हजार रातों से भी बेहतर मानी जाती हैं शब ए कद्र की एक रात
उतरौला ( बलरामपुर )

मौलाना मुफ्ती गुलाम यही या नूरी मिस्बाही

 ने माहे रमजान में होने वाले शबे कद्र की फजीलत और अहमियत पर रोशनी डालते हुए बताया कि माह-ए-रमज़ान की रातों में एक रात ऐसी भी आती है, जो हज़ार-हजार रातों से बेहतर है। जिसे शबे क़द्र कहा जाता है। शबे क़द्र का मतलब होता है“सर्वश्रेष्ट रात"होती है उस रात में लोगों के नसीब लिखी जानी वाली रात है  शबे क़द्र बहुत ही महत्वपूर्ण रात है, जिस के एक रात की इबादत हज़ार महीनों (83 वर्ष 4 महीने) की इबादतों से बेहतर और अच्छा है। इसीलिए इस रात की फज़ीलत क़ुरआन मजीद और प्यारे आका सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीसों से साबित है। बुधवार को बीसवें रमज़ान के 21 वीं शाम को रमज़ान का आखरी अशरा शुरू हो जाएगा। 
हदीस शरीफ में आया है कि शबे कद्र रमजान के आखिरी अशरे की ताक रातों जैसे 21, 23, 25, 27 और 29 वीं रात में तलाश करो। इन ताक रातों में रात भर जाग कर अल्लाह की इबादत करें और अपने गुनाहों की माफी मांगे। शबे कद्र में पूरी रात इबादत में गुजारनी चाहिए। नबी पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस अशरे के आखिरी में इबादत का खुसूसी ऐहतेमाम बहूत कसरत से फरमाते थे। शब-ए-कद्र की रात में ही अल्लाह ने कुरआन पाक को नाजिल किया। जो पूरी इंसानियत के लिए हिदायत और मार्गदर्शन का काम करती है।
इस वजह से यह रात एक खास इबादत वाली रात मानी जाती है।इस रात को फ़रिश्ते अल्लाह के हुक्म से बंदों की नियति (साल भर की किस्मत) के साथ जमीन पर उतरते हैं। यह रात सभी आफतों से हिफाजत की रात है। दुआओं से भरी इस रात का सिलसिला सुबह सादिक तक जारी रहता है।
हालांकि अभी तक ये स्पष्ट नहीं है कि शब-ए-कद्र की रात कौन सी होती है लेकिन इतना जरूर बताया गया है कि रमज़ान के इन ताक रात में अल्लाह से की गई दुआ कबूल होती है। इस रात को अल्लाह के बंदों पर रहमत बरसती है। रमजान के महीने की इन रातों के फजीलत को देखते हुए बहुत से लोग शब-ए-कद्र की रात से पहले ही अल्लाह की इबादत के लिए एतिकाफ यानि कि एकांतवास में चले जाते हैं। ताकि वो बिना किसी खलल के अपनी इबादत पूरी कर सकें। ये लोग ईद का चांद निकलने के बाद उसे देखकर ही घरों या मस्जिदों से बाहर निकलते हैं।
असगर अली 
उतरौला 

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