राजकुमार गुप्ता 
मथुरा/ सरकार ने यूरिया का वजन एक बार फिर घटा दिया है। अब इसका वजन 40 किलो होगा। फर्क सिर्फ इतना है कि ये नीम कोटेड यूरिया की जगह सल्फर कोटेड होगा। भाकियू चढूनी के मंडल अध्यक्ष रामवीर सिंह तोमर ने कहा है कि सरकार ने सब्सिडी खत्म करने की बजाए 5 किलो वजन कम कर किसानों पर सलीके से वजन डाल दिया है।266.50 की कीमत भले ही नहीं बढ़ाई गई है लेकिन उसकी भरपाई 5 किलो वजन घटा कर पूरी कर ली गई है। सरकार ने किसानों की दो गुनी आमदनी करने का लक्ष्य  2022 तय किया था, दुसरी ओर किसानों की समझ में ये नहीं आ रहा है कि सरकार आमदनी दो गुनी कर रही है या फसलों की लागत बढ़ा रही है। एक तरफ किसानों को उसकी उपज का लाभकारी मूल्य नहीं मिल रहा है, दूसरी ओर खेती किसानी की लागत लगातार बढ़ रही है। गन्ना किसानों का पिछले 7 सालों में  मात्र 35 रूपये बढ़ाए गए हैं, और 350 रूपये क्विंटल गन्ने का भाव है जबकि गन्ने का लागत मूल्य भी 400 रूपये से ज्यादा बैठता है। आलू किसानों की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं है। एक साल लाभकारी मूल्य मिल जाता है तो दो तीन साल आलू फिकने की नौबत आ जाती है। पूरे प्रदेश में गेंहू से लेकर बाजरा, कपास आदि की सरकारी खरीद किसी से छुपी नहीं है। सरकार समय-समय पर एमएसपी की घोषणा तो करती है लेकिन समय पर खरीदने की कोई व्यवस्था नहीं करती। अगर वास्तविकता में सरकार किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलवाना ही चाहती है तो एमएसपी को कानूनी मान्यता देनी चाहिए, इसके अलावा फसल शुरू होने के पहले ही उसे इसकी खरीदने की संपूर्ण व्यवस्था करनी चाहिए। डा सतीश चन्द्र, प्रेम सिंह सिकरवार, डा रमेश चंद्र सिकरवार, अशोक चौधरी, गौरव तोमर, प्रताप सिंह चौधरी, जयपाल सिंह चौधरी, श्याम पाल सिंह रि इस्पेक्टर ने कहा कि फसल पकने के पूर्व सरकार को फसल उत्पादन के अनुमान मिल जाते हैं। सरकार को उत्पादन के हिसाब से ही व्यवस्था कर किसानों को राहत देनी चाहिए। लेकिन सरकार यह सब करने में पूरी तरह विफल रहती है। नतीजतन किसानों को अपनी फसल को ओने-पौने दामों में मंडी में बेचना पड़ रहा है। जब आधे से अधिक किसानों की फसल कम दामों में मंडियों मे बिक चुकी होती है, इसके बाद सरकार समर्थन मूल्य पर तुलाई शुरु करती है।

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