राजकुमार गुप्ता
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हम क्या पूरी दुनिया जान ओबेरी की शुक्रगुजार है कि उसने दुनिया को कम से कम साल में एक बार मूर्ख  बनने और बनाने की कला सिखाई। इत्तफाक देखिये कि ये कला हमारे मुल्क के सियासददां न जाने कब से जानते थे। आजादी के बाद तो हम हिन्दुस्तानी मूर्ख बनाने की कला में गुरुघंटाल हो गए हैं।
मूर्ख बनाना और बनाना दरअसल एक तरह का दर्शन है जो आपको ईश्वर तक ले जाता है ,लेकिन आजकल मूर्ख बनाकर आप खुद को सफलता के शीर्ष पर और सत्ता के शीर्ष तक न केवल पहुंच सकते हैं बल्कि वहां टिके भी रह सकते हैं ,शर्त केवल एक ही है कि आप जनता को हिकमत  अमली से मूर्ख बनांयें। मूर्ख बनाना यानी किसी को ठगना होता है । हमारे मनीषी शरू से इस ठगी के पक्षधर रहे हैं। लेकिन वे जनता को नहीं अपने आपको ठगने की सलाह देते हैं।
मगहर वाले बिना डिग्री के कबीरदास जी ने इस बारे में बहुत पहले ही कह दिया था कि
-'कबिरा आप ठगाइयें और न ठगिये कोय।
 आप ठगे सुख ऊपजें और ठगे दुख होय॥'
हम जैसे असंख्य लोग कबीरदास जी की बातों में आ गए और लगातार सुख उपजाने के लिए अपने आपको ठगते जा रहे हैं। दूसरों को ठगना  हमने सीखा ही नहीं। जो हमने नहीं सीखा उसे हमारे देश के जन सेवकों,चौकीदारों योगियों,सन्यासियों ने सीख लिया वे आम जनता को ठगते हुए आजादी के अमृतकाल तक आ पहुंचे और अभी भी रुकने का नाम नहीं ले रहे। ले भी क्यों,उन्हें तो सुख नहीं दुःख उपजाना है। कभी राम के नाम पर ,कभी बाबर के नाम पर। अपने आपको ठगने वाले लगातार अल्पसंख्यक होते जा रहे हैं। इस देश में अल्पसंख्यक ही सबसे ज्यादा ढगे जाते है।  [कुछ अल्पसंख्यक इसका अपवाद भी हैं] जो अल्पसंख्यक ढगे नहीं जाते उन्हें आतंकवादी,राष्ट्रदोही और करचोर बताकर हिसाब बराबर किया जाता है।
मजे की बात ये है कि अब ठगने को लेकर सियासत होने लगी है ।  आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाने लगे है।  ' अ ' कहता है कि ' ब ' ने देश की जनता को ठगा और 'ब ' कहता है कि ये पुण्य कार्य ' अ ' ने किया। अब 'अ' और ;ब' के अलावा 'स''और 'द' भी इस तरह के आरोप एक-दूसरे पर लगाने लगे है।  लब्बो-लुआब ये है कि देश में ठगी चरम  पर है। जो जितना बड़ा ठग है ,वो उतना बड़ा देशसेवक है। जो ठगने में पीछे है उसे पप्पू कहा जाता है। वैसे ' पप्पू' बनना और बनाना दोनों ही ठगी के समकक्ष माने जाते हैं। अब राजनीति में पप्पू का अर्थ लोकसभा चुनाव के लिए योग्य न होना भी हो गया है।
बहरहाल महागुरु गूगल के मुताबिक़ तो अप्रैल फूल का मतलब दूसरों को मूर्ख बनाना नहीं है । इस दिन की शुरुआत सैकड़ों वर्ष पहले हुई थी. इसकी शुरुआत 1686 में यूके के बायोग्राफर जॉन औबेरी ने की थी ।   वे इसे फूल्स हॉलीडे के तौर पर मनाते थे।  इसके कुछ साल बाद 1698 में लोगों को अफवाह फैलाकर टावर आफ लंदन में जमा किया गया।  उन्हें कहा गया कि वहां से वह दुनिया से खत्म होते शेर को देख पाएंगे।  लोग आए और ऐसा कुछ नहीं हुआ।  अगले दिन अखबार में इस झूठ का पर्दाफाश किया गया।  तब से दुनिया में 1 अप्रैल को झूठ बोलकर लोगों को मूर्ख बनाया जाने लगा है।
