भारतीय समाज के समस्त धर्म, ग्रन्थ एवं पुराण में सिर्फ दो ही बातों की समानता देखने को मिलती है “दुःख दीन्हे दुःख होत है सुख दीन्हे सुख होय” | यानि कि प्राणी मात्र को सिर्फ अपने सुख-दुखो का ध्यान न देकर अपने द्वारा किये गये कार्यों से किन-किन व्यक्तियों को वह सुख अर्थात सुकून पहुचता है और किन-किन लोगों को दुःख इसका भी आकलन करके उसे वह कार्य सम्पादित करना चाहिये | यह भी कटु सत्य है कि आपके द्वारा किये गये कार्यों से हो सकता है कि कुछ लोगों को कष्ट अवश्य हो पर वहाँ पर इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि कष्ट प्राप्त करने वाले लोगों की तुलना में सुकून प्राप्त करने वाले लोगों कि संख्या क्या है यदि सुकून प्राप्त करने वालो कि संख्या अधिक है और वह कार्य जो आप कर रहे हो वो न्यायोचित भी है तो जरुर करना चाहिये |


दुनिया भर के विद्वानों का एक ही मानना है कि आप जो कर्म करोगे वह इसी जन्म में किसी न किसी रूप में आपको मिलेगा | यदि यहाँ पर हिंदू धर्म की मान्यता कि बात करें तो उस धर्म की मान्यता के अनुशार वर्तमान चरण कलयुग का है और इस युग में किये गये प्रत्येक व्यक्तियों के छोटे बड़े कार्यों के लिये वह स्वयं में उत्तरदायी है और उनको इसी जीवन काल में उसके लाभ-हानि से रूबरू होना पड़ेगा | हिंदू धर्म के पुराणों में तो यहाँ तक वर्णित है कि इस युग में लोग अपने कुरीतियों और अवैधानिक कर्मो में इतना तल्लीन हो जायेगे की माँ-बेटे, भाई-बहन जैसे प्रमाणित रिश्तों कि सीमाए तक भूल जायेंगे | चारो तरफ़ अधर्म का बोल बाला होगा | ज्ञान पर अज्ञान भारी होगा | ऐसे लोग जो झूठो और पापों पर केंद्रित काम करेंगे उन्हें तरक्की कम समय में तेजी से मिलेगी लेकिन उनका अंत अत्यंत ही दर्दनाक भी होगा |


जिन बातो का विवरण आज से कई वर्षों पूर्व इन धर्म ग्रंथो में किया गया है वह आज शतप्रतिशत आज के समाज में दिख रहा है | चारो तरफ़ पूर्वनिर्धारित ग्रंथो की मान्यताओ में वर्णित विवरण दिख रहें है | लोग क्षणिक लाभ के लिये किसी को मारने से भी नही गुरेज कर रहें है | ऐसे माहौल में एक ईमानदार निष्पक्ष्ण न्यायप्रिय लोगों को भी कई तरह कि विषम परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है हलाकि यह सार्वभौमिक सत्य है कि अंततः ऐसे लोगों कि विजय होती है |


लोग जिन लाभों के लिये यह सब कर रहें है वास्तव में वो उसका आनंद उठा ही नही पाते और अपने कर्मो से पाप का घड़ा भरते रहते है जिससे एक न एक दिन उन्हें उस कर्मो के परिणाम के रूप में उस स्थिति का सामना करना पड़ता है और वो चाह कर के भी उस समय अपने कर्मो को परिवर्तीत नही कर सकते क्योकि समय व्यतीत हो चूका होता है जो पुनः लौट के नही आता | हमें ऐसे कर्म करने चाहिये जो हमारे कर्म रुपी घड़े को धीरे –धीरे इस रूप में पूर्ति करे कि अंत न केवल अच्छा हो बल्कि लोग आपका उदाहरण दे | इस उपलब्धि को पाने के लिये किसी बड़े कार्य करने की भी जरुरत नही है जरुरत है तो सिर्फ इस बात का ध्यान देने की कि “दुःख दीन्हे दुःख होत है सुख दीन्हे सुख होय”


इन्ही दो पक्ति के मूल सिधान्तो को अपनाकर न केवल हम अपना जीवन बेहतर कर सकतें है बल्कि अपने आने वाली पीड़ी का भी भविष्य सवार सकते है क्योकि हमारे संस्कार ही अगली पीड़ी के काम आते है | फिर हमें भी गर्व होगा इस अंधेर नगरी में जहाँ पाप अपनी गहरी पैठ बना चूका है वह हम अपनी उपस्थिति से और अपने कर्मो से आम लोगों में कही न कही यह सन्देश देने में भी सफल होंगे कि ईश्वर आज भी विद्यमान है तभी तो संख्या में कम ही सही, हम आप जैसे लोग आज भी विद्यमान है और कल भी विद्यमान रहेंगे |

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