दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर का हीरक जयन्ती समारोह
मुख्यमंत्री ने विश्वविद्यालय में महन्त दिग्विजयनाथ प्रेक्षागृह एवं हीरक जयन्ती द्वार का शिलान्यास तथा हीरक जयन्ती स्पोर्ट्स स्टेडियम के शिलापट्ट का अनावरण किया
डाक विभाग के विशेष डाक कवर, विश्वविद्यालय की स्मारिका एवं
विश्वविद्यालय के प्राध्यापकां द्वारा लिखित पुस्तकों का विमोचन
तथा विश्वविद्यालय के पुरातन छात्रों को सम्मानित किया
विश्वविद्यालय 75 वर्षों की यात्रा को पूर्ण कर आज एक नई यात्रा पर आगे
बढ़ रहा, यह अपनी स्मृतियों को स्मरण करने तथा आगामी 25
वर्षों की कार्ययोजना बनाने का अवसर : मुख्यमंत्री
संविधान लागू होने के बाद स्वतंत्र भारत
का पहला विश्वविद्यालय गोरखपुर में स्थापित हुआ
विश्वविद्यालय को अगले 25 वर्षां की कार्ययोजना में सर्वांगीण विकास के
भाव से एक क्षेत्र में विशिष्टता प्राप्त करने के प्रयास को आगे बढ़ाना होगा
विश्वविद्यालय में ऑडिटोरियम के साथ ही एक लाइब्रेरी बनायें, पुस्तकालय में
ग्रन्थों के संकलन के कार्य को आगे बढ़ाना चाहिए, विश्वविद्यालय
से जुड़ी उपलब्धियों को डिजिटल रूप में संग्रहीत करें
ज्ञान के प्रवाह को समाज के अन्तिम व्यक्ति तक पहुंचाने
के लिए स्वस्थ संवाद की परम्परा को आगे बढ़ाने की आवश्यकता
विश्वविद्यालय सोशल इम्पैक्ट स्टडी के कार्यां को आगे बढ़ा सकते
आज हर क्षेत्र में बदलाव आया, जनपद गोरखपुर को लखनऊ से
जोड़ने के लिए राप्ती नदी पर 04 पुल हैं तथा 02 पुल और बन रहे
क्षेत्र में बेहतरीन कनेक्टिविटी स्थापित हो चुकी
लखनऊ : 30 अप्रैल, 2025
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने आज गोरखपुर में दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हीरक जयन्ती समारोह के अवसर पर विश्वविद्यालय में महन्त दिग्विजयनाथ प्रेक्षागृह एवं हीरक जयन्ती द्वार का शिलान्यास तथा हीरक जयन्ती स्पोर्ट्स स्टेडियम के शिलापट्ट का अनावरण किया। उन्होंने डाक विभाग के विशेष डाक कवर, विश्वविद्यालय की स्मारिका एवं विश्वविद्यालय के प्राध्यापकां द्वारा लिखित पुस्तकों का विमोचन किया तथा विश्वविद्यालय के पुरातन छात्रों को सम्मानित भी किया।
मुख्यमंत्री जी ने दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर की हीरक जयन्ती की बधाई एवं शुभकामनाएं देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय 75 वर्षों की यात्रा को पूर्ण कर आज एक नई यात्रा पर आगे बढ़ रहा है। यह 75 वर्ष की स्मृतियों को स्मरण करने तथा आगामी 25 वर्षों की कार्ययोजना बनाने का अवसर है। मई, 1950 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं0 गोविन्द बल्लभ पंत द्वारा दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी गयी थी।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि 24 जनवरी, 1950 को उत्तर प्रदेश राज्य का नोटिफिकेशन जारी हुआ था। 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ था। संविधान लागू होने के बाद स्वतंत्र भारत का पहला विश्वविद्यालय गोरखपुर में स्थापित हुआ। यह यात्रा अचानक प्रारम्भ नहीं हुई थी। उस समय गोरखपुर के कुछ विशिष्ट लोग चाहते थे कि गोरखपुर उच्च शिक्षा का केन्द्र बने। उस समय संसाधन नही थे। गोरखपुर को जोड़ने के लिए व्यवस्थित कनेक्टिविटी भी नहीं थी। तब यहां के वरिष्ठ अधिवक्ता पं0 बब्बन मिश्र एवं सेन्ट एण्ड्रयूज कॉलेज के प्राचार्य डॉ0 पी0सी0 चाको ने विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए चर्चा को आगे बढ़ाया और महन्त दिग्विजयनाथ जी से विश्वविद्यालय स्थापना के लिए सरकार से मांग करने का अनुरोध किया।