स्वामी विवेकानन्द का जीवन साहस और समर्पण का सच्चा उदाहरण था– स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी


लखनऊ।


रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम, लखनऊ के शताब्दी समारोह के अवसर पर एक दिवसीय क्षेत्रीय युवा सम्मेलन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का भव्य आयोजन सम्पन्न।


 

रामकृष्ण मिशन  सेवाश्रम, लखनऊ के शताब्दी समारोह की शुरुआत एक दिवसीय क्षेत्रीय युवा सम्मेलन दिन रविवार, दिनांक 21 दिसम्बर, 2025 को प्रातः 8ः30 बजे से शाम 5ः00 बजे तक  रामकृष्ण मठ, निराला नगर, लखनऊ में आयोजित किया गया इस सम्मेलन में लखनऊ व आसपास के जिलों के 400 से अधिक पंजीकृत युवावां ने भाग लिया व सायं 6ः30 बजे से 8ः30 बजे तक शताब्दी समारोह का उद्घाटन हुआ तथा समस्त कार्यक्रम हमारे यूटयूब चैनल ‘रामकृष्ण मठ लखनऊ’ के माध्यम से सीधा प्रसारण भी किया गया।

इस सम्मेलन में लखनऊ एवं आस-पास के जिलो से आये लगभग 400 युवाओं व भक्तगणों ने भाग लिया। जिसकी शुरूआत प्रातः मौन प्रार्थना, वैदिक मंत्रोच्चारण स्वामी इष्टकृपानन्द द्वारा हुआ। निर्देशित ध्यान रामकृष्ण मठ, लखनऊ के अध्यक्ष, स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज के नेतृत्व में सम्पन्न हुआ। तत्पश्चात सामूहिक भजन रामकृष्ण मठ के स्वामी इष्टकृपानन्द के नेतृत्व में हुआ तथा उपस्थित युवाओें व भक्तगणों को मंदिर के पूर्वी प्रांगण में जलपान कराया गया।


प्रात 10ः30 बजे से मठ के प्रेक्षागृह में कार्यक्रम की शुरूआत कार्यक्रम में पधारे गणमान्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ हुआ तथा वैदिक मन्त्रोच्चारण रामकृष्ण मठ के संन्यासियों द्वारा हुआ। उद्बोधन गीत लखनऊ के जाने माने गायक डा0 बीजू भगवती ने प्रस्तुत किया उस दौरान तबला पर संगत लखनऊ के श्री सुमित मल्लिक ने दिया तथा समवेत में स्वदेश मंत्र एवं अमृत मंत्र विवेकानन्द युवा संघ, लखनऊ के श्री समर नाथ निगम के नेतृत्व में हुआ एवं स्वामी विवेकानन्द के रचनावली से पाठ विवेकानन्द युवा संघ, लखनऊ के श्री विकास पटेल द्वारा किया गया। 


’स्वामी विवेकानन्द के अनुसार बनो और बनाओ’ विषय पर युवाओं को संबोधित करते हुए रामकृष्ण मठ, हैदराबाद के अध्यक्ष स्वामी बोधमयानन्द जी ने बताया कि  स्वामी विवेकानन्द, जो भारत के सबसे प्रभावशाली आध्यात्मिक नेताओं में से एक थे, ने जीवन के लिए एक शक्तिशाली तरीके के तौर पर “बनो और बनाओ“ के विचार पर ज़ोर दिया। यह कॉन्सेप्ट आत्म-ज्ञान और अपनी पूरी क्षमता के विकास पर आधारित है।

“बनो“ - इसका मतलब है आत्म-जागरूकता और आत्म-अनुशासन का महत्व। स्वामी विवेकानन्द ने सिखाया कि दुनिया या दूसरों को बदलने की कोशिश करने से पहले, इंसान को पहले खुद को समझना और बेहतर बनाना चाहिए। उन्होंने अंदरूनी ताकत, आत्मविश्वास और चरित्र बनाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। जब कोई व्यक्ति अपने मूल्यों और मकसद में मज़बूत होता है, तभी वह दुनिया पर सकारात्मक असर डाल सकता है।

