लखनऊ/अयोध्या 22 जनवरी 2023 (सू0वि0)ः- सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा राज्य के कटक में एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। इनके माता पिता के 14 संतान थी, जिसमें 6 लड़की व 8 लड़कें तथा लड़कों में इनका पांचवा स्थान था तथा मूल रूप से 24 परगना जिला पश्चिम बंगाल के निवासी थे तथा इनके पिता कटक के जाने माने वकील एवं सम्भ्रांत नागरिक थे। अपनी स्नातक की पढ़ाई के समय कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कालेज से छात्रों के सही मांग को रखने के कारण कालेज से निकाल दिया गया था। इस कारण इन्होंने अपने सिद्वांत से कोई समझौता नही किया तथा पुनः उसी कालेज में 1918 में दाखिला लेकर दर्शन शास्त्र में सम्मानित स्नातक डिग्री प्राप्त की।
भारतीय मनीषी एवं दर्शन का इन पर व्यापक प्रभाव था इसके कारण वर्ष 1916 से 1917 तक बोधगया, काशी, प्रयाग, अयोध्या, वृन्दावन, हरिद्वार आदि स्थानों का भ्रमण किया था तथा उस समय के स्थापित आचार्यो महंतों से व्यापक चर्चा भी की थी। नेता जी ने देखा कि अध्यात्मिकता का मात्र ऊपरी ढांचा रह गया। (इसका सार तत्व एवं वेदांत का तत्व नही है,) जितने साधु सन्यासी मिले उन सबने छोटे बड़े ग्रन्थों की टीकायें सुना दी, पर उनके मूल तथ्य एवं व्यवहारिक पक्ष पर कोई बात नही रखी तथा उनके अन्दर देशकाल की परिस्थिति के अनुसार (कोई कार्य करने की प्रवृत्ति या प्रेरणा) भी नही दिखी। इस कारण नेता जी का धार्मिक यात्रा से मोहभंग हो गया तथा उन्होंने पुनः आकर कटक में अपने माता-पिता से मुलाकात की तथा वचन दिया कि जो माता पिता एवं बड़े भाई शरद चन्द्र जी कहेंगे वही मैं करूंगा। उस समय उन्होंने छोटी बड़ी परीक्षायें देनी शुरू की तथा भारतीय टिटोरियल आर्मी में भर्ती हो गये तथा इनका सपना सेना में आने का तथा एक अनुशासिक राष्ट्रभक्त राष्ट्रसैनिक बनने की प्रेरणा थी तथा उसी वर्ष 1919 में बी0ए0 की डिग्री प्राप्त किया तथा कलकत्ता विश्वविद्यालय में दूसरा स्थान था तथा उसी वर्ष 15 सितम्बर 1919 को आईसीएस की परीक्षा की तैयारी करने के लिए इंग्लैंड चले गये तथा अपनी क्षमता एवं मेहनत के बल पर वर्ष 1920 में आईसीएस की परीक्षा पास की तथा पूरे भारतीय कंटीनेंट में चैथा स्थान प्राप्त किया, पर इनके दिमाग में राष्ट्रीय सेवा करने तथा देश को त्याग एवं बलिदान के आधार पर आजाद कराने की इच्छा और बलवती हो गयी तथा अपने आप को राष्ट्र को समर्पित करने के लिए अपने भाई शरद चन्द्र से आईसीएस की नौकरी छोड़ने के विषय में राय मांगी तथा 22 अप्रैल 1921 को आईसीएस से त्याग पत्र देकर तत्कालीन बंगाल के प्रमुख समाजसेवी देशबन्धु चितरंजन दास से मुलाकात की तथा उसी वर्ष 20 जुलाई को महात्मा गांधी जी से तथा गुरूदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर जी से मुलाकात की और उसके बाद कलकत्ता के मेयर के चुनाव में भाग लिया तथा कलकत्ता महापालिका के 1922 में मुख्य कार्यकारी अधिकारी/मेयर के रूप में काम किया तथा कलकत्ता महापालिका के कार्य प्रणाली को बदलकर एक आदर्श प्रशासनिक इकाई बना दिया तथा आजादी के आंदोलन में कूद गये तथा तेजी से कार्य करने लगे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के डा0 हेडगेवार, गुरू जी, प्रोफेसर राजेन्द्र उर्फ रज्जू भईया, हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी, हमारे लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी आदि ने आत्मत्याग के सिद्वांत को अपनाकर राष्ट्रसेवा कर रहे है (तथा आज कल का उदाहरण न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न ने पद छोड़ने का ऐलान किया है) तथा आज के राष्ट्र नायकों के अनुवायियों को अपने राष्ट्रनायक एवं नेता जी के विचारों को अपनाने की परम आवश्यकता है तथा मैं व्यक्तिगत जीवन में वर्षो से अपना रहा हूं। (आत्मत्याग सिद्वांत का मूल तत्व यह है कि इसमें व्यक्ति अपने लिए कुछ नही करता सब कुछ राष्ट्र एवं समाज के लिए करता है तथा उसका जीवन एक आदर्श सन्यासी एवं पूर्ण रूप से बैरागी का होता है। यह बात हमारे वेदांत में और गीता के तीसरे अध्याय के 20वें आदि श्लोकों में उल्लेखित है।)
