llरचनाकार....जितेन्द्र कुमार दुबेll

    llसंवाददाता–विजय शंकर दुबेll

llकुछ तो गोलमाल है.....!l

सरकारी नौकरी और विवाह संस्कार,
दोनों में कुछ अजीब सी समानताएं हैं
उम्र सीमा...कमोबेश एक ही है... 
उपबंधों-नियमों के अनुसार,
महिला के लिए....एक तरफ़ यदि....
विवाह की उम्र में छूट है...तो उनको..
नौकरी में भी आरक्षण वाली छूट है...
विवाह होने और नौकरी मिलने, 
दोनों की ही...तिथि अनिश्चित...!
विकल्प और चयन की उपलब्धता,              
नेगलेक्ट और सिलेक्ट की प्रायिकता,
दोनों में ही लगभग समान ही है....
गौर करें मित्रों....समाज में....!
जैसे विवाह और विदाई की तिथि
अलग-अलग सम्भव है....
ठीक वैसे ही नौकरी मिलने.....
और ज्वाइनिंग की तिथि,
अलग-अलग होना भी सम्भव है...
जैसे विवाह के बाद गौना और दोंगा..
सरकारी नौकरी में भी.…!
ठीक वैसे ही...सिलेक्शन के बाद...
कोर्ट-कचहरी और तब ज्वाइनिंग.....
विवाह के बाद ससुराल आने पर,
घर की अच्छाई-बुराई सब...
मानना-स्वीकार करना मजबूरी है...
सास-ससुर और ननद -देवर से,
अच्छा तालमेल ज़रूरी है...
आप भी जानते हो मित्रों,
सरकारी नौकरी में भी...!
सुपरबॉस की अच्छाई और बुराई को
मान लेना,स्वीकार कर लेना...
अच्छा है और मजबूरी भी...साथ ही..
सुपर बॉस,बॉस और अधीनस्थों से....
अच्छा तालमेल बेहद ज़रूरी है...
इतना ही नहीं....सबको पता है...!
सफ़ल वैवाहिक जीवन के लिए,
परिवार को साधना होता है....
सही-गलत के विवाद से,
परहेज हर हाल में करना होता है...
अब सरकारी नौकरी में भी तो,
दण्ड और जाँच से बचने को,
बॉस को साधना ही होता है...
भले मजबूरी हो ...पर....!
उसकी अनुकम्पा जरूरी होती है
वैवाहिक जीवन में...जैसे कभी भी...
किसी को भी....संतुष्टि नहीं होती...!
ठीक वैसे ही...सरकारी नौकरी से भी
संतुष्टि किसी को कभी नहीं होती....
सब जानते हैं और जगज़ाहिर भी है,
बुढ़ापे में मियाँ-बीवी का....! 
एक दूजे से अटूट प्रेम होता है...
सरकारी नौकरी में भी लोगों को
अपनी पेन्शन से अटूट प्रेम होता है...
जैसे बुढ़ापे का सफर....!
बस एक दूजे पर होता है निर्भर...
सरकारी नौकरी वाले का
पारिवारिक जीवन पेन्शन से ही
बन पाता है सुघर-सुन्दर...!
इतना विश्लेषण के बाद,
यह भी साफ ही हो गया होगा कि....
वैवाहिक जीवन और सरकारी नौकरी
दोनों ही भँवर जाल हैं...जंजाल हैं...!
पर क्या कहूँ मित्रों यह भी सही है कि
इन दोनों के बिना तो दुनिया यही माने
कि...ऐसे लोगों के जीवन में....
कुछ तो गोलमाल है....!
कुछ तो गोलमाल है....!!


रचनाकार....
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक
जनपद...कासगंज

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