बम-बम से गूंजी काशी,रंगभरी एकादशी पर विदा हुईं गौरा: विश्वनाथ के स्वर्णिम गर्भगृह में पहली बार विराजीं मां गौरा


        गिरजा शंकर विद्यार्थी ब्यूरों

काशी: बम-बम भोले, हर-हर महादेव शंभू... के जयघोष के बीच हवाओं में उड़ता हुआ गुलाल। डमरू की निनाद और शंखध्वनि की अनवरत गूंज, आसमान से लेकर जमीन तक मानो लाल रंग की चादर सी बिछ गई।

हर हाथ बाबा विश्वनाथ व माता गौरा की पालकी को छूने को आतुर। टेढ़ीनीम की गलियों में ठसाठस भीड़। रंगभरी एकादशी पर माता गौरा की विदाई का उल्लास हर काशीवासी पर नजर आया। टेढ़ीनीम से निकलकर बाबा व माता गौरा की पालकी पहली बार स्वर्णमयी गर्भगृह में विराजमान हुई। काशीवासियों ने बाबा को गुलाल अर्पित करके होली खेलने की अनुमति ली और होली का उल्लास काशी में छा गया। श्री काशी विश्वनाथ के स्वर्णिम गर्भगृह में मां गौरा पहली बार विराजीं हैं। 

 

रंगभरी एकादशी पर शुक्रवार को ब्रह्म मुहूर्त में पूर्व महंत के आवास पर गौने के अनुष्ठान आरंभ हुए। बाबा के साथ माता गौरा की चल प्रतिमा का पंचगव्य और पंचामृत स्नान के बाद दुग्धाभिषेक हुआ। दुग्धाभिषेक की विधियां पं. वाचस्पति तिवारी और संजीव रत्न मिश्र ने पूरी कराई। सुबह पांच से साढ़े आठ बजे तक 11 ब्राह्मणों ने षोडशोपचार पूजन के पश्चात फलाहार का भोग लगाकर महाआरती की। दस बजे चल प्रतिमाओं का राजसी शृंगार एवं पूर्वाह्न साढ़े ग्यारह बजे भोग आरती के बाद बाबा का दर्शन आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया। गलियों में कतारबद्ध श्रद्धालु अबीर, माला और प्रसाद लेकर बाबा विश्वनाथ व माता गौरा की चल प्रतिमाओं के दर्शन के लिए पहुंच रहे थे। डमरूदल के सदस्यों ने बाबा के चरणों में डमरू निनाद से श्रद्धा अर्पित की। 

 

हर किसी की चाहत... बाबा की पालकी छू लें

शाम को पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी ने बाबा विश्वनाथ व माता गौरा की प्रतिमाओं की आरती उतारी। इसके बाद जैसे ही पालकी उठाने का मुहूर्त हुआ तो भक्त भी आतुर हो उठे। टेढ़ीनीम की गली में पूर्व महंत के आवास तक श्रद्धालु कतारबद्ध होकर खड़े रहे। हर हाथ में गुलाल और फूलों की माला दिखी, जिसे बाबा की पालकी पर अर्पित किया गया। सब टकटकी लगाए गलियों के मुहाने को निहारते रहे। जैसे ही आरती का दीपक और दंड गली से बाहर आया तो भीड़ भी बेकाबू हो उठी। श्रद्धालुओं के दबाव को संभालने में पुलिस को मशक्कत करनी पड़ी। पालकी को कंधे पर लेकर जब भक्त गलियों में आगे-आगे और भक्तों की भीड़ पीछे-पीछे।

 

हर कोई बस बाबा की पालकी को छूने के प्रयास में एक दूसरे को धक्का देकर आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा था। हर कोई बस एक बार बाबा को गुलाल अर्पित करके पालकी को छूकर भगवान शिव के परिवार के आशीर्वाद पाना चाह रहा था। जिसने पालकी को छू लिया, उसने खुद को धन्य समझा। जो नहीं छू सके, उन्होंने दूर से ही बाबा को प्रणाम किया। पालकी जैसे-जैसे आगे बढ़ी, वैसे-वैसे भीड़ का दबाव गलियों में बढ़ता गया। बाबा की पालकी का श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में भव्य स्वागत किया गया। चल प्रतिमाओं को गर्भगृह में विराजमान कराने के बाद आरती उतारी गई।

 

शिवांजलि में थिरकते रहे भक्त

शिवांजलि संगीत समारोह का परंपरागत आयोजन भी हुआ। एएम. हर्ष के संयोजन में संगीत समारोह की शुरुआत महेंद्र प्रसन्ना के शहनाई की मंगलध्वनि से हुई। कीर्तिमानधारी शंखवादक हैदराबाद के श्रीवल्लभ, जयपुर के भजन गायक मोहन स्वामी, रुद्रनाद बैंड के लीड सिंगर अमित त्रिवेदी, आराधना सिंह, सरोज वर्मा, पुनीत 'पागल बाबा', संजय दुबे आदि कलाकारों ने भजनों की प्रस्तुतियां दीं।


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