"स्वागत है बीमारियों की दुनिया में"

   आपका स्वागत है इस बीमार दुनिया में।आप सब किसी न किसी बीमारी में मुब्तला हैं।फिर या तो आप बरसों से डॉक्टर का चक्कर काट रहे हैं या उसके सुझाव पर सुबह से शाम तक अनगिनत दवाएं ले रहे हैं।
   आज का सबसे चर्चित बीमारी "डायबिटीज" ही तो है  जो हमारे तिब्ब यूनानी चिकित्सा पद्धति में सिरे से बीमारी है ही नहीं।बल्कि यह किसी बीमारी का "लक्षण" ही तो है।  
   आप मेरे इस पोस्ट को पढ़कर अपना ईरादा बदलने पर मजबूर हो जाएंगे, और ऐलोपैथिक दवा कभी भी नहीं लेंगे, ये मेरा दावा है।क्योंकि संसार के किसी भी हिस्से में आजतक ऐसा नहीं देखा गया कि दस,बीस, तीस या चालीस साल तक ऐलोपैथिक दवा का सेवन करने वाला "डायबिटीज" का रोगी स्वस्थ्य हो गया और दवाओं का सेवन बंद कर दिया।
   डायबिटीज के मेकानिज़्म को समझना जरूरी है।अगर अब भी न समझे तो ये फार्मास्युटिकल कंपनियां आगे भी आपको बीमारियों और दवाओं के बीच झूला झुलाती रहेंगी।क्योंकि, "डायबिटीज" यानि "ब्लड शुगर" ही सारे रोगों की जड़ है।तो,आइये मेकानिज़्म समझते हैं:-
  हम कुछ भी खाते हैं तो वो " ग्लूकोज़" ही बनता है जिससे हमें "एनर्जी" मिलती है।लेकिन, वो एनर्जी तभी मिलेगी जब ये "ग्लूकोज़" शरीर के हर "सेल" में जाए।ट्रक समान ब्लड "ग्लूकोज़ को लेकर भ्रमण करते हुए हर सेल के दरवाजे तक पहुंचता है,मगर सेल के अंदर दाखिल नहीं हो पाता, क्योंकि सेल का दरवाजा बंद रहता है।जिसे खोलने के लिए एक चाभी की ज़रूरत पड़ती है, जिसका नाम "ईन्सुलीन" है।ईन्सुलीन की प्रचूर मात्रा जबतक हमारे शरीर के भीतर मौजूद है तबतक ये मेकानिज़्म सुचारू ढंग से चलता रहता है।ड्रामा तो तब शुरू होता है जब ईन्सुलीन की कमी होने लगती है।
   अगर ग्लूकोज़ सेल का दरवाजा बंद होने की सूरत में  सेल के अंदर दाखिल न हो पाया तो उसके दरवाजे पर ही आर्ट्रीज़ के अंदर ग्लूकोज़ गिरा देता है।जिससे उस जगह पर चिपचिपा पन होने लगता है,और फिर वहाँ पर कोलेस्ट्रॉल, वसा ,खनिज,लवण ईत्यादि चिपकने लगते हैं।और रक्त धमनियों के अंदर उन कचरों के जमाव की वजह से संकरा होने लगता है।ये सूरतहाल अधिक समय तक रहने पर सेल की बजाय खून में ही ग्लूकोज़ घूमता रहता है।खून की जांच करने पर पता चलता है कि आपका शूगर लेवल बहुत बढ़ गया है।डॉक्टर आपको दवा देकर ग्लूकोज़ का नम्बर घटाकर बोलता है कि आपका शूगर लेवल नार्मल आ गया है, मगर दवाएं हमेशा लेते रहें वरन शूगर बढ़ जाएगा।
    इनकी चालाकी देखिये कि दवा खिलाकर शूगर का नम्बर तो घटा दिया, मगर आप ही उनसे सवाल करें कि ब्लड शुगर का लेवल तो घट गया, लेकिन ब्लड वाला बढ़ा हुआ शूगर कहां चला गया।इस सवाल का जवाब उनके पास है ही नहीं।और, दूसरा ये कि आज मेडिकल साईंस इतना तरक्की कर गया है, मगर खून की नली में जमने वाले उस कचरे को साफ करनेवाली दवा आजतक नहीं ईजाद की जा सकी।वरना "डायबिटीज" से एक भी ईन्सान घुट घुटकर नहीं मरता।आंखों की रौशनी नहीं खोता, किसी की किडनी फेल नहीं होती, और गैंगरीन होने की स्थिति में किसी का पांव नहीं काटना पड़ता।
   इसी तरह के कचरे का जमाव किसी भी बीमारी का कारण बनता है।यानी सभी प्रकार के रोगों का एक मात्र कारण यही कचरे का जमाव है।ये कचरा ग्लूकोज़ और ईन्सुलीन के बीच का आपसी तालमेल गड़बड़ हो जाना है।अगर इस कचरे को साफ कर दिया जाए और ग्लूकोज़ व ईन्सुलीन के अनुपात को ठीक कर दिया जाए तो डायबिटीज ही नहीं,बल्कि हर प्रकार की बीमारियां हमेशा केलिए समाप्त हो जाएंगे।लेकिन ऐसाआजतक नहीं हो पाया,जबकि मेडिकल साईंस इतना तरक्की कर गया है।
   मैं ने एक दवा तैयार की है जो ये सारे काम करने में सक्षम है।
   मुझे पता है,बीमारियों का कारण केवल "एक" है।इसलिए उस एक "कारण" को दुरुस्त कर देने से कोई भी रोग दुरुस्त हो जाता है।
  * "मैं तो ऐसा ही करता हूँ,वो भी केवल एक दवा HEALTH IN BOX के द्वारा"
  इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपना विचार अवश्य व्यक्त करें, मुझे अच्छा लगेगा| साथ ही आगे अपने सर्किल में ज़रुर शेयर करें |      
   * मेरे पास दवा केवल एक ही है, जो पावडर की शक्ल में है| 4 - 4 ग्राम सुबह-शाम काढ़ा बनाकर पीना है|
   * ₹ 3000/- रूपये एक महीना (किसी भी बीमारी के लिए) है।
   * ₹ 6000/- रुपए एक महीना (CANCER & TUMOUR HIV-AIDS के लिए) है।
   * इंडिया या इंडिया के बाहर कहीं भी "स्पीड पोस्ट" के द्वारा दवा भेजने का इंतज़ाम है|
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