गलत जीवन शैली :- "युवाओं का नैतिक पतन" 

किसी भी प्रकार की जीवन शैली की चाह गलत नहीं होती है और नामुमकिन भी कुछ नहीं होता है लेकिन यदि पलक झपकते ही सब कुछ पा लेने की ख्वाहिश लोगों के मन में घर करती है तो उन्हें एक ऐसी राह पर लाकर खड़ा कर देती है जहां पर दो रास्ते होते हैं अब व्यक्ति इसमें अपना पतन करना चाहता है या समझदारी का प्रयोग करके इसका नियमित जीवन जीना चाहता है ये उसके ऊपर निर्भर करता है। कभी-कभी युवाओं की जीवन शैली ऐसी हो जाती है जिसमें से वह निकल नहीं पाते हैं अक्सर गलत लोगों की संगति या घर परिवार के ही कुछ भला ना चाहने वाले लोग भी अपने घर के बच्चों या परिवार के अन्य सदस्यों को भड़काने से पीछे हटते नहीं है जिसका असर युवाओं पर होता है और वह वही व्यवहार करते हैं। ये कुछ गलत लोगों के मकड़जाल में फंसकर अपने ही माता-पिता के विश्वास को तोड़ देते हैं। कुछ अमीर बिजनेसमैन अपने से निचले स्तर के कार्य करने वाले लोगों को अपने विश्वास में लेकर उन्हें पैसे का लालच देकर गलत राह पकड़ने के लिए मजबूर कर देते हैं और मां-बाप को यह पता ही नहीं चलता है कि उनके बच्चे किस राह पर जा रहे हैं जब तक उन्हें पता चलता है तब तक उनकी शिक्षा और संस्कारों की धज्जियां उड़ चुकी होती है। आजकल के युवा अय्याशियों के तले ना जाने कब रौंद दिए जाते हैं जब तक उन्हें पता लगता है तब तक उनकी जिंदगी नर्क बन जाती है और वह मौत को गले लगा लेते हैं जिसका मुआवजा परिवार की सभी सदस्यों और खास करके माता-पिता को जिंदगी भर के लिए जख्म दे जाते हैं तकलीफ दे जाते हैं और रोने को छोड़ जाते हैं। मानसिक रोग मे लिपटे युवाओं को सही गलत का रास्ता समझ नहीं आता है तो आत्महत्या के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता है। अनपढ़ या गैर जानकारों के साथ ऐसा हादसा हो जाए तो बात समझ में आती है लेकिन पढ़े-लिखे लोग जागरूक होकर भी इस कदर जिंदगी को महज खिलवाड़ बना कर रख देते हैं तो दिल दिमाग खौल उठता है। एक तरफ तो हम खुद को 21वीं सदी के सुशिक्षित और विकसित नागरिक बताते हैं और दूसरी तरफ मंगल ग्रह को छूने की बात करते हैं जो अक्सर नासमझी कर बैठते हैं गलत सपने देख कर गलत राह पकड़ लेते हैं फिर वह इंसान कहलाने लायक भी नहीं बचते। विकसित होने या तरक्की करने के लिए स्वस्थ और उनसे भी जरूरी जिंदा मानसिक स्थिति होनी चाहिए हमारे युवाओं का इस कदर गुमराह होना वाकई एक भयावह स्थिति है देश के भविष्य के लिए और जहां तक हम निष्कर्ष निकाल पाते हैं तो समस्या की शुरुआत और अंत भी लगभग पैसा पर आकर खत्म होता है। आज के युवाओं का सब्र इस कदर टूटता जा रहा है और उनकी रातों रात अमीर बनने की ख्वाहिश इस कदर बढ़ती जा रही है जो किसी के लिए भी मुमकिन नहीं है हर चीज कुबेर का खजाना नजर आता है इन का दिन मंगलमय मन अपराधों के बीच फंँसा होता है। आज का युवा वर्ग वह हर सुख सुविधा का जल्दी से जल्दी उपयोग करना चाहता है आजकल सीरियल में भी अक्सर करोड़पति बाली प्रतियोगिताएं