“बनाओ“ - इसका मतलब है काम करने का विचार। जब कोई व्यक्ति खुद को विकसित कर लेता है और अपनी असली क्षमता को पहचान लेता है, तो उसे अपने कौशल, ज्ञान और प्रतिभा का इस्तेमाल समाज की भलाई के लिए करना चाहिए। स्वामी विवेकानंद ने लोगों को निस्वार्थ भाव से काम करने, दूसरों की सेवा करने और दुनिया में सकारात्मक बदलाव लाने वाले बनने के लिए प्रोत्साहित किया।

संक्षेप में, “बनो और बनाओ“ का मतलब है आत्म-विकास और सामाजिक योगदान के बीच संतुलन बनाना। यह हमें याद दिलाता है कि व्यक्तिगत विकास और सामाजिक सुधार साथ-साथ चलते हैं। जैसा कि स्वामी विवेकानन्द ने कहा था, “हम वही हैं जो हमारे विचारों ने हमें बनाया है; इसलिए सावधान रहें कि आप क्या सोचते हैं।“


हैदराबाद के युवाओं के पर्सनैलिटी डेवलपमेंटे विशेषज्ञ डॉ. विवेक मोदी द्वारा, ’युवा कैसे स्वामी विवेकानंद के पुनर्जीवित भारत के सपने को साकार करने की दिशा में अपने जीवन को ढाल सकते हैं’, विषय पर चर्चा की उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा कि स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारने के लिए, युवा इन मुख्य सिद्धांतों पर ध्यान दे:

1. ’’आत्म-जागरूकता और आत्म-अनुशासन’’ः खुद को जानें और मज़बूत आत्म-अनुशासन विकसित करें। स्वामी विवेकानंद ने मन पर काबू पाने और लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने के महत्व पर ज़ोर दिया। युवाओं को आत्म-नियंत्रण, टाइम मैनेजमेंट और लगन का अभ्यास करना चाहिए। 2. ’’निडरता और आत्मविश्वास’’ः साहसी बनें और अपनी क्षमता पर विश्वास रखें। विवेकानंद ने युवाओं से डर और संदेह को दूर करने का आग्रह करते हुए कहा, “उठो, जागो, और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।“

3. ’’दूसरों की सेवा’’ः निस्वार्थ भाव से मानवता की सेवा करें। विवेकानंद का मानना था कि दूसरों की मदद करने और समाज में योगदान देने से सच्ची संतुष्टि मिलती है। युवाओं को सामुदायिक सेवा में शामिल होना चाहिए, समानता को बढ़ावा देना चाहिए और दूसरों के कल्याण के लिए काम करना चाहिए।

4. ’’ज्ञान और विवेक की तलाश करें’’ः लगातार सीखें और आगे बढ़ें। विवेकानंद ने बौद्धिक ज्ञान और आध्यात्मिक विवेक दोनों के मूल्य पर ज़ोर दिया। युवाओं को शिक्षा और व्यक्तिगत विकास के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए, और ध्यान और माइंडफुलनेस के माध्यम से आध्यात्मिकता का अभ्यास भी करना चाहिए।

5. ’’सकारात्मकता और आशावाद के साथ जिएं’’ः चुनौतियों को सकारात्मक दृष्टिकोण से अपनाएं। आशावादी रहें और असफलताओं को सीखने और आगे बढ़ने के अवसरों के रूप में देखें, जैसा कि विवेकानंद ने सिखाया कि सफलता के लिए सकारात्मक मानसिकता ज़रूरी है।

इन सिद्धांतों को अपनाकर, युवा उद्देश्यपूर्ण जीवन जी सकते हैं, व्यक्तिगत विकास कर सकते हैं और समाज में सार्थक योगदान दे सकते हैं।


तदापरान्त रामकृष्ण मठ, लखनऊ के स्वामी विश्वदेवानन्द के नेतृत्व में स्वामी विवेकानंद पर एक गीत गाया गया।


रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम, लखनऊ के सचिव, स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज द्वारा ’स्वामी विवेकानंद के अनुसार जीवन में सफलता का रहस्य’ विषय पर अपने सम्बोधन में युवाओं से कहा कि युवा एक विचार अपनाएँ। उस एक विचार को अपना जीवन बना लें; उसके बारे में सपने देखें; उसके बारे में सोचें; उसी विचार पर जिएँ। दिमाग, शरीर, मांसपेशियाँ, नसें, आपके शरीर का हर हिस्सा उस विचार से भरा हो, और बाकी सभी विचारों को छोड़ दें। यही सफलता का रास्ता है, और इसी तरह महान आध्यात्मिक दिग्गज पैदा होते हैं।”

स्वामी विवेकानन्द की सफलता का रहस्य गहन फोकस, अटूट दृढ़ता, निस्वार्थ कर्म (कर्म योग), और असीम आत्म-विश्वास पर टिका है, जो इस बात पर ज़ोर देता है कि सच्ची सफलता एक ही विचार के प्रति खुद को समर्पित करने, बिना किसी इनाम की उम्मीद किए अथक प्रयास करने, और आंतरिक शक्ति से डर पर विजय पाने से मिलती है, यह विश्वास करते हुए कि आप अनंत हैं। उन्होंने सिखाया कि समस्याएँ अपरिहार्य हैं लेकिन एक दृढ़ इच्छाशक्ति और शुद्ध, धैर्यपूर्ण प्रयास विजय की ओर ले जाते हैं।

स्वामी जी ने सफलता के लिए मुख्य सिद्धांत बतायेः

* एक विचार चुनें और उसे अपना जीवन बना लें; हर नस और मांसपेशी उसके लिए काम करे, चौड़ाई के बजाय गहराई हासिल करें।

* किसी प्रतिफल की अपेक्षा न करें। अपना सब कुछ काम को दें, काम के फल को नहीं। यह निस्वार्थता सच्ची सफलता लाती है।

* जबरदस्त इच्छाशक्ति और धैर्य विकसित करें। जो आत्मा ऐसा चाहती है, उसके लिए पहाड़ भी ढह जाएँगे, दृढ़ आत्मा कहती है।

* “आप जो सोचते हैं, वही आप बनेंगे। यदि आप खुद को कमजोर सोचते हैं, तो आप कमजोर होंगे; यदि आप खुद को मजबूत सोचते हैं, तो आप मजबूत होंगे।“

*  समस्याएँ इस बात का संकेत हैं कि आप सही रास्ते पर हैं। कठिनाइयों के माध्यम से स्थिर, धैर्यपूर्ण कार्य सफलता लाता है।

* एक नेक काम में सफलता के लिए अनंत धैर्य, पवित्रता और सत्य के प्रति आज्ञाकारिता आवश्यक है।

तत्पश्चात युवाओं द्वारा पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देकर उनकी जिज्ञासा को शान्त किया गयां तथा स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी द्वारा युवाओं के लिए घोषणायें की गयी तत्पश्चात दोपहर अवकाश हुआ।


दोपहर भोजन उपरान्त परस्पर संवादत्मक सत्र एवं फिल्म शो का आयोजन हुआ जिसमें स्वामी विवेकानन्द पर एक फिल्म शो दिखायी गयी तथा कुछ चुने हुए युवाओ के साथ परस्पर संवाद हुआ।


सायं 4 बजे समापन सत्र मठ के प्रेक्षागृह में आयोजित हुआ। जिसमें स्वामी बोधमयानन्द जी महाराज द्वारा ‘‘स्वामी विवेकानन्द की युवाओं से अपेक्षाएं’’ विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि स्वामी विवेकानन्द ने युवाओं से बड़ी उम्मीदें की थीं, जो उनके जीवन को दिशा और उद्देश्य प्रदान करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उनके अनुसार, युवाओं को निम्नलिखित गुणों और उद्देश्यों को अपनाना चाहिएः

