(अंबेडकरनगर/लखनऊ से विशेष रिपोर्ट - हिंदी संवाद         न्यूज़)

अंबेडकरनगर। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नगपुर, जलालपुर में स्वास्थ्य विभाग की घोर लापरवाही और इलाज में भारी चूक को उजागर करने पर पत्रकारों के खिलाफ फर्जी मुकदमा दर्ज कराने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। इस प्रकरण ने न सिर्फ स्वास्थ्य महकमे की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि स्वतंत्र पत्रकारिता पर भी सीधा हमला किया है। अब पत्रकारों ने न्याय की गुहार लगाते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय, लखनऊ पीठ में याचिका दायर की है।

सड़क हादसे के बाद खुली स्वास्थ्य विभाग की पोल

18 अप्रैल 2025 को जलालपुर क्षेत्र के एक सड़क हादसे में घायल दो व्यक्तियों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नगपुर लाया गया था। आरोप है कि समय पर उपचार न मिलने के चलते दोनों की दर्दनाक मौत हो गई। हादसे की खबर मिलते ही हिंदी दैनिक समाचार पत्र के वरिष्ठ पत्रकार प्रेम सागर विश्वकर्मा और संजीव कुमार यादव मौके पर पहुंचे। उन्होंने अस्पताल में मौजूद चिकित्सकों से जवाबदेही पूछनी चाही तो पाया कि ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर कुर्सी पर आराम फरमा रहे थे।

पत्रकारों ने इस पूरे घटनाक्रम के वीडियो साक्ष्य तैयार किए, जिसमें अस्पताल की लापरवाही और चिकित्सकों की गैरजिम्मेदारी साफ-साफ कैद हुई थी। इसके बाद उन्होंने यह तथ्य सोशल मीडिया और समाचार पत्रों के माध्यम से जनसमूह के सामने रख दिए, जिससे स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया।

डॉक्टर ने बचाव में गढ़ी फर्जी कहानी

अपने कर्तव्य में चूक छुपाने के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नगपुर के चिकित्सक डॉ. मोहम्मद दानिश ने अधीक्षक के साथ मिलकर एक साजिश रची। पत्रकारों पर अस्पताल परिसर में अव्यवस्था फैलाने, वीडियो रिकॉर्डिंग करने और कर्मचारियों को धमकाने के मनगढ़ंत आरोप लगाते हुए एक फर्जी प्राथमिकी दर्ज कराई गई।

गौर करने वाली बात यह है कि पत्रकारों ने अपने बचाव में स्पष्ट वीडियो फुटेज और तथ्य प्रस्तुत किए हैं, जो अस्पताल की अनियमितताओं और डॉक्टरों की लापरवाही को उजागर करते हैं। इसके बावजूद, स्वास्थ्य विभाग ने अपने भीतर व्याप्त भ्रष्टाचार और अनियमितता को छुपाने के लिए पत्रकारों को निशाना बनाने का रास्ता अपनाया।

हाईकोर्ट पहुंचे पत्रकार, मांगा न्याय

अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते हुए प्रेम सागर विश्वकर्मा और संजीव कुमार यादव ने 24 अप्रैल 2025 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में एक क्रिमिनल रिट याचिका दाखिल की। याचिका में उन्होंने दर्ज एफआईआर को चुनौती दी है और इसे स्वतंत्र पत्रकारिता पर हमला करार दिया है।

याचिका में प्रमुख बिंदु:

  • प्राथमिक सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करने में पाँच दिन की अनुचित देरी हुई, जिसका कोई ठोस कारण नहीं दिया गया।
  • पत्रकारों के पास अस्पताल की लापरवाही के ठोस सबूत (वीडियो, फोटोज़, खबरें) उपलब्ध हैं।
  • उन्हें गिरफ्तारी का भय दिखाकर स्वतंत्र रिपोर्टिंग से रोकने का प्रयास किया जा रहा है।

याचिका में प्राथमिकी निरस्त करने और निष्पक्ष स्वतंत्र जांच कराने की मांग की गई है।

"यह जनहित में उठी कलम को दबाने की साजिश है"

पत्रकारों ने कहा है कि यह लड़ाई केवल दो व्यक्तियों की नहीं है, बल्कि हर उस पत्रकार की है जो जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों को उजागर करने का साहस करता है। उन्होंने इसे लोकतंत्र और प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार बताया है, और भरोसा जताया कि उच्च न्यायालय उन्हें न्याय दिलाएगा।

यह पूरा घटनाक्रम स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि किस तरह कुछ असंवेदनशील और लापरवाह अधिकारी अपनी नाकामी छिपाने के लिए सच्चाई उजागर करने वालों को निशाना बना रहे हैं। अब पूरे प्रदेश की निगाहें उच्च न्यायालय के फैसले पर टिकी हैं — और इस लड़ाई में पत्रकार समुदाय एकजुट होकर सच्चाई के साथ खड़ा है।

हिंदी संवाद न्यूज़ – दिल से हिंदी।



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