राजकुमार गुप्ता 
आगरा। समस्त विश्व को धर्म एवं न्याय के मार्ग का अनुसरण करने वाले, भगवान विष्णु के छठे अवतार, ज्ञान, शक्ति, साहस व शील के प्रतीक, भीष्म, द्रोण, कर्ण आदि महारथियों के गुरु, अत्रि की पत्नी अनसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान के संचालक, पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के प्रबल पक्षधर एवं अदिबासियों को शिक्षा व सुरक्षा के साथ कलरीपायट्टु कला सिखाने बाले और गोवा केरल ऐसे सुरम्य स्थानों को बसाने वाले, आदर्श ब्रह्मचारी, अतुल पराक्रमी, चिरंजीवी भगवान श्री परशुराम जी के प्रकट उत्सव की अग्रिम बधाई। 

सुप्रशिद्ध एवं लोकप्रिय समाजसेवी राजेश खुराना ने सर्वप्रथम भगवान परशुराम के जन्मोत्सव की सभी देशवासियों को अग्रिम मंगलकारी शुभकामनाएं देते हुए बताया कि इस बार इनकी जयंती 22 अप्रेल को मनाई जा रही है। कहा जाता हैं कि समस्त विश्व को धर्म एवं न्याय के मार्ग का अनुसरण करने वाले भगवान श्री परशुराम शस्त्र विद्या के श्रेष्ठ जानकार थे। वे त्रेता युग के ऋषि थे। उनका भाव इस जीव सृष्टि को इसके प्राकृतिक सौंदर्य सहित जीवन्त बनाये रखना था। वे चाहते थे कि यह सारी सृष्टि पशु पक्षियों, वृक्षों, फल फूल औए समूची प्रकृति के लिए जीवन्त रहे। उनका कहना था कि राजा का धर्म वैदिक जीवन का प्रसार करना है नाकि अपनी प्रजा से आज्ञापालन करवाना। ज्ञात हो कि परशुराम ने अधिकांश विद्याएँ अपनी बाल्यावस्था में ही अपनी माता की शिक्षाओं से सीख ली थी। वे पशु-पक्षियों तक की भाषा समझते थे और उनसे बात कर सकते थे। यहाँ तक कि कई खूँख्वार वनैले पशु भी उनके स्पर्श मात्र से ही उनके मित्र बन जाते थे, लेकिन हमने सिर्फ़ अपने दिखावें के कारण भगवान श्री परशुराम के उन महान कार्यों को भुला दिया जिनकी वजह से वे भगवान बने हैं। 

श्री खुराना ने बताया कि कहा जाता हैं कि भगवान परशुराम जी सनातन संस्कृत के वैभव को बढ़ाने का कार्य किया है। बहुत कम लोगों को ही यह ज्ञात होगा कि दक्षिण भारत के आदिवासी, भील, करात जनजातियों को वैदिक वाङ्मय से परिचित करा कर पूरे दक्षिण देश में इन निरक्षर और पिछड़े आदिवासी समूहों को शिक्षा के साथ-साथ सुरक्षा के लिए कलरीपायट्टु कला यानी आज की मार्शल आर्ट सिखाई थी तथा गैर-परंपरागत अस्त्रों का आविष्कार कर तपस्वी श्री परशुराम ने दीक्षित किया और दक्षिण से उत्तर तक आर्यावर्त को एकीकृत किया। परशुराम केरल के मार्शल आर्ट कलरीपायट्टु की उत्तरी शैली वदक्कन कलरी के संस्थापक आचार्य एवं आदि गुरु हैं। वदक्कन कलरी अस्त्र-शस्त्रों की प्रमुखता वाली शैली है। खेतों में गोपन और गुलेल से पक्षियों से फसल की रक्षा की तकनीक के आविष्कारक भगवान परशुराम ही थे। दोनों अस्त्रों का उन्नत उपयोग जंगलों में शिकार और विषबुझे तीरों का संधान भी शिकार और आत्मरक्षा के लिए परशुराम ने सिखाया। वे धरती पर वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे। कहा जाता है कि भारत के अधिकांश ग्राम उन्हीं के द्वारा बसाये गये। जिस मे कोंकण, गोवा एवं केरल का समावेश है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री परशुराम ने तिर चला कर गुजरात से लेकर केरला तक समुद्र को पिछे धकेलते हुए नई भूमि का निर्माण किया। और इसी कारण कोंकण, गोवा और केरला मे भगवान श्री परशुराम वंदनीय है। भगवान परशुराम के जन्मोत्सव के इस पावन अवसर पर एक वार पुनः भगवान परशुराम के जन्मोत्सव की सभी देशवासियों को अग्रिम मंगलकारी शुभकामनाएं।

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