आगरा,।। प्रदेश संयोजक हिन्दू जागरण मंच,ब्रज प्रान्त(उ.प्र.) अध्यक्ष आत्मनिर्भर, स्मार्ट सिटी भारत सरकार के सदस्य राजेश खुराना ने एक संवाददाता सम्मेलन में मीडिया को संबोधित करते हुए कहा है कि छत्रपति शिवाजी महाराज का सारा संघर्ष वास्तव में उस कट्टरता और उद्दंडता के विरुद्ध था,जिसे औरंगजेब जैसे शासकों और उसकी छत्रछाया में पलने वाले कट्टर मुगलों ने अपना रखा था। धर्म व राष्ट्र की रक्षा लिए शूरवीर शिवाजी ने कट्टर और उद्दंड मुग़लो के दांत खट्टे कर दिए थे। कट्टर मुग़ल शासक सिर्फ़ उनका नाम सुनकर ही मारे डर के बगलें झांककर दुम दवाकर भाग जाते थे। छत्रपति शिवाजी महाराज एक भारतीय शासक थे,जिन्होंने मराठा साम्राज्य खड़ा किया था। इसीलिए उन्हें एक अग्रगण्य वीर एवं अमर स्वतंत्रता-सेनानी स्वीकार किया जाता है। शुरवीर शिवाजी राष्ट्रीयता के जीवंत प्रतीक एवं परिचायक थे। इसी कारण निकट अतीत के राष्ट्रपुरुषों में महाराणा प्रताप के साथ-साथ इनकी भी गणना की जाती है। छत्रपति शिवाजी महाराज एक पूर्णतया राष्ट्रप्रेमी, कर्त्तव्यपरायण, कर्मठ,बहादुर, बुद्धिमानी, शौर्यवीर, दयालु योद्धा व नेक शासक थे।

इतिहास हमें धरोहर देता है, वर्तमान को देखने की दृष्टि देता है। मुगल शासक औरंगज़ेब को लग रहा था कि दक्कन में विस्तार में उनको मराठा ही चुनौती दे सकते हैं तो बादशाह औरंगज़ेब ने अपने कार्यकाल में राजा जय सिंह को दक्कन पर नीति बनाने का ज़िम्मा सौंपा था। इस वजह से व्यक्तिगत रूप से नापंसद होने के बाद भी राजा जय सिंह के कहने पर औरंगज़ेब ने शूरवीर शिवाजी के साथ संधि करने पर अपनी हामी भरी थी। मुगलों के निमंत्रण पर शिवाजी औरंगज़ेब के "आगरा"दरबार में पहुँचे थे। उस वक़्त मुगलों के दरबार में सिर्फ़ बादशाह ही बैठा करते थे और बाक़ी दरबारी खड़े रहते थे। दरबार के नियम के मुताबिक़ जिसको जितनी ऊंची मनसबदारी यानी रेंक दी जाती थी, उसकी हैसियत उतनी ज़्यादा बड़ी होती और मुग़ल बादशाह के दरबार में उसकी पूछ उतनी ही ज़्यादा होती थी। वो आगे की पंक्ति में खड़े होते थे और बाक़ी को पीछे खड़ा होना पड़ता था। शूरवीर शिवाजी जब औरंगज़ेब के दरबार में पहुँचे, तो उनको 5000 वाली मनसबदारी दी गई,जबकि वो 7000 वाली मनसबदारी चाहते थे। इसलिए वो नाराज़ हो गए,भरी सभा में उन्होंने अपनी नाराज़गी जाहिर की, जिसके बाद औरंगज़ेब ने उन्हें धोखेबाजी से क़ैद कर जेल में डाल दिया। लिया। शिवाजी ने बहाना किया कि वो बीमार हैं। मुगल पहरेदारों को उनकी कराहें सुनाई देने लगी। अपने को ठीक करने के प्रयास में वो अपने निवास के बाहर साधुओं को हर शाम मिठाइयाँ और फल भिजवाने लगे। बाहर तैनात सैनिकों ने कुछ दिनों तक तो बाहर जाने वाले सामान की तलाशी ली लेकिन फिर उन्होंने उसकी तरफ़ ध्यान देना बंद कर दिया। ''19 अगस्त 1666 को शिवाजी ने बाहर तैनात सैनिकों को कहला भेजा कि वो बहुत बीमार हैं और बिस्तर पर लेटे हुए है। उनके आराम में व्यवधान न डाला जाए और किसी को अंदर न भेजा जाए। दूसरी तरफ़ शिवाजी के सौतेले भाई हीरोजी फ़रजाँद जिनकी शक्ल उनसे मिलती जुलती थी, उनके कपड़े और उनका मोतियों का हार पहन कर उनकी पलंग पर लेट गए, उन्होंने कंबल से अपने सारे शरीर को ढ़क लिया,उनका सिर्फ़ एक हाथ दिखाई देता रहा, जिसमें उन्होंने शिवाजी के सोने के कड़े पहन रखे थे।