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि महन्त दिग्विजयनाथ जी एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनका तत्कालीन मुख्यमंत्री पं0 गोविन्द बल्लभ पन्त जी से घनिष्ठ सम्बन्ध था। तत्कालीन मुख्यमंत्री जी ने सुझाव दिया कि यदि क्षेत्र के लोग पूंजी एकत्र करके कार्य करेंगे, तो कार्य आगे बढ़ाया जा सकता है। उस समय लगभग 50 लाख रुपये विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए चाहिए थे। इतनी पूंजी किसी के पास नहीं थी। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद से जुड़े समाजसेवी सरदार सुरेन्द्र सिंह मजीठिया को इस अभियान से जोड़ा गया। इसके बाद यह प्रक्रिया आगे बढ़ाई गयी। इसके उपरान्त प्रदेश सरकार ने विश्वविद्यालय के निर्माण की अपनी सहमति दी थी। विश्वविद्यालय के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई।
मुख्यमंत्री जी ने विश्वविद्यालय की स्थापना में योगदान देने वाली विभूतियों का स्मरण करते हुए कहा कि अपनी साधना एवं तपस्या से इन विभूतियों ने पूर्वांचल के हित के लिए इस विश्वविद्यालय के निर्माण में अपना योगदान दिया। विश्वविद्यालय के पहले कुलपति श्री बी0एन0 झा थे। वह रसायन विज्ञान के प्रोफेसर थे। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के सभी शिक्षक गण भी इस विश्वविद्यालय की आधारशिला बने थे।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि विश्वविद्यालय के पास इन 75 वर्षां के कार्यों का मूल्यांकन करने का अच्छा अवसर है। विश्वविद्यालय ने अनेक विद्वान प्राचार्य दिये हैं, जिन्होंने अपने क्षेत्र में विशेष योगदान दिया है। राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी ख्याति है। रसायन, भौतिक, गणित, सामाजिक विज्ञान, भूगोल आदि अलग-अलग क्षेत्रों में उन्होंने विश्वविद्यालय को एक नई पहचान दिलायी है। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के पुरातन विद्यार्थियों की एक लम्बी श्रृंखला है, जिन्होंने सामाजिक जीवन एवं अन्य क्षेत्रों में अपनी विशिष्ट पहचान बनायी है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि विश्वविद्यालय के पास अपने पुरातन छात्रों को आमंत्रित करने का भी यह अवसर है। उनमें बहुत सारे लोग अब नहीं होंगे। उनमें से कई आज भी विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट पदों पर आसीन हैं। विश्वविद्यालय के विगत 75 वर्षों के कार्यों से सीख लेकर आगे के वर्षों की कार्ययोजना बनाने के लिए यह एक अवसर है, जिससे यह राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय रैंकिंग में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सके।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि किसी व्यक्ति या संस्था के लिए यह संभव नहीं है कि वह प्रत्येक क्षेत्र में आगे हो जाये। हमें एक ऐसा क्षेत्र चुनना चाहिए, जिसमें विशेषज्ञता प्राप्त हो सके। कोई एक क्षेत्र जिसमें विश्वविद्यालय को पहचान दिलायी जा सके, इस क्षेत्र को चिन्हित करते हुए कार्य करना होगा। यह पूरे विश्व में आपको पहचान दिलाएगा। विश्वविद्यालय को अगले 25 वर्षां की कार्ययोजना में सर्वांगीण विकास के भाव से एक क्षेत्र में विशिष्टता प्राप्त करने के प्रयास को आगे बढ़ाना होगा।