औरैया // इटावा लोक सभा सीट पर गठबंधन का प्रयोग करीब तीन दशक बाद सफल साबित हुआ है इससे पहले सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और बसपा संस्थापक कांशीराम के बीच समझौता होने पर इस प्रयोग ने सफलता पाई थी,मोदी लहर में दो बार यह सीट लगातार भाजपा के पाले में रही। इस बार इंडिया गठबंधन ने भाजपा को करारी शिकस्त दी राजनीतिक गलियारों में इटावा लोक सभा सीट की एक अलग ही पहचान है इससे जो भी प्रत्याशी जीतता है वह देश का हर एक नेता की नजर में आ जाता है कारण यह सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के क्षेत्र के रूप में जाना जाता है समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने राजनीतिक दलों के गठबंधन कर प्रदेश भर में राजनीतिक दांवपेच की अपनी पहचान बना ली है तो वहीं इटावा सीट पर किया गया गठबंधन का प्रयोग पूरी तरह 33 साल बाद सफल हुआ,इटावा सीट के लिए औरैया सदर से सपा को कुल एक लाख 80 हजार 52 मत मिले जबकि भाजपा को एक लाख 48 हजार 894 वोट ही मिल सके। इस प्रकार दोनों विधान सभाओं से कुल 31 हजार 158 मतों का अंतर रहा,यही स्थित कन्नौज लोकसभा सीट के लिए विधान सभा में भी रही यहां सपा को एक लाख 19 हजार 843 और भाजपा को 80 हजार सात वोट ही प्राप्त हो सके,इससे पहले इस सीट पर सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और बसपा संस्थापक कांशीराम के गठबंधन कर सफलता पाई थी। वर्ष 1991 में राम मंदिर लहर में सपा और बसपा ने इटावा में भाजपा की लहर को रोकने का काम किया था बसपा संस्थापक कांशीराम ने इटावा लोक सभा सीट से किस्मत आजमाई थी। इससे पहले वह 1988 में इलाहाबाद और 1989 में पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से हार का सामना कर चुके थे। 1991 में यादवों का गढ़ मानी जाने वाली इटावा सीट से कांशीराम चुनाव मैदान में उतरे,सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के सहयोग से सफलता भी पाई उस समय उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी लाल सिंह वर्मा को 20 हजार से अधिक मतों से पराजित किया था। मालूम हो कि वर्ष 2019 के चुनाव में सपा और बसपा का गठन काम नहीं आया था। नरेंद्र मोदी की लहर के आगे यह गठबंधन पूरी तरह फेल साबित हुआ था। जिसके चलते भाजपा प्रत्याशी ने दी अपनी जीत दर्ज कराई थी। लेकिन इस बार इंडिया गठबंधन की रणनीति के चलते भाजपा को इटावा लोकसभा सीट को लेकर औरैया जिले में मुंह की खानी पड़ी,बदल गया समीकरण भाजपा इस सीट पर सवर्ण, अन्य पिछड़े और दलित आदि जातियों के सहारे जीत का दम भर रही थी तो वहीं मोदी सरकार की योजनाओं को भुनाने का प्रयास भी कर रही थी तो वहीं सपा इस बार अपना वोट बैंक को पाने में कामयाब रही ही साथ ही अन्य वर्गों का वोट भी अपने पक्ष में करने में सफल रही वहीं इटावा सीट पर लगभग साढ़े चार लाख दलितों की आबादी है जिसके चलते यह सीट आरक्षित की गई है।

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