*भाषा किसी देश की सांस्कृतिक समृद्धि की सूचक होती है*

लेखिका - *डॉ कामिनी वर्मा*
लखनऊ ( उत्तर प्रदेश )

वैचारिक संप्रेषण के लिए भाषा की आवश्यकता होती है। धरती पर जब से मनुष्य का अस्तित्व है तभी से वह भाषा का प्रयोग कर रहा है। ध्वनि एवं संकेत दोनों रूपों में वैचारिक आदान - प्रदान होता रहा है । भारत भाषा और बोलियों की दृष्टि से समृद्ध देश है । भारत के लिए कहा जाता है कि

*कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी*

यहाँ अनगिनत भाषाएं व बोलियां बोली जाती हैं। वर्तमान में लगभग 780 भाषाएं व 2000 बोलियां प्रचलित है । भाषा और बोली देश की सांस्कृतिक समृद्धि की सूचक होती है । परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है , जैसे जैसे जीवन परिवर्तित होता है वैसे वैसे सांस्कृतिक मूल्य भी परिवर्तित होते हैं। मनुष्य का जीवन स्तर, आचार - विचार, रहन -सहन में बदलाव का प्रभाव भाषा व बोली पर भी पड़ता है। पिछले 50 वर्षों में भारत में  220 भाषाएं प्रचलन से बाहर हो गईं और आगे आने वाले 50 वर्षों में 150 भाषाएं समाप्त होने के कगार पर हैं।
भाषा का राष्ट्र की एकता , अखंडता व विकास में महत्वपूर्ण योगदान होता है । राष्ट्रभाषा देश को भावनात्मक व सांस्कृतिक रूप से संगठित करने में सहायक होती है । प्राचीन काल में कश्मीर से कन्याकुमारी तक , आसाम से लेकर सौराष्ट्र तक समस्त सांस्कृतिक तथा धार्मिक चर्चा व वैचारिक आदान - प्रदान संस्कृत भाषा में होता था ।
विदेशी आक्रमण व अपनी क्लिष्टता के कारण इसका महत्व न्यून हुआ और हिंदी वैचारिक अभिव्यक्ति की भाषा बनी । इसका सम्पूर्ण राष्ट्र की एकता, अखंडता व सांस्कृतिक समृद्धि में अमूल्य योगदान है ।यह मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान , उत्तर प्रदेश , उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश में मुख्य रूप से बोली जाती है ।

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