महर्षि अत्रि ने कहा कि जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्यते।
संत रविदास जी महाराज समाज की ऊंचाई और गहराई को पाटने वाले प्रसिद्व संत थे तथा जगतगुरू रामानन्द जी के 12 शिष्यों में एक प्रमुख थे।
इनके शिष्यों में प्रमुख मेवाड़ की महारानी अद्वितीय वैष्णव भक्त माता मीराबाई जी थी।
मीराबाई जी ने अपने पदों में इन्हें साक्षात देवेश्वर कहा था तथा अद्वितीय गुरू बताया था।
मन चंगा तो कठौती में गंगा की पंक्ति को सार्थक करने वाले संत रविदास जी थे
माता मीराबाई त्रेता की मां सीता की सहचरी चन्द्रकला एवं द्वापर मां राधा की सहचरी विशाखा की अवतार थी।
स्वयं रविदास जी ने द्वापर में कृष्ण भक्त एवं भगवान के सखा सुदामा के अवतार थे
महर्षि अत्रि ने कहा है कि माता के गर्भ से तो सभी शूद्र उत्पन्न होते है तथा वे शुभ संस्कारा को धारण करने से वे द्विज/आचार्य बन जाते है।
इस क्षेत्र में शांतिकुंज गायत्री पीठ हरिद्वार एवं इस्कान आदि संस्थाओं द्वारा व्यापक स्तर पर कार्य किया जा रहा है।

डा0 मुरली धर सिंह ‘‘सूर्य‘‘
मो0-7080510637                  
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                                                                                                                                                        लखनऊ/अयोध्या 04 फरवरी 2023। भारत हमेशा संतों की और विभूतियों की पूज्य भूमि रही है। इसलिए इसको आर्यावत कहा जाता है और इसका क्षेत्र मुख्य रूप से हिन्दूकुश पर्वत से लेकर बंगाल की खड़ी तक फैला है। आज संत रविदास जी की जयंती है। एक समाज का अछूत भागवत प्रेमी सिद्व संत ईश्वर का साक्षात्कार दुलारा अपनी अनन्य शिष्य को ईश्वर से मिलाने का जिम्मेदारी लेना वाला, वैसे संत श्री रविदास जी को मैं नमन करता हूं। रविदास जी (1450 से 1520 ई0) माता महारानी परम साध्वी मीराबाई (1498-1547 ई0) इनको भी नमन करता हूं। कारण रविदास जी के अनेक शिष्य हुये, अनेक जागृत हुये पर कोई राजकुमार या राजकुमारी शिष्य नही हुआ। वो शिष्य मीराबाई थी। महाराजा रतन सिंह राठौर की दुलारी महाराजा भोजराज की प्यारी महलों की रानी द्वारिकाधीश की जोगन इनका एक अलग स्थान है। एक राजकुमारी, एक महारानी, एक क्षत्राणी, एक राजपूतनी सुन्दरता की प्रतिमूर्ति मर्यादा और पर्दाप्रथा में जीने वाली मध्यकाल की कठोर राजपूती शान को निभाने वाली अनेक बंदिशों में रहने वाली कृष्ण की बावरी राजस्थान की राधा वृन्दावन की रानी प्रसिद्व कवियत्री और निगुण गायिका महारानी मीराबाई थी। मैं चार महापुरूषों, संतों को जानता हूं जो सभी मध्यकाल में हुये एवं शरीर देवलोक/स्वर्ग हो गये।
1. मीराबाई, 2. चैतन्य महाप्रभु, 3. महात्मा कबीर दास, 4. संत तुकाराम जी
मीराबाई जी जीते जी गुजरात के श्रीकृष्ण सिद्व मंदिर रणछोड़ में विलीन हो गयी। यह गुजरात के डकोर में स्थित है उस मंदिर में मीराबाई को पुजारियों व श्रद्वालुओं ने प्रवेश करते देखा था, पर उस भगवान श्रीकृष्ण के रणछोड़ जी विग्रह से केवल उनकी लिपटी हुई साड़ी दिखी उनका स्वरूप श्रीकृष्ण में विलीन हो गया था। यह सन 1547 की बात है उसी तरह चैतन्य महाप्रभु जी का जीवन उड़ीसा के जगन्नाथपुरी मंदिर में विलीन हो गया था वहां धोती प्रभु श्री लिपटी हुई मिली थी। तीसरा महात्मा कबीर दास जी का भौतिक शरीर साक्षात स्वर्ग को चला गया था जो मगहर में स्थित है वहां केवल दो फूल मिले थे, जो गुलाब के थे।