शिवाजी और उनके बेटे संभाजी फलों की एक टोकरी में बैठे, जिसे मज़दूर बाँस के सहारे कंधे पर उठाकर भवन से बाहर ले आए। निगरानी कर रहे सैनिकों ने उन टोकरियों की तलाशी लेने की ज़रूरत नहीं महसूस की,इन टोकरियों को शहर के एकांत वाले इलाके में ले जाया गया। वहाँ से मज़दूरों को वापस भेज दिया गया। शिवाजी और उनके बेटे टोकरियों से निकलकर आगरा से मथुरा पहुँच गए। काफी देर बाद जब शिवाजी के कमरे से कोई आवाज़ नहीं आई तो सैनिकों को शक हुआ। अंदर जाकर जब उन्होंने देखा तो पाया कि शिवाजी के बिस्तर पर कोई भी मौजूद नहीं था। उन्होंने यह ख़बर अपने प्रमुख फ़लाद ख़ाँ को पहुंचाई। बदहवास फ़लाद ख़ाँ औरंगज़ेब के सामने पहुंच कर गिर पड़े। उनके मुँह से निकला,जादू...जादू...शिवाजी ग़ायब हो गए हैं। मुझे पता नहीं कि वो हवा में उड़ गए हैं या धरती उन्हें निगल गई है, बस यह सुनते ही बादशाह औरंगज़ेब के हाथों के तोते उड़ गए। उन्होंने अपने दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ लिया और बहुत देर तक इसी मुद्रा में बैठे रहे,उन्होंने हर दिशा में शिवाजी की तलाश में अपने सैनिक दौड़ाए लेकिन सभी खाली हाथ वापस लौटे।उधर, शिवाजी ने बहुत चालाकी से महाराष्ट्र जाने के लिए बिल्कुल उल्टा रास्ता चुना। दक्षिण पश्चिम में मालवा और ख़ानदेश होते हुए जाने के बजाय उन्होंने पूर्व का रास्ता चुना और मथुरा, इलाहाबाद, बनारस और पुरी होते हुए गोंडवाना और गोलकुंडा पार करते हुए वापस राजगढ़ पहुंचे औरंगज़ेब की कैद से बाहर आने के छह घंटे के अंदर वो मथुरा पहुंच गए, जहाँ उन्होंने अपने सिर के बाल, दाढ़ी और मूँछ मुंडवा दी और संन्यासी का वेष धारणकर केसरिया कपड़े पहन लिया। एक सुबह शिवाजी की माँ जीजाबाई अपने कक्ष में अकेले बैठी हुई थीं। उनका नौकर उनके लिए संदेश लेकर या कि संन्यासी उनसे मिलना चाहता है। उन्होंने उसे अंदर भेजने के लिए कहा,अंदर आते ही वो संन्यासी जीजा बाई के पैरों पर गिर पड़ा,उन्होंने उससे पूछा बैरागी कब से दूसरों के पैर छूने लगे? जब उन्होंने उसको ऊपर उठाया और उनकी नज़र उसके चेहरे पर गई,वो ज़ोर से चिल्लाईं-शिवबा मेरा शूरवीर शिवबा। उसके बाद शूरवीर शिवाजी ने धोखेबाज,कट्टर और उद्दंड मुग़लो के दांत खट्टे कर दिए थे। धोखेबाज मुग़ल सिर्फ़ उनका नाम सुनकर ही मारे डर के बगलें झांककर दुम दवाकर भाग जाते थे।