1. ’’स्वयं में विश्वास’  : स्वामी विवेकानन्द ने युवाओं से अपने आत्मविश्वास को मजबूत करने की अपील की। उनका मानना था कि “तुम जो चाहो वो बन सकते हो” और युवाओं को अपने अंदर छिपी शक्तियों को पहचानना चाहिए।

2. ’’निडरता और साहस’’ः स्वामी विवेकानन्द ने युवाओं से कहा कि वे भय को पार करें और जीवन में साहस दिखाएं। उन्होंने कहा, “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।”

3. ’’स्वधर्म का पालन’’ः विवेकानन्द जी ने यह भी कहा कि युवाओं को अपने देश, समाज और परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। उन्हें अपनी ंस्कृति, परंपराओं और धर्म का आदर करना चाहिए।

4. ’’शिक्षा और आत्मविकास’’ः उन्होंने युवाओं को लगातार ज्ञान प्राप्ति और आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी। स्वामी जी ने कहा कि “ज्ञान ही शक्ति है” और युवाओं को हमेशा नए विचारों, कौशल और मूल्यों के प्रति खुला रहना चाहिए।

5. ’’समाजसेवा और नैतिकता’’ः स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, युवाओं को समाज के उत्थान के लिए काम करना चाहिए। उन्होंने समाज में फैली असमानता, कुरीतियों और भेदभाव के खिलाफ खड़े होने की आवश्यकता बताई।

6. ’’आध्यात्मिकता और साधना’’ः उन्होंने युवाओं को अपने जीवन में आध्यात्मिकता को स्थान देने की सलाह दी, ताकि वे मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त कर सकें।

स्वामी विवेकानन्द चाहते थे कि युवा अपनी शक्ति और बुद्धिमत्ता का सही उपयोग करें, खुद को श्रेष्ठ बनाने के साथ-साथ समाज की भलाई के लिए काम करें। उनका उद्देश्य था कि युवा देश की प्रगति और सामाजिक सुधार में सक्रिय रूप से भाग लें।


स्वामी विवेकानन्द के अनुसार युवाओं का व्यक्तित्व विकास विषय पर संबोधित  करते हुए डॉ. विवेक मोदी ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, युवाओं का व्यक्तित्व विकास आत्मविश्वास, उद्देश्य, और सेवा भाव से जुड़ा होता है। वे मानते थे कि युवा समाज का सबसे शक्तिशाली अंग होते हैं, और उनका सही मार्गदर्शन राष्ट्र की प्रगति के लिए आवश्यक है। उन्होंने युवाओं को अपनी क्षमता पहचानने और उसे साकार करने के लिए प्रेरित किया।


समापन भाषण में स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि आज, जब हम इस सेशन को खत्म कर रहे हैं, तो मुझे महान दार्शनिक, आध्यात्मिक गुरु और समाज सुधारक स्वामी विवेकानन्द जी के बारे में कुछ विचार साझा करते हुए गर्व हो रहा है। उनकी शिक्षाएं लाखों लोगों को प्रेरित करती रहती हैं, जो हमें मकसद, ताकत और आत्म-ज्ञान से भरी ज़िंदगी की ओर गाइड करती हैं।

स्वामी विवेकानन्द का जीवन साहस और समर्पण का सच्चा उदाहरण था। 1893 में शिकागो में पार्लियामेंट ऑफ रिलीजन्स में उनका मशहूर भाषण ग्लोबल स्टेज पर भारत की आध्यात्मिक जागृति की शुरुआत थी। उन्होंने सार्वभौमिक भाईचारे, आत्मविश्वास और धार्मिक सहिष्णुता की बात की, इस बात पर ज़ोर दिया कि धर्म का असली सार इंसानियत की सेवा में है।

युवाओं के लिए, स्वामीजी ने आत्मनिर्भरता, अनुशासन और अपनी अंदर की ताकत से गहरे जुड़ाव के महत्व पर ज़ोर दिया। उनका मानना था कि किसी भी देश का भविष्य उसके युवाओं के हाथों में होता है, और उन्होंने उनसे अपनी शक्ति को अपनाने और समाज की बेहतरी के लिए लगातार काम करने का आग्रह किया।

