्टर काउंसलिंग करते हैं दर्दी की तब आधी से भी ज्यादा नकरात्मकता ऊर्जा कम होने लगती है। समस्याएं का कारण पता करके उस समस्या का हल निकालना लाभदायक होता है।

महिलाओ की अपेक्षा पुरुषो में डिप्रेशन और आत्महत्या ज्यादा देखे गए है -

एक शोध में पता चला है की महिलाओं की तुलना में पुरुष ज्यादा अवसाद ,डिप्रेशन के शिकार होते हैं।
औरतें अपनी बातें आम तोर पर अपनी माता या सखी से कह कर अपना मन हल्का कर लेती हैं और कई बार रोओ कर भी अपने मन की व्यथा को व्यक्त कर लेती हैं।पुरुष अपनी बातो को किसी के सामने बया नहीं करते हैं। ऐसी ही एक कहानी है महान साइंटिस्ट की वे अपने सुसाइड नोट में चौकाने वाली बात लिखे थे। एक दिन की बात थी साइंटिस्ट मन में ही सोचते हैं और लिखते हैं की वे आत्महत्या करेंगे और सुसाइड पॉइंट तक जाने में अगर कोई इंसान उन्हें रोक लेगा और उनकी बाते सुनेगा तब वह अपना निर्णय बदल देंगे और आत्महत्या नहीं करेंगे। साइंटिस्ट की जिंदगी बचाई जा सकती थी। न केवल साइंटिस्ट बल्कि हर सुसाइड करने वाले की जिंदगी बचाई जा सकती थी। मनुष्य का एक गन्दा स्वाभाव है की वो सामने वाले को हमेशा अपने मैप दंड पर जज करते हैं जो की सही नहीं है। हर व्यक्ति स्वतंत्र है और अपने जीवन के क्रम को स्वयं जी रहे है किसी भी दो लोगो की जीवन एक सामान नहीं  है। अपने घरो में भी हर व्यक्ति की जीवन चर्या अलग है, सोच विचार और जीने का ढंग अलग है। आत्महत्या से लोगो को बचाने के लिए सब को चेस्टा करनी होगी और निम्न लिखित बातों का विशेष ध्यान रखना होगा -

१।  कोई भी मरना नहीं चाहते , बचा लिए जाने पर हर सुसाइड करने वाले का यही कहना है की वे मरना नहीं चाहते थे पर स्तिथि के वसीभूत होकर ऐसा कठोर कदम उठाये थे। 
२।  अपने प्रियजनो से संवेदना के साथ व्यवहार करे।  खासतोर से पुरुषो के साथ स्नेह, प्रेम और सहानभूति से व्यवहार करें। जो पुरुष कम बोलते हैं उनके साथ खास तोर पर प्रेम पूर्वक, सकारात्मक बातें करें क्योंकि यही वह लोग होते हैं जो अपने कष्टों को बता नहीं पातें हैं और परिवार के होते हुए भी एकाकी का जीवन बिताते बिताते एक दिन आवेश में गलत कदम उठाते हैं।  
३।  जिनके साथ रहते हैं अगर अचानक वह ज्यादा सोने लगे, या कम सोने लगे, बहुत ज्यादा खाने लगे या खाना छोड़ दे , घंटो नहाने लगे या नहाना बंध कर दे, चुप चाप अकेले में रहने लगे, उनके स्वाभाविक व्यवहार में परिवर्तन को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए और उनसे बात करनी चाहिए। 
४।  कुछ भी सही गलत नहीं होता, ये सिर्फ दृष्टिकोण की बात है।  अपने मैप डाँडो पर लोगो को सही गलत ठहरना बंद किया जाना चाहिए। 
५।  प्रेम और सद्भावना से मनन को जजिता जा सकता है और डिप्रेशन को भी और फिर आत्महत्या जैसी बातों के लिए कोई स्थान नहीं रह जायेगा।

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