ऐसे शूरवीर योद्धा का उनका जन्म 19 फरवरी 1627 को मराठा परिवार में महाराष्ट्र के शिवनेरी में हुआ। शिवाजी के पिता शाहजी और माता जीजाबाई थीं। माता जीजाबाई धार्मिक स्वभाव वाली होते हुए भी गुण-स्वभाव और व्यवहार में वीरंगना नारी थीं। इसी कारण उन्होंने बालक शिवा का पालन-पोषण रामायण, महाभारत तथा अन्य भारतीय वीरात्माओं की उज्ज्वल कहानियां सुना और शिक्षा देकर किया था। बचपन में शिवाजी अपनी आयु के बालक इकट्ठे कर उनके नेता बनकर युद्ध करने की कला यानी किले जीतने का खेल खेला करते थे। दादा कोणदेव के संरक्षण में उन्हें सभी तरह की सामयिक युद्ध आदि विधाओं में भी निपुण बनाया था। धर्म, संस्कृति और राजनीति की भी उचित शिक्षा दिलवाई थी। उस युग में परम संत रामदेव के संपर्क में आने से शिवाजी पूर्णतया राष्ट्रप्रेमी, कर्त्तव्य परायण एवं कर्मठ योद्धा बने। छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह सन् 14 मई 1640 में सइबाई निंबालकर के साथ हुआ था। उनके पुत्र का नाम संभाजी था। संभाजी शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र और उत्तराधिकारी थे। जिसने 1680 से 1689 ई. तक राज्य किया। संभाजी में अपने पिता की कर्मठता और दृढ़ संकल्प का अभाव था। संभाजी की पत्नी का नाम येसु बाई था। उनके पुत्र और उत्तराधिकारी राजाराम थे। शिवाजी के समर्थ गुरु रामदास का नाम भारत के साधु-संतों व विद्वत समाज में सुविख्यात है। युवावस्था में आते ही उनका खेल वास्तविक कर्म शत्रु बनकर शत्रुओं पर आक्रमण कर उनके किले आदि भी जीतने लगे। जैसे ही शिवाजी ने पुरंदर और तोरण जैसे किलों पर अपना अधिकार जमाया, वैसे ही उनके नाम और कर्म की सारे दक्षिण में धूम मच गई, यह खबर आग की तरह आगरा और दिल्ली तक जा पहुंची। अत्याचारी कट्टर मुगल और उनके सहायक सभी शासक उनका नाम सुनकर ही मारे डर के बगलें झांकने लगे। शिवाजी के बढ़ते प्रताप से आतंकित बीजापुर के शासक आदिलशाह जब शिवाजी को बंदी न बना सके तो उन्होंने शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार किया। पता चलने पर शिवाजी आग बबूला हो गए। उन्होंने नीति और साहस का सहारा लेकर छापामारी कर जल्द ही अपने पिता को इस कैद से आजाद कराया। तब बीजापुर के शासक ने शिवाजी को जीवित अथवा मुर्दा पकड़ लाने का आदेश देकर अपने मक्कार सेनापति अफजल खां को भेजा। उसने भाईचारे व सुलह का झूठा नाटक रचकर शिवाजी को अपनी बांहों के घेरे में लेकर मारना चाहा, पर समझदार शिवाजी के हाथ में छिपे बघनख का शिकार होकर वह स्वयं मारा गया। इससे उसकी सेनाएं अपने सेनापति को मरा पाकर वहां से दुम दबाकर भाग गईं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी छत्रपति शूरवीर शिवाजी महाराज की जयंती महाराष्ट्र में वैसे तो 19 फरवरी को मनाई जाती है,लेकिन कई संगठन शिवाजी का जन्मदिवस‍ हिन्दू कैलेंडर में आने वाली तिथि के अनुसार मनाते हैं। उनकी इस वीरता के कारण ही उन्हें एक आदर्श एवं महान राष्ट्रपुरुष के रूप में स्वीकारा जाता है। छत्रपति शिवाजी महाराज का 3 अप्रैल 1680 ई. में तीन सप्ताह की बीमारी के बाद रायगढ़ में स्वर्गवास हो गया।शूरवीर शिवाजी महाराज मुस्लिम विरोधी नहीं थे। क्योंकि उनकी सेना में तो अनेक मुस्लिम नायक एवं सेनानी थे,तथा अनेक मुस्लिम सरदार और सूबेदारों जैसे लोग भी थे। छत्रपति शिवाजी महाराज का सारा संघर्ष वास्तव में धोखेबाज मुग़लों की कट्टरता और उद्दंडता के विरुद्ध था।

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