आखिर में, आज जब यह युवा सम्मेलन का समापन हो रहा हैं, तो आइए स्वामी विवेकानंद के शब्दों से प्रेरणा लेंः “उठो, जागो, और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य हासिल न हो जाए।“ हम अपनी ज़िंदगी को सार्थक बनाने और एक बेहतर दुनिया बनाने में योगदान देने की कोशिश करें, जैसा कि स्वामी विवेकानन्दजी ने सोचा था।


समापन भजन स्वामी विवेकानन्द पर समूहगान में स्वामी विश्वदेवानन्द जी के नेतृत्व में गाया गया।

इस दौरान उक्त कार्यक्रम का संचालन श्री हरिओम, युवा संयोजक, उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड रामकृष्ण-विवेकानंद भाव प्रचार परिषद ने उपस्थित गणमान्य अतिथियों का अभिनन्दन किया एवं उनका परिचय दिया तथा इस क्षेत्रीय युवा सम्मेलन कराने के लिए स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज को धन्यवाद दिया।  

कार्यक्रम की समाप्ति पर मंदिर के पूर्वी लॉन में जलपान के साथ क्षेत्रीय युवा सम्मेलन का समापन हुआ।


सायंकाल सन्ध्या आरती के उपरान्त मठ के प्रेक्षागृह में रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम, लखनऊ की शताब्दी समारोह का उद्घाटन हुआ। उद्धाटन गीत स्वामी विश्वदेवानन्द जी द्वारा गाया गया। रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम के प्रबन्धकारिणी समिति के उपाध्यक्ष श्री किरोन चोपड़ा द्वारा आये हुए गणमान्य अतिथियों, युवाओं व  भक्तगणों का स्वागत किया।


स्वामी मुक्तिनाथानन्द, सचिव, रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम, लखनऊ द्वारा उद्घाटन भाषण में कहा कि आज मैं बहुत सम्मान और खुशी के साथ आपके सामने इस ’’रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम’’ के शताब्दी समारोह के अवसर पर खड़ा हूँ, जो सेवा, आध्यात्मिकता और निस्वार्थ कार्य के लिए समर्पित एक स्थान है।


’’स्वामी विवेकानन्द’ द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन ने हमेशा व्यक्तियों के सर्वांगीण विकास में विश्वास किया है - शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से। आज, जब हम यहाँ इकट्ठा हुए हैं, तो हमें स्वामीजी के गहरे शब्दों की याद आती हैः “खुद को खोजने का सबसे अच्छा तरीका है दूसरों की सेवा में खुद को खो देना।“’’ यह सेवाश्रम वंचितों के लिए आशा की किरण बनेगा, उन्हें न केवल शारीरिक सहायता प्रदान करेगा, बल्कि उन्हें गरिमा, उद्देश्य और प्रेम की भावना भी देगा। यहाँ हमारे काम का सार निस्वार्थ सेवा, करुणा और आध्यात्मिक जागृति की खोज में निहित होगा, जैसा कि स्वामी विवेकानन्द और श्री रामकृष्ण ने सिखाया है।

श्री रामकृष्ण और स्वामी विवेकानंद के आशीर्वाद से, यह सेवाश्रम मानवता के लिए प्रकाश, प्रेम और सेवा का केंद्र बने।

आपके समर्थन और उपस्थिति के लिए आप सभी का धन्यवाद। आइए हम सब मिलकर प्रेम और सेवा के उस मिशन को पूरा करने के लिए काम करें जिसकी स्वामीजी ने कल्पना की थी।


स्वामी बोधमयानंद द्वारा ’रामकृष्ण संघ पर चर्चाः श्री रामकृष्ण का जीवंत अवतार’ विषय पर एक चर्चा करते हुए कहा कि  स्वामी विवेकानन्द द्वारा 1897 में स्थापित रामकृष्ण संघ, श्री रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं और आदर्शों का जीता-जागता रूप है। श्री रामकृष्ण ने अपने जीवन और शिक्षाओं के माध्यम से सभी धर्मों की एकता, निस्वार्थ सेवा के महत्व और अपने अंदर ईश्वर को महसूस करने पर ज़ोर दिया।

