राजकुमार गुप्ता
मथुरा । विवाहिताओं के ससुराल में होने वाले दहेज को लेकर उत्पीड़न को गंभीरता से लेते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय और भारत सरकार ने कानून में पीड़िताओं को न्याय दिलाने के लिए पर्याप्त व्यवस्था की हुई है लेकिन बड़े खेद के साथ कहना पड़ता है जिन हाथों को न्याय की जिम्मेदारी दी गई है वही पिडिताओं के दुख दर्द और वेदना को  नजरअंदाज करते हुए अपनी आर्थिक धनलोलुप पिपाषा को  पूरा करते हुए अकूत धन कमाने में लगे हुए हैं उन्हें अपने कर्तव्य नियम कानून से कोई लेना देना नहीं है मजे की बात है , जिम्मेदार वरिष्ठ अधिकारी भी इस और अनदेखा किए हुए रहते हैं इससे भी पीड़ित ससुरालयों से सताई गई महिलाओं को न्याय के बजाए उन्हें  सुलह समझौता के नाम पर  तारीख दर तारीख देने का काम करते हुए पीड़िता को हताश और निराश करने का प्रयास महिला थाना पुलिस के द्वारा किया जाता है ।

जानकारी के अनुसार महिला थाना प्रभारी के पद पर 7 जनवरी 2022 को निरीक्षक अलका ठाकुर को जिम्मेदारी दी  गई थी तभी से अनवरत थाना प्रभारी के पद पर कार्यरत हैं। 
बताया जाता है किसी प्रभावशाली सत्ता पक्ष के नेता का संरक्षण प्राप्त है तभी तो अलका ठाकुर लंबा  चार्ज चलाने वाले थाना प्रभारी का जनपद ही नहीं  प्रदेश में भी रिकॉर्ड बना दिया है। 
मजे की बात यह सभी थानों का वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा समय-समय पर निरीक्षण किया जाता है और वहां के कार्यकलापों की समीक्षा की जाती है लेकिन महिला थाना जिसका आज तक इनके कार्यकाल के दौरान कभी भी निरीक्षण नहीं किया गया यही कारण है स्वच्छंद महिला थाना प्रभारी एक महिला होते हुए भी अपनी नैतिक जिम्मेदारी को दरकिनार करते हुए ससुराल की सताई हुई  पीडिताओं को सुलह  समझौता के नाम पर तारीख दर तारीख देकर उसे और उसके परिवार को हैरान और परेशान करने का काम महिला थाने के द्वारा किया जाता है। 
सुलह समझौता के लिए एक- एक महीने की तारीख दी जाती हैं पीड़िताएं अपने माता-पिता और भाई आदि रिश्तेदारों को लेकर  महिला थाने में सुबह से शाम तक भूखी प्यासी बैठी रहती हैं वहीं दूसरी ओर लड़का पक्ष को मनमानी तरीके से आने की पूरी छूट दी हुई होती है और यदि लड़का पक्ष कोई बहाना करके आने से बचना चाहता है तो उसे फोन पर ही समय की छूट देते हुए तारीख दे दी जाती है । महिला थाना पुलिस के इस रवैया से एक और जहां पीड़िता और उनके मायके वाले वकील की फीस और किराए भाड़े को खर्च करते-करते इतने टूट जाते हैं वह न्याय की उम्मीद छोड़ बैठते हैं । सुलह समझौता असफल रहने पर भी पीड़िता का मुकदमा दर्ज नहीं किया जाता और इस तरह से पीड़िता का 6 से 8 महीने का समय  व्यर्थ चला जाता है। 
सूत्रों की माने तो महिला थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने और धारा घटाने के लिए एफ आई आर में से नाम निकालने की मनमानी कीमत वसूल की  जाती है यह कहना गलत नहीं होगा महिला थाना पीड़ित ससुराली जनों के द्वारा सताई गई महिलाओं के लिए संरक्षण प्रदान करने और उन्हें पोषित करने के बजाय उनका शोषण करने में मस्त है यही कारण है पीडि़ताएँ पस्त होकर शोषण का शिकार हो रही हैं। महिला थाने की कार्यप्रणाली को शासन और प्रशासन में बैठे जिम्मेदार अधिकारियों को और महिला आयोग को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।

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