इसी प्रकार संत तुकाराम जी का शरीर सीधे साकेत गमन हुआ था उनके स्थान पर दो खड़ाऊ मिले थे यह स्थान महाराष्ट्र के पंडरपुर में स्थित है जहां भगवान श्रीकृष्ण को विट्ठल के रूप में पूजा अर्चन किया जाता है।
मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसा सार्मथ्य गुरू जो मीराबाई को मिला जो एक रानी को जोगन बना दिया और मीरा जी उनके सम्बंध में रचना की कि ‘‘गुरू मिलीया रविदास जी-
‘‘गुरू मिलीया रविदास जी दीनी ज्ञान की गुटकी
चोट लगी निजनाम हरी की महारे हिवरे खटकी‘‘
अर्थात गुरू मिल गये रविदास जी जो ज्ञान की गुटकी दिया, ज्ञान का आंख खोला जो हमारे गिरधर से मिला दिया। आप जरा सोचिए एक रविदास संत जो अछूत परिवार में पैदा होते है उनका मूल पेशा चमड़े का है खुद का कोई ठिकाना नही सामाजिक ताना बाना में अंतिम पायदान पर है, पर वैसा व्यक्ति ऐसा सार्मथ्यवान है कि रानी को महल से निकालकर जोगन बना दिया। हमारे उत्तर भारत में 3 महारानियों का नाम आता है जिसमें मेवाड़ की रानी मीराबाई, होल्कर/इन्दौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर और ओरछा बुन्देला की धरती की महारानी गणेशी कंुवर ये तीनों महारानियां अपने काल की सिद्वसंत योगिनी थी। वर्तमान सन्दर्भ में संत रविदास जी जिनका जन्मस्थान काशी के लंका के पास स्थित सिरगोवर्धन में है उस पवित्र स्थान को देखने का मुझे मौका मिला है और जब मैं चिंतन करता हूं एक काशी का संत प्रयाग होते हुये वृन्दावन जाता है और वहां से राजपूताना राजस्थान में प्रवेश करता है और उस समय के प्रतिष्ठित परिवार मेवाड़ की राजकुमारी को महारानी को अपना शिष्य बनाता है और शिष्य के रूप में ऐसा शिष्य जो कहता है कि ‘मेरे तो गिरधर गोपाल आवरो न कोई, मोर पिया बसो गगन मण्डल मा किसविधि मिलन न होय‘ मेरे तो गिरधर गोपाल आवरो न कोई। आज भी मीरा जी को राजस्थान में राजपूती समाज में संत रविदास जी के साथ पूजा जाता है, जीता जागता उदाहरण जोधपुर के महाराज श्री महाराज गजसिंह के राजमहल उमेद भवन में देखा जाता सकता है।
मीरा जी के सन्दर्भ में एक प्रसंग है कि द्वापर काल में माता राधा जी के गांव बरसाने की यह एक गोपिका थी। राधा जी के साथ हमेशा दो गोपीकाये साथ रहती थी एक विशाखा एवं अन्विता उसी में से ये विशाखा जी का औतार था क्योंकि माता सीता के सम्बंध में एक उल्लेख आता है कि उनके साथ दो सहचरी रहती थी एक का नाम चन्द्रकलाजू एवं एक का नाम विमलाजू था उन्हीं का द्वापर में माता राधा के सहचरी के रूप में विशाखा एवं अन्विता जी का अवतार हुआ था वही मध्यकाल में राजस्थान के मेड़ता रियासत में महाराजा रतन सिंह राठौर के पुत्री के रूप में मीरा जी का जन्म हुआ था। संत रविदास स्वयं भगवान के अनन्य भक्त सुदामा जी के अवतार थे। ये अछूत समाज को वैष्णों समाज को जोड़ने के लिए जन्म लिये थे और इनके गुरू वैष्णो समाज के प्रवर्तको में एक जगतगुरू रामानन्द जी थे। इनके
1 अनंतानंद जी, 2 कबीर दास जी, 3 सुखानंद जी, 4 रविदास जी, 5 सुरसुरानंद जी,   6 सुश्री पद्मावति जी, 7 नरहरिदास जी,  8 पीपानरेश जी, 9 भावानंद जी, 10 धन्ना जाट जी,  11 सेना दास जी, 12 सुरसुरानंद जी