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि जब पं0 दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना हुई, तब विशेषज्ञों का मानना था कि इसे एक ग्रामीण विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता देनी चाहिए, जो ग्रामीण विकास की अवधारणा को आगे बढ़ा सके। वर्ष 1950 में भारत की जी0डी0पी0 में कृषि का योगदान 50 प्रतिशत से अधिक था। तब देश में तकनीकी एवं कनेक्टिविटी का अभाव था। कृषि क्षेत्र में बहुत चुनौतियां थीं और बुनियादी सुविधाएं भी नहीं थीं।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि गोरखपुर में भी उस समय कनेक्टिविटी अच्छी नहीं थी। राजघाट का पुल भी नहीं बना था। बनारस व लखनऊ जाना कठिन था। रेलवे की कनेक्टिविटी थी, लेकिन छोटी लाइन ही थी। उद्योग के नाम पर चीनी मिलें थी, जिनसे उत्पादन बहुत कम होता था। लोगां के पास सिंचाई के साधन नहीं थे। इन सभी चुनौतियों से निपटने के लिए एक ऐसे विश्वविद्यालय के निर्माण का विचार था, जो ग्रामीण विकास में अपना योगदान दे सकें। उस समय के आचार्यों ने मेहनत करके एक सुदृढ़ विश्वविद्यालय की नींव डाली और इस विश्वविद्यालय के रूप में एक शानदार यात्रा की शुरुआत की।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि हर दिन आपके लिए एक अवसर है। उसके अनुरूप हम अपनी कार्ययोजना बनायें और समय के अनुरूप इसे आगे भी बढ़ाएं। 75 वर्ष पूर्व विश्वद्यिलय के निर्माण हेतु 50 लाख रुपये की जरूरत थी। आज केवल एक ब्लॉक के लिए 45 से 50 करोड़ रुपये की आवश्यकता होती है। धन की कमी नहीं है। जरूरत समय से कार्ययोजना बनाकर कार्यों को आगे बढ़ाने की है। विश्वविद्यालय में ऑडिटोरियम के साथ ही एक लाइब्रेरी बनायें, जो इसकी पहचान बन सके।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि हमें अपने पुस्तकालय में ग्रन्थों के संकलन के कार्य को भी आगे बढ़ाना चाहिए। वर्ष 1940 में गुरु शान्तिनाथ की प्राच्य दर्शन पर आधारित और गोरखनाथ मन्दिर से प्रकाशित पुस्तक की केवल एक प्रतिलिपि बची थी, जो वर्ष 1995 में गायब हो गयी थी। गुरु गोरक्षनाथ और महन्त अवेद्यनाथ जी की प्रेरणा से यह पुस्तक लगभग 30 वर्ष बाद अयोध्या में प्राप्त हुई। वर्ष 1940 में प्रकाशित पुस्तक की प्रिटिंग आज भी अच्छी है। यह आश्चर्य की बात है। प्रभात प्रेस, कराची में उसका प्रकाशन हुआ था। भारतीय दर्शन में आगे बढ़ने के इच्छुक छात्रों के लिए यह उपयोगी कृति हो सकती है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि स्मार्ट फोन आने के बाद पढ़ने-लिखने की परम्परा बाधित हुई है। यह प्रसन्नता की बात है आज यहां विभिन्न पुस्तकां का विमोचन हुआ है। आज यहां विश्वविद्यालय की 75 वर्षां की यात्रा पर एक डाक कवर भी जारी किया गया है। यदि हम 75 वर्षों के कार्यों एवं उपलब्धियों को लेकर आगे बढ़ेंगे एवं उन्हें संग्रहीत करेंगे, तो वह भावी पीढ़ी के लिए ज्ञान का भण्डार होगी। भारतीय परम्परा कृतज्ञता ज्ञापित करने की परम्परा है। गुरु पूर्णिमा का आयोजन हम अपने गुरुजन के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए करते है। विश्वविद्यालय को भी अपने विभिन्न विभागों की उपलब्धियों, अध्यापकां के विशिष्ट योगदानों एवं पुरातन विद्यार्थियों की उपलब्धियों का संग्रह करना चाहिए।