आप चाहें तो इस कहानी पर यकीन करें या न करें ? हकीकत ये है कि हम भारतीयों ने हर ठगी के सामने सर झुकाया है। पिछले 2014  से हम अच्छे दिनों के नाम पर ठगे गए ।  पहले कहते हैं कि हमें और आपको गांधी-नेहरू के नाम पर ठगा गया। ठगी के लिए चोले बदलना पड़ते हैं। खुद को अवतार घोषित करवाना पड़ता है ।  गोरखधंधे करना होते हैं। कानों में तेल डालकर रहना पड़ता है ताकि बाहर की ध्वनियाँ भीतर   की ध्वनियों को प्रभावित न करें। बाहर को ध्वनियाँ अक्सर सुनने के लायक नहीं मानी जातीं ,क्योंकि उनका काम ही रोने का है ।  वे कभी मंहगाई के नाम पर रोती हैं तो कभी साम्प्रदायिकता के नाम पर ।  उन्हें तो रोना है। कुछ नहीं है तो वे लोकतंत्र के नाम पर रोने लगतीं हैं। जिस किसी ने इन रुदालियों को अनसुना करने में महारत हासिल कर ली ,समकज लीजिये वो ही कामयाब चौकीदार है।
जब हम अखबारों में थे तब अपने पाठकों को झूठी खबरें  देकर ठगने की कोशिश करते थे । अब ये कोशिशें व्यवसाय बन गयीं हैं। हमारे जमाने में साल में एक दिन की ठगी क्षम्य थी। क्षम्य अब भी है लेकिन तब जब आप पूरे साल लोगों को ठगने में सिद्धहस्त हों। मुझे महीने की पहली तारीख और तारीखों में भी अप्रैल महीने की पहली तारीख हमेशा आकर्षित करती रही है ।  बचपन में किशोर कुमार हर महीने की पहली तारीख को रेडियो पर गाया करते थे' खुश है जमाना आज पहली तारीख है' और वाकई पहली तारीख को जमाना खुश होता था। अब तो पहली तारीख को खुशी का कोई मौक़ा मिलता ही नहीं है। अब पहली तारीख को वेतन मिल ही जाये इसकी कोई गारंटी होती ही नहीं है। गारंटी आखिर दे कौन ?
मेरी हार्दिक कामना है कि महीने की पहली तारीख अंतर्ध्वनि को सुनने की तारीख बन जाए ।  जनता भी अब इस तारीख को ठगों की पहचान की तारीख बना ले। इसके लिए आपको कबीर के बताये रास्ते पर चलते हुए भी ठगों से सावधान होना पडेगा। खुद को ठगिये लेकिन दूसरों को ठगी करने का मौक़ा कभी मत दीजिए ।  2023  में भी और 2024  में भी। ये दोनों साल ही आपको ठगी मुक्त करने के लिए महत्वपूर्ण साल है।  वैसे चुनाव की हर तारीख आपको ठगों से मुक्ति का अवसर देती है । दुर्भाग्य ये है कि आप इसका इस्तेमाल ठीक से करते ही नहीं है।खुद को ठगों से बचाये रखना ही सच्ची देश सेवा है ।  सच्चा राष्ट्रप्रेम है ।  
ठगी को लेकर बाबा कबीरदास जैसा तजुर्बा किसी और के पास है ही नही। यदि होता कोई और भी 'आप ठगे सुख होय' का ज्ञान देता। बाबा कहते हैं कि -
'माया महा ठगनी हम जानी।
 तिरगुन फाँसि लिये कर डोलै, बोलै मधुरी बानी।
 केसव के कमला होइ बैठी, सिव के भवन भवानी।
 पंडा के मूरत होइ बैठी तीरथहू में पानी।
 जोगी के जोगिन होइ बैठी, काहू के कौड़ी कानी।
 भक्तन के भक्तिन होइ बैठी, ब्रह्मा के ब्रह्मानी।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, यह सब अकथ कहानी॥
हमने अपना काम कर दिया। अब आपकी बारी है। आपकी आप जानें।
@ राकेश अचल

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