पितरो की अतृप्ति क्या पृथ्वी पर भयंकर उत्पात लाती है जानते हैं डॉ सुमित्रा से

सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल 
इंटरनेशनल वास्तु अकडेमी 
सिटी प्रेजिडेंट कोलकाता 
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मृत्यु एक अटल और अचल सत्य है। जहाँ एक तरफ हम ये जानते हैं कि मृत्यु पे व्यक्ति का वश नहीं होता है वही दूसरी तरफ हम महाभारत के प्रमुख पत्र भीष्म पितामह को भी जानते हैं जिनको इक्छा मृत्यु प्राप्त थी। भीष्म पितामह ने अपनी इच्छा से अपने प्राण त्यागे थे। करीब ५८ दिनों तक मृत्यु शैया पर लेटे रहने के बाद जब सूर्य उत्तरायण हो गया तब माघ माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म पितामह ने अपने शरीर को छोड़ा था। 

उत्तरायण और दक्षिणायन क्या है :

हिंदू पंचांग के अनुसार जब सूर्य मकर से मिथुन राशि तक भ्रमण करता है, तो इस अंतराल को उत्तरायण कहते हैं। सूर्य के उत्तरायण की यह अवधि 6 माह की होती है। वहीं जब सूर्य कर्क राशि से धनु राशि तक भ्रमण करता है तब इस समय को दक्षिणायन कहते हैं। दक्षिणायन को नकारात्मकता और उत्तरायण को सकारात्मकता के साथ जोड़ा जाता है।

ज्योतिष की दृस्टि से मृत्यु :

ज्योतिषीय दृष्टि से देखें तो कोई भी जीव की मृत्यु के बाद उनकी जीवात्मा तेजस्वरूप होकर गमन करती है और वह तेजपुंज सूर्य की ओर बढ़ती है। शुक्लपक्ष व उत्तरायणकाल में सूर्य से चन्द्र ठीक सामने 180 अंश पर पहुंचने की चेष्टा करने लगता है जिससे सूर्य मार्ग बाधारहित होता है, सो जीवात्मा सूर्यमंडल में विलीन होकर मुक्त हो जाता है लेकिन कृष्णपक्ष में चन्द्र-सूर्य की ओर जाने लगता है और पूर्ण बली हो कर चलता है तो जो जीवात्मा सूर्य की ओर बढ़ता है उसे चंद्र अपनी ओर आकर्षित कर अपनी ऊर्ध्व कक्षा (पितर लोक) में व्यवस्थित कर लेता है।

श्राद्धादि क्रिया कब की जाती है और विशेष समय क्यों की जाती है :

अश्विन मास में जब कृष्ण पक्ष आता है तो श्राद्धादि क्रिया किसी भी जीव (प्रेत) के निमित्त उसकी मृत्यु की तिथि को ही की जाती है क्योंकि चन्द्र की वही कला उस तिथि को होती है जो कि जीव के मृत्यु के समय थी  इसलिए उस तिथि को चन्द्र की ऊर्ध्व कक्षा जो पितरलोक है उसी अवस्था में पृथ्वी के सम्मुख रहती है जिसमें वह जीवात्मा को स्थान प्राप्त है और उसके परिवार के द्वारा दिया गया, श्राद्धादि आदि द्रव्य उसे सीधा प्राप्त होता है। इस क्रियाओं का आश्विन कृष्ण पक्ष में विशेष रूप से तथा प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तथा अमावस्या को ही करने का विधान बताया गया है क्योंकि त्रयोदशी तथा अमावस्या को चन्द्रपिण्ड सूर्य के अत्यधिक समीप होता है तथा चन्द्र कक्षा (पितरलोक) पृथ्वी से अत्यधिक दृष्ट या सीध में होता है। 

कौन सी तिथि त्याज्य है 

श्राद्ध विषय कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि, रिक्ता संज्ञक होने से त्याज्य होती है। इसलिए कभी-कभी जब अमावस्या को चन्द्रकला का लेशमात्र भी दर्शन इस पृथ्वी पर हुआ है, भयंकर उत्पात सिद्ध हुए हैं। क्योंकि शायद ये पितरो की अतृप्त होकर जनता में या पृथ्वी पर अति भय उत्पन्न करते हैं।

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