होती है और उन्हें लगता है कि इसमें ज्यादा मेहनत नहीं है पैसे कमाने के लिए बस कार्यक्रम का हिस्सा बन जाने से लखपति और करोड़पति बन जाने का यह ख्वाब देखते रहते हैं। इस प्रकार का जरूरत से ज्यादा महत्वाकांक्षी होना भी युवाओं के लिए एक समस्या बन चुका है। आजकल निम्न वर्गीय नौकरी पेशा माता-पिता इतने व्यस्त भरी जिंदगी को जीते हैं कि वह अपने बच्चों के भविष्य को थी नकारते चले जाते हैं वह खुद को भी समय नहीं दे पाते हैं और अपने पैसे के बल पर अपने बच्चों की जरूरतें पूरी करने के लिए यह भी नहीं पूछते हैं कि उनका बेटा या बेटी यह सारे पैसे कहां खर्च करने वाला है और कई बार ऐसा होता है बच्चे रोज-रोज माता पिता से पैसे लेकर माता पिता को ही कंगाल कर देते हैं और कई गैर जिम्मेंदार माता-पिता जैसी भी परिस्थिति हो उनकी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए बस पैसे दिए जाते हैं और जब एक वक्त आता है माता-पिता पैसे नहीं दे पाते हैं तो युवा वर्ग बाहर तलाशने लगते हैं अपनी जरूरतों को जिसका परिणाम इतना बुरा होता है जब उन्हें होश आता है तब तक जिंदगी बर्बाद हो चुकी होती है। ब्रांडेड जूते, कपड़े, सिगरेट, शराब, जुआ यह सब धीरे-धीरे उनकी आदत बनने लगती है लेकिन जब उनके इस लगातार बढ़ते जेब खर्च पर माता-पिता विरोध करते हैं तो बच्चे भी पैसा कमाने की तरकीब में लग जाते हैं और सोचते हैं जल्दी से जल्दी पैसा आ जाए तो माता-पिता को भी खुशीं दे, इसलिए अधिक लालच के चक्कर में युवा लूट, डकैती, चोरी इत्यादि में लिप्त हो जाते हैं लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि ख्वाहिशें सिर्फ युवाओं की ही ऊंँची होती है या सारा दोष उन्हीं का होता है माता-पिता तो कहीं ना कहीं लापरवाही जरूर करते हैं। मध्यमवर्गीय परिवार सुख सुविधाओं की चीजें जुटाकर मॉडर्न या अमीर होने का दिखावा करते हैं यही माता-पिता की आदत बच्चों में भी आने लगती है और अपने दोस्तों, रिश्तेदारों के सामने खुद को अमीर समझने का स्वांग रचते हैं इनके पास इतना पैसा हो जाता है टॉप मॉडल की कार और बैंक खाते पर इतनी रकम हो जाती है इसमें पूरी जिंदगी ऐसो आराम से कट जाती है बस यही सपने पालते हैं आज के युवा और इसे पाने की खातिर कोई भी अपराधिक कदम उठाने के लिए भी तैयार हो जाते हैं। इन सब पर लगाम कसनी चाहिए इस बारे में देश के प्रत्येक परिवार और प्रत्येक नागरिक को सोचने की बहुत जरूरत है वरना परिणाम बुरे हो सकते हैं और ज्यादा पाने की लालच में इंसान अमीर बनने की बजाय मौत को गले लगाने लगेगा। युवाओं को समझने की बेहद आवश्यकता है जितना उनके पास है उतने में खुश रहना सीखना चाहिए माता-पिता की पैसों को बर्बाद ना करके एक सीमित दायरे में रहकर अपने सपनों को पूरा करना चाहिए ज्यादा ऊंचे ख्वाब देखना भी युवाओं के पतन का कारण बनता है इससे बचने का प्रयास करें।

पूजा गुप्ता
मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश)

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