उतरौला बलरामपुर - कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर को तबीयत से उछालो यारों। इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है। कस्बे के सीमाब ज़फर उर्फ डब्बू भाई ने जो कि समाज में नज़ीर बनकर राह गया है। अभिव्यक्ति संस्था के द्वारा विगत कई सालों से रमजान के महीने में अपने मिम्बर्स और कुछ समाज सेवियों के सह योग से "रमजान किट" वितरण का आयोजन करते आ रहे है। इस बार ये किट तकरीबन 110 जरूरत मन्दो के परिवारों तक पहुंचाया गया है। रमजान किट का कॉन्सेप्ट दर असल गुरबा मसाकीन के लिए रमजान में सहरी और अफतार कादस्तरख़्वान सजाने की कोशिश है। 
लोगों के लिए नजदीक रमज़ान का महीना बरकतों और रहमतों का महीना है। लेकिन गरीबों के लिऐ यह इन्ताहाई मुशकिल का महीना होता है। मसला यह है कि अगर काम नहीं करेगें तो फिर खाऐंगे क्या, क्योंकि बच्चे तो लाज़मी दूसरों के बच्चों की तरह अफ्तारी में पकोड़े, खजूर,फल और दूसरी चीज़ों की डिमांण्ड भी करतें हैं। उनको क्या पता कि बाप के ऊपर क्या गुज़र रही है। क्यों कि गरीब के घर पैदा होने में उनका तो कोई क़ुसूर नहीं है। बेहतर यह है कि हम लोग उन गरीब लोगों के दस्तर ख़्वान सजाने की कोशि श करें। यह महीना समाज के ग़रीब और ज़रूरतमन्द बंदों के साथ हमें हम दर्दी करने का मौका मिल रहा है। ईमानदारी के साथ हमे अपना जायज़ा लें, कि क्या वाकई हम लोग मोहताजों और ग़रीबों की वैसी ही मदद करते हैं, जैसी करनी चाहिए। इस संस्था के सचिव अबुल हाशिम ने कहा कि ग़रीब व मज़लूम चाहे किसी भी धर्म का क्यूं न हो हमें उसकी भी मदद करने की शिक्षा दी गई है। और दूसरों के काम आना और किसी का दिल न दुखाना भी एक इबादत समझी जाती है।सीमाब ज़फर का कहना है कि अगर सिर्फ चन्द लोग 110 परिवारों की खुशियों का सबब बन सकते हैं, तो अगर आप सब इस तरह का प्रोग्राम करें, तो शायद उतरौला क्षेत्र में कोई भी गरीब रमजान में सेहरी और अफ़तार के लिए परेशान न हो सके, और अपनी जद्दो जहद में से बचे हुए वक़्त में भी इबादत के  कर सकेगा। श्री अंसार खान ने कहा कि रमजा न के महीने में सदका, ज़कात और खैरात का बहुत बड़ा सवाब है। पैगम्बर हजरत मुहम्मद सoवo यूं तो हमेशा सदका व खैरात किया करते थे। लेकिन खास कर रमजान में बेपनाह खर्च भी करते थे।इस्लाम में इस बात पर बहुत शिद्दत से ध्यान दिया गया है, कि कोई भी गरीब इंसान भूखे पेट न सोये और नंगे बदन न रहे। जैसे कि हर साल रमज़ान किट सीमाब ज़फर के बड़े भाई और अभिव्यक्ति के अध्यक्ष मरहूम जनाब डॉक्टर शेहाब ज़फर साहब के द्वारा शुरू की गई थी। जिस अहम कारगुजारी को उनकी  यादगार को रखने के लिए आगे भी करते रहेंगे। एक किट की कीमत इस साल लगभग 2300 रुपए का खर्च आ रही है।  किट में दिए जाने वाले सामानों की लिस्ट आटा 5 किलो,चावल 5किलो 
शक्कर 3 किलो,बेसन 2 किलो, चना 2 किलो
मटर 2 किलो,अरहर की दाल 1 किलो,मटर की दाल 1 किलो,लच्छा 1 किलो,
कड़वा तेल 1 लीटर,
रिफाइन्ड तेल1 लीटर,
रूह अफज़ा 1 बोतल,
खजूर एक पैकेट, चिप्स 1 किलो,दूध 1 लीटर, 
चाय की पत्ती 250 ग्राम,टाटा नमक 1किलो,माचिस 1बॉक्स
प्याज़ 3 किलो,आलू 5 किलो, इस नेक काम में कई सामाजिक लोगों ने अपना हिस्सा लिया पूर्व विधायक अनवर महमूद खां,,एजाज़ मालिक, लकी खान, अबुल हाशिम , फैज़ान सिद्दी की, अब्दुर्रहमान सिद्दी की , डॉक्टर इफ्तेखार, डॉक्टर मोबीन, डॉक्टर सगीर, डॉक्टर नज़र मोहम्मद, डॉक्टर अब्दुल क़य्यूम,असलम खान , फरीद सूरी, डाक्टर मोहम्मद चाँद खाँ , शादाब ज़फर सहित तमाम संभ्रांत व्यक्ति मौजूद रहे।

       हिन्दी संवाद न्यूज से
      असगर अली की खबर
        उतरौला बलरामपुर। 

Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने