संतोष कुमार श्रीवास्तव, अयोध्या विधानसभा रिपोर्टर
" सुनहरी शाम " 
चले आओ कि फिर वैसी,सुनहरी शाम हो जाए। 
तुम्हारे साथ जुड़ कर के , मेरा भी नाम हो जाए।।
बहुत  दुश्वारियों  में  जी  रहा  हूं , जिंदगी में भी। 
अगर तुम चाह दो मन से,तो मेरा काम हो जाए।।
बना लो तुम मुझे अपना ,अकेले रह न जाऊं मैं। 
समर्पण कर दूं मैं  जीवन , मुझे आराम हो जाए।। 
किसी का है नहीं कोई,मिलावट की ये दुनिया है।
जहां  ऐसी  हमें  दे दो कि ,अल्ला- राम हो जाए।।
नगर  में  बस  गए जबसे ,दीवारें कैद कर डाली।
सभी  बेचैनियों  से  अब यहां , विराम  हो जाए।।
दीवारें कान बनकर सुन रहीं ,चुगली करोगे तुम। 
बच्चे  हम  हर बुराई से , भले बदनाम  हो जाएं।।
मुझे साथी बना लो प्रेम की,गलियों में खो जाएं।
भले  ही  जिंदगी  के  रास्ते , सब जाम हो जाएं।।
किसी के काम आ जाना,सफलता है जी जीवन का।
जुबां पर हर किसी के बस , यही पैगाम हो जाए।।..."अनंग "

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