12 शिष्य थे जो विभिन्न वर्ग/आज कल की चर्चित जाति की श्रेणी से आते थे सभी को परम गुरूदेव जगतगुरू श्री रामानन्द जी महाराज ने अपने समान बना दिया था तथा स्वयं रामानन्द जी के विषय में सन्त समाज में चर्चा होती है कि ‘‘रमन्ते योगिनां, परमहंसानाम, अति रामम रामानन्दम्।‘‘ अर्थात् स्वयं राममय भगवान राम के ही अंश के रूप में पूजित है। आज वैष्णव सम्प्रदाय के ज्यादातर सन्त महात्मागण मठ मंदिर इसी से जुड़ा हुआ शेष अन्य जैसे कृष्ण के बल्लभाचार्य, निम्बिकाचार्य तथा अनन्त विभूति के रामानुचार्य से जुड़ा है।
 गुरु संत रविदास जी को मीरा बाई के आध्यात्मिक गुरु के रुप में माना जाता है जो कि राजस्थान के राजा की पुत्री और चित्तौड़ की रानी थी। वो संत रविदास के अध्यापन से बेहद प्रभावित थी और उनकी बहुत बड़ी अनुयायी बनी। अपने गुरु के सम्मान में मीरा बाई ने कुछ पंक्तियाँ लिखी है-“गुरु मिलीया रविदास जी” वो अपने माता-पिता की एक मात्र संतान थी जो बाद में चितौड़ की रानी बनी। मीरा बाई ने बचपन में ही अपनी माँ को खो दिया जिसके बाद वो अपने दादा जी के संरक्षण में आ गयी जो कि रविदास जी के अनुयायी थे। वो अपने दादा जी के साथ कई बार गुरु रविदास से मिली और उनसे काफी प्रभावित हुयी। अपने विवाह के बाद, उन्हें और उनके पति को गुरु जी से आशीर्वाद प्राप्त हुआ। बाद में मीराबाई ने अपने पति और ससुराल पक्ष के लोगों की सहमति से गुरु जी को अपने वास्तविक गुरु के रुप में स्वीकार किया। इसके बाद उन्होंने गुरु जी के सभी धर्मों के उपदेशों को सुनना शुरु कर दिया जिसने उनके ऊपर गहरा प्रभाव छोड़ा और वो प्रभु भक्ति की ओर आकर्षित हो गयी। कृष्ण प्रेम में डूबी मीराबाई भक्ति गीत गाने लगी और दैवीय शक्ति का गुणगान करने लगी।
समाज में बराबरी, सभी भगवान एक है, इंसानियत, उनकी अच्छाई और बहुत से कारणों की वजह से बदलते समय के साथ संत रविदास के अनुयायीयों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी। दूसरी तरफ, कुछ  और पीरन दित्ता मिरासी गुरु जी को मारने की योजना बना रहे थे इस वजह से उन लोगों ने गाँव से दूर एक एकांत जगह पर मिलने का समय तय किया। किसी विषय पर चर्चा के लिये उन लोगों ने गुरु जी को वहाँ पर बुलाया जहाँ उन्होंने गुरु जी की हत्या की साजिश रची थी हालाँकि गुरु जी को अपनी दैवीय शक्ति की वजह से पहले से ही सब कुछ पता चल गया था जैसे ही चर्चा शुरु हुई, गुरु जी उन्ही के एक साथी भल्ला नाथ के रुप में दिखायी दिये जो कि गलती से तब मारा गया था। बाद में जब गुरु जी ने अपने झोपड़े में शंखनाद किया, तो सभी हत्यारे गुरु जी को जिंदा देख भौंचक्के रह गये तब वो हत्या की जगह पर गये जहाँ पर उन्होंने संत रविदास की जगह अपने ही साथी भल्ला नाथ की लाश पायी।
