इंटरनेट और बदलते मनोरंजन साधन 


            ✍ गिरजा शंकर गुप्ता ब्यूरों
परिवर्तन प्रकृति का अटल सत्य है। कोई भी चीज स्थित नहीं है। हर चीज में परिवर्तन आता रहता है। चाहे मनुष्य के जन्म से लेकर उसकी अंतिम सांस तक के घटनाक्रम को देखें या जमीन में बीज डालने या पौधा रोपण के उपरांत साल दर साल उसमें आने वाले बदलाव को। हर मामले में परिवर्तन साफ दिखाई देता है।
कमोबेश यही आलम हमारे के मनोरंजन के साधन का है। इस पूरी कायनात में मनुष्य ही इकलौता ऐसा प्राणी है जो हर काम में सुख और दुख दोनों ही खोज लेता है। अगर काम उसके मन को भाता है तो वह खुशी हो जाता है और अगर काम उसके मन माफिक नहीं होता है तो वह दुखी भी होता है। सदियों पहले भी मनुष्य के द्वारा अपने मनोरंजन के साधनों को खोजा गया था। किसी दौर में मुर्गों की लड़ाई तो किसी दौर में जानवरों की। कभी इंसानों को जानवर से भिड़ाकर मनोरंजन किया जाता था तो किसी दौर में नर्तकियों के नृत्य के जरिए मनोरंजन किए जाते थे।
बीसवीं सदी में पचास के दशक के उपरांत जब देश आजाद हुआ उसके बाद मनोरंजन के साधनों में बहुत तेजी से बदलाव हुआ है। इस परिवर्तन की साक्षात गवाह है आज उमर दराज या प्रौढ़ हो रही पीढ़ी। इस पीढ़ी ने संचार माध्यमों में तेजी से हुए बदलाव का अनुभव किया है। आजादी के बाद रेडियो की आवाज शाम ढलते ही पसरे सन्नाटे में सुनाई दे जाती थी। रेडियो पर बिनाका गीत माला, फौजी भाईयों की पसंद, एस कुमार्स का फिल्मी मुकदमा आदि जैसे कार्यक्रम अस्सी के दशक तक सर चढ़कर बोला करते थे। उस दौर में जो लोग आर्थिक रूप से सक्षम थे उनके घरों पर ग्रामोफोन हुआ करतेे थे।
कालांतर में जब टीवी आया तब दूरदर्शन ने अपना सिक्का जमाया। सरकार के सीधे नियंत्रण वाले इस संचार माध्यम पर रविवार की शाम एक फिल्म दिखाई जाती थी। उस दौर में श्वेत श्याम (ब्लेक एण्ड व्हाईट) टीवी को ही लोग अपनी सबसे बड़ी संपत्ति भी माना करते थे। समय बदलता गया। 1982 के एशियाड के दौरान देश में कलर्ड टीवी आया। इसके बाद फिल्म देखने के लिए वीसीआर का पदार्पण हुआ। वीसीआर आज भी अनेक घरों में रखे हुए हैं। इसमें कैसिट के जरिए फिल्में देखी जाती थीं। मेले ठेले एवं अन्य आयोजनों के दौरान वीसीआर जिसे वीडियो भी कहा जाता था में फिल्में देखना उस दौर के लोगों का प्यारा शगल हुआ करता था।
धीरे धीरे तकनीक और अधिक समृद्ध हुई। तब वीडियो कैसेट्स गुजरे जमाने की बातें हो गईं। इनका स्थान सीडी, फिर डीवीडी ने ले लिया। अब तो पेन ड्राईव में ही न जाने कितना डाटा रखा जा सकता है। इसमें एक नहीं अनेक फिल्में भी डाऊन लोड की जा सकती हैं। संचार क्रांति के इस युग में इंटरनेट का जादू सब पर विशेषकर युवा वर्ग पर छाया हुआ है। इंटरनेट के इस जमाने में टीवी की सांसें अब फूलती दिख रही हैं। अब तो आप अपने लैपटॉप या मोबाईल से एक विशेष तरह की केबल कनेक्ट कर टीवी पर इंटरनेट के जरिए मनोरंजन कर सकते हैं, फिल्में, सीरीज या सीरियल देख सकते हैं। इंटरनेट पर जिस तरह की विविधता और तकनीक पसरी हुई है वह आधुनिकता और गति टीवी के पास दिखाई नहीं देती है।
यह सही है कि देश में शिक्षा एवं मनोरंजन के प्रसार को लेकर दूरदर्शन का आगाज किया गया था। जबसे टीवी चैनल्स और अन्य मनोरंजन के चैनल्स आए हैं उसके बाद से दूरदर्शन की पूछ परख कम ही हो गई है। रही बात रेडियो की तो रेडियो भी अब कम ही दिखाई और सुनाई दे रहे हैं। दरअसल, दूरदर्शन को सरकार के नीति निर्धारकों ने लकीर के फकीर की तरह ही इस्तेमाल किया गया। आज भी दूरदर्शन और आकाशवाणी पर लाखों करोड़ों रूपए खर्च किए जा रहे हैं किन्तु शिक्षा और मनोरंजन के क्षेत्र में इसका प्रभाव कितना पड़ रहा है, इस बारे में आंकलन की फुर्सत हुक्मरानों को नही मिल पाई है। समय के साथ कदम ताल न कर पाने के कारण दूरदर्शन और आकशवाणी का प्रभाव कम ही प्रतीत हो रहा है।
कंसलटेंसी संस्थाओं की संयुक्त रिपोर्टस के अनुसार देश के अस्सी फीसदी दर्शक अब अपने मनोरंजन की जरूरतों के लिए ऑनलाईन कंटेंट्स पर निर्भर हो चुके हैं। इसमें फिल्में देखने से लेकर मैच देखने तक की बात शामिल है। इस सर्वे के अनुसार देश के आधे से ज्यादा दर्शक अब टीवी देखने से परहेज ही करते हैं। बताते हैं कि यह सर्वेक्षण देश के डेढ़ दर्जन सूबों में किया गया है। इसकी रिपोर्ट को अगर सही माना जाए तो आने वाले चार सालों में ही ऑनलाइन वीडियो उपभोक्ताओं की तादाद पांच सौ मिलियन के आसपास हो जाएगी। अगर यह हुआ तो चीन के बाद भारत इस मामले में दूसरे नंबर पर सबसे बड़े बाजार के रूप में उभकर सामने आ सकता है।
इंटरनेट पर नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राईम जैसी सुविधाओं के चलते भी उपभोक्ता टीवी के बजाए ऑनलाइन ही मनोरंजन करने की राह में आगे बढ़ता दिख रहा है। इस तरह की सुविधाओं में उपभोक्ताओं की बढ़ती तादाद इस बात का संकेत है कि आने वाले समय में बहुत कुछ बदलने वाला है। अब तो बीएसएनएल के कुछ प्लान्स में अमेजन प्राईम की एक साल की सदस्यता भी निशुल्क मिल रही है। अगर यह सब हुआ तो रेडियो एवं दूरदर्शन की तरह ही टीवी पर मनोरंजन व समाचारों के चेनल्स इतिहास की बातों में शुमार हो सकते हैं।

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