इस संघ का मिशन शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और आध्यात्मिक उत्थान के माध्यम से मानवता की सेवा करना है, साथ ही सार्वभौमिक भाईचारे को बढ़ावा देना है। रामकृष्ण मिशन, जिसकी शाखाएँ दुनिया भर में हैं, एक दयालु, निस्वार्थ और आध्यात्मिक रूप से जागृत समाज के श्री रामकृष्ण के दूरदृष्टिता को दिखाता है।

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उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड रामकृष्ण-विवेकानंद भाव प्रचार परिषद के सलाहकार श्री सुखद राम पाण्डेय  द्वारा ’उत्तर प्रदेश में रामकृष्ण आंदोलन का महत्व-जो श्री राम और श्री रामकृष्ण के आगमन से पवित्र हुआ’ विषय पर चर्चा करते हुए  कहा कि रामकृष्ण आंदोलन का उत्तर प्रदेश में बहुत गहरा असर हुआ है, जिसने आध्यात्मिकता, बिना स्वार्थ के सेवा और अलग-अलग धर्मों के बीच मेलजोल पर ज़ोर देकर लाखों लोगों को प्रेरित किया है। श्री रामकृष्ण और स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं ने राज्य में कई लोगों को प्रभावित किया है, जिससे कई रामकृष्ण मिशन सेंटर बने हैं जो शिक्षा, हेल्थकेयर और आध्यात्मिक मार्गदर्शन देते हैं।

इन कोशिशों से, इस आंदोलन ने समाज के नैतिक और सामाजिक उत्थान में अहम योगदान दिया है, और सहनशीलता, एकता और आत्म-साक्षात्कार जैसे मूल्यों को बढ़ावा दिया है। रामकृष्ण आंदोलन उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए प्रेरणा का एक ज़रिया बना हुआ है, जो आध्यात्मिक रूप से जागरूक और सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार समुदाय को बढ़ावा देता है।


डॉ. सुलेमान अम्मार रिज़वी, सदस्य, प्रबंध समिति, रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम, लखनऊ द्वारा धन्यवाद ज्ञापन देते हुए रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम, लखनऊ के सचिव, स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज को धन्यवाद देते हुए कहा कि मैं इस युवा सम्मेलन की सफलता और हमारे ’’शताब्दी समारोह की शुरुआत’’ में योगदान देने वाले सभी को हार्दिक ’’धन्यवाद’’ देता हूँ। आपकी बहुमूल्य अंतर्दृष्टि, भागीदारी और उत्साह ने इस कार्यक्रम को सच में यादगार बना दिया है। अपने ज्ञान और प्रेरणा साझा करने के लिए हमारे सम्मानित वक्ताओं को विशेष धन्यवाद। आइए, हम ’’स्वामी विवेकानंन्द’’ द्वारा परिकल्पित ’’युवा सशक्तिकरण’’, ’’सेवा’’ और ’’आध्यात्मिक विकास’’ के संदेश को आगे बढ़ाते रहें।


तदोपरान्त अन्त में समापन गीत लखनऊ  के जाने माने गायक श्री अनिमेष मुखर्जी द्वारा गाया गया व उस दौरान तबला पर संगत भातखण्डे संगीत संस्थान, लखनऊ  के श्री शुभम राज ने किया 

अन्त में सभी कलाकारों को मठ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज द्वारा कैलेन्डर, पौधे व पुस्तकें और स्वामी विवेकानन्द की तस्वीरें भेट की गयी।


इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में युवाओं व श्रद्धालुओं ने भाग लिया, कार्यक्रम कें अन्त में सभी उपस्थित सभी भक्तों के बीच प्रसाद वितरण के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।


स्वामी मुक्तिनाथानन्द

सचिव

रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम, लखनऊ

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