माघ महीने में भगवान विष्णु का गंगा जी में वास होता है पूर्णिमा के दिन ही भगवान के एवं उनके भक्तों के अनेक अवतार हुये है उसमें एक प्रसिद्व भक्त रविदास जी है। आज के वर्तमान सन्दर्भ में जहां हमारे देश के संत महात्माओं की रचनाओं पर टिप्पणी की जा रही है उस पर हमें मूर्त रूप से पुनः व्याख्या की आवश्यकता है, जहां तक रामायण का उल्लेख है हमारे इस देश आर्यावत में पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण में 27 रामायण प्रचलित है जिसमें उत्तर भारत में श्रीमद् बाल्मीकि रामायण, श्री आनन्द रामायण एवं श्री गोस्वामी तुलसी दास जी द्वारा रचित रामायण प्रचलित है, पर हमें महापुरूषों या भगवान के कथाओं पर चर्चा के समय उनके अवतारों एवं मर्यादाओं से सम्बंधित धार्मिक साहित्यों का प्रमाणिक अध्ययन करना चाहिए और जिस समाज के बारे में टिप्पणी की जाती है उस समय समाज के ही मुख्य लोगों को टिप्पणी करनी चाहिए। गैर समाज के लोगों का तथा कथातथित विद्वानों एवं मीडिया घरानों को भी हमारे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 का अध्ययन कर ही टिप्पणी करनी चाहिए। जहां तक मेरा अनुभव है किसी संत या महापुरूष की कोई विशेष वर्ग या जाति नही होती है अर्थात जो हरि को भजे हरि को होई। वह महापुरूष पूरे राष्ट्र एवं समाज का धरोहर होता है उस धरोहरों को यदि हम सम्मान नही करेंगे तो सम्मान कौन करेगा और किसी भी विद्वान को ऐसे लोगों को आमांत्रित कर उसका बौद्विक समाधान खोजना चाहिए। हमारे रविदास जी के जीवन में अनेक घटनायें हुई जिनका सम्बंध गोस्वामी तुलसीदास जी से भी रहा। आज इनके जयंती पर यह लेख समर्पित किया जा रहा है क्योंकि विद्वान की या संत की या किसी अवतारिक पुरूष की कोई जाति या वर्ग नही होता है। वह हमारे धरोहर है हम भी महापुरूषों के सत्संग से पाया कि कोई भी व्यक्ति जिस क्षेत्र में डूबता है वह पाता है मैं भी एक पिछड़े समाज एवं पिछड़े क्षेत्र प्रदेश (बिहार) से आता हूं जहां पर सभी समाज में अन्र्तविरोध होते हुये भी आपसी सद्भाव है। यह धरती भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान गौतम बुद्व की है उनकी मर्यादाओं का पालन कर तथा गांधी जी के नेतृत्व में आजादी के मानदण्डों का पालन करते हुये भारत रत्न डा0 भीमराव अम्बेडकर जी द्वारा तैयार किये गये संविधान के अनुसार सभी को सम्मानित करते हुये अपनी बात एक सीमा में एक दूसरे की मर्यादाओं का ख्याल रखना चाहिए तभी हमें राष्ट्र को और समाज को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।

नोट-लेखक पूर्व में भारत सरकार और वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार के प्रथम श्रेणी के अधिकारी है तथा अनेक छात्र संघों में पदाधिकारी भी रहे है। इन्होंने बान प्रस्थ आश्रम के आचारण एवं विचार को अपना लिया है तथा ईस्कान के पैट्रान भी है तथा अयोध्या में साधनाश्रम अयोध्या धाम के सहसंस्थापक में एक है तथा यह लेख भारतीय संविधान अनुच्छेद 19 के तहत लिखा गया है तथा पूज्य गुरूदेव रविदास जी की जयंती पर सभी को नमन। मैं यह विचार महर्षि अत्रि, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महाराजा जनक की परम्पराओं को मानते हुये आम जनमानस में समर्पित कर रहा हूं तथा किसी विद्वान को संदेह हो तो मुझसे आर्यावत में स्थापित सप्तपुरियों में से कहीं भी शास्त्रार्थ या सत्संग कर सकता है।
                                                                                                                                                         जय श्रीराम, जय अयोध्या धाम, जय हनुमान जी महाराज
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