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि आज का युग तकनीकी का है। यदि हम विश्वविद्यालय से जुड़ी उपलब्धियों को डिजिटल रूप में संग्रहीत करेंगे, तो इसके नष्ट होने का खतरा भी नहीं होगा। आज दुनिया बहुत आगे बढ़ चुकी है। हमें भी एक स्वच्छ प्रतिस्पर्धा एवं संवाद के माध्यम से अपने कार्यां को आगे बढ़ाना होगा। शिक्षक एवं विद्यार्थियों के बीच एक स्वस्थ संवाद होना चाहिए। संस्थान का समाज से भी एक स्वस्थ संवाद होना चाहिए। ज्ञान के प्रवाह को समाज के अन्तिम व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए स्वस्थ संवाद की परम्परा को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। इससे समाज का प्रत्येक तबका लाभान्वित होगा। इन सभी कार्यां के लिए हमें प्रोऐक्टिव होना पड़ेगा। विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों एवं विद्यार्थियों द्वारा समाज के बीच जाकर, समाज के निर्माण में अपनी भूमिका पर संवाद करना होगा।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि आज भी हमें जब किसी बड़े कार्य की सोशल इम्पैक्ट स्टडी करनी होती है, तो हम केवल आई0आई0टी0 या आई0आई0एम0 जैसे संस्थानों की ओर देखते हैं। विश्वविद्यालय भी इस तरह के कार्यां को आगे बढ़ा सकते हैं। यदि इस क्षेत्र में बाढ़ के समाधान पर कार्ययोजना बनानी है, तो यह विश्वविद्यालय इस कार्य से जुड़ सकता है। पुरातात्विक कार्यों से सम्बन्धित शोध एवं खोज से भी विश्वविद्यालय जुड़ सकता है। हमें अपनी प्राचीन सभ्यता के विभिन्न आयामों पर शोध कार्य करना चाहिए। अभी तक इस क्षेत्र में जितना कार्य होना चाहिए, उतना कार्य नहीं हुआ है, इसी कारण हम जीवन के कई क्षेत्रों में पिछड़ते चले गये।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि आज हर क्षेत्र में बदलाव आया है। जनपद गोरखपुर को लखनऊ से जोड़ने के लिए राप्ती नदी पर 04 पुल हैं तथा 02 पुल और बन रहे हैं। आज रेलवे लाइन भी मीटर गेज से परिवर्तित होकर ब्रॉडगेज और डबल लाइन हो चुकी है। अन्य नई लाइन भी बन चुकी है। क्षेत्र में बेहतरीन कनेक्टिविटी स्थापित हो चुकी है। गोरखपुर में आज 04 विश्वविद्यालय है। एम्स भी यहां संचालित हो रहा है। बी0आर0डी0 मेडिकल कॉलेज सुपर स्पेशियलिटी के साथ लोगों का उपचार कर रहा है। गोरखपुर में फॉरेस्ट्री एवं हॉर्टीकल्चर का भी एक नया विश्वविद्यालय बनने जा रहा है। जनपद कुशीनगर में महात्मा बुद्ध के नाम पर कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का निर्माण किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि आज बहुत परिवर्तन हो रहा है। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर में भी बहुत परिवर्तन हुआ है। विश्वविद्यालय की हीरक जयन्ती इस विकास प्रक्रिया को स्मरण करने का एक अवसर है। आज से 25 वर्ष बाद विश्वविद्यालय शताब्दी वर्ष मनाने के लिए आज से ही अपनी कार्ययोजना बनाकर आगे बढं़े, ताकि उस समय हम विकास के नये कीर्तिमान स्थापित कर सकें।
कार्यक्रम को सांसद श्री रवि किशन शुक्ल तथा दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर की कुलपति प्रो0 पूनम टण्डन ने भी संबोधित किया।
इस अवसर पर विधायक श्री विपिन सिंह, गोरखपुर के महापौर श्री मंगलेश श्रीवास्तव सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
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