सुभाष चन्द्र बोस जी के जीवन से प्रेरणा मिलती है कि माता-पिता के ज्यादा संतान होने से कोई बाधा नही होगी, केवल संस्कार का न होना ही बाधा है। जैसे नेता जी का परिवार गांधी जी परिवार, टैगोर जी का परिवार आदि का व्यापक होते हुये भी संस्कार के कारण अपने-अपने क्षेत्रों में प्रभावशाली तथा राष्ट्र एवं राष्ट्र भक्ति को समर्पित है। आज लोग पद के लिए, सोहरत के लिए लगभग 98 प्रतिशत सब कुछ समर्पित कर देते है, इसमें अपना आचरण संस्कार एवं विचार भी शामिल है, पर सिद्वांत वाले व्यक्ति हमारे नेता जी, मोदी जी, योगी जी आदि की तरह कार्य करते है, जिसे हमें उनके त्याग, सोच एवं पराक्रम को बढ़ाने में मदद करनी चाहिए एवं खुद भी अपनाना चाहिए।
अयोध्या में नेता जी का गुमनामी बाबा के रूप में चर्चा आता है तथा उसी तरह अंग्रेजी बोलना, कपना पहनना आदि प्रमुख है इसकी जांच न्यायामूर्ति लिब्राहन द्वारा की गयी थी, इनके अंग वस्त्र आदि अयोध्या संग्रहालय में है पर इस पर मैं कोई टिप्पणी नही कर सकता, पर मेरा कुछ विश्वास है। सौभाग्य से न्यायामूर्ति जी से मिलने का मौका मिला था।
नेता जी का नारी सशक्तीकरण के प्रबल पक्षधर थे, कारण कहते थे कि नारी संतान पालन करने के रूप में मानव जाति के निर्माण में प्रथम है पर परिवार में संस्कार तथा घर को मंदिर बनाना तथा हमारी सांस्कृतिक परम्परा को बनाये रखने में केवल नारी का ही योगदान है। मां अन्नपूर्णा के रूप में भोजन, प्रसाद बनाना तथा अपने परिवार को खिलाना उसका प्रमुख रूप देवी मां जगत जननी के रूप में स्थापित करती है तथा नारी पूजन करने से  देवता का वास होता है। यह पूरे बंगाल नही पूरे भारत में इसको प्रचारित करना है तथा विश्व के पटल पर ले जाना है। नेता जी पर गौतमबुद्व एवं पश्चिमी दर्शनिक श्री B. रसेल का भी व्यापक प्रभाव था। नेता जी ने कहा करते थे कि जीवन निश्चय ही सम्पूर्ण रूप से दुःखभरा है, जिससे सब कोई बचना चाहता है पर कोई बचता नही है, पर मेरा विश्वास है कि केवल कोई निष्कलंक साधु अथवा साधुता का वास्तविक आचरण करने वाला ही व्यक्ति इससे बच सकता है। इसी तत्व का मैं वरण करता हूँ और अपनाता हूं।
आगे नेता जी कहते है पराधीन जाति या समाज का एक बहुत बड़ा अभिशाप है कि उसे अपने संग्राम में सिद्वांत की लड़ाई में बाहरी लोगों की अपेक्षा अपने ही लोगों से लड़ना पड़ता है, जो तथा कथित ईमानदारी, राष्ट्रीयता एवं मानवता का उपदेश देते है। हमें अपने सिद्वांतों पर भगवान श्री कृष्ण की तरफ अटल होकर कर्तव्यपठ पर राष्ट्र के निर्माण के लिए भारत को आजादी के लिए कार्य करना चाहिए, इसी क्रम में नेता जी ने कहा था कि ‘‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा‘‘ इस महान राष्ट्र भक्त को सादर नमन और मेरा उनके चरण में प्रणाम।
सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए उन्हें इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय भेजा गया था। ये किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं था कि अंग्रेजों के शासन में जब भारतीयों के लिए किसी परीक्षा में पास होना तक मुश्किल होता था, तब नेताजी ने भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में चैथा स्थान हासिल किया। उन्होंने पद संभाला लेकिन भारत की स्थिति और आजादी के लिए सब छोड़कर स्वदेश वापसी की और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गए। नेताजी और महात्मा गांधी के विचार कभी नहीं मिले लेकिन दोनों ही नेताओं की मंशा एक ही थी भारत की आजादी। महात्मा गांधी उदार दल के नेता थे और सुभाष चंद्र बोस क्रांतिकारी दल का नेतृत्व कर रहे थे। नेताजी ने अपनी सेक्रेटरी एमिली से शादी की थी जो कि ऑस्ट्रियन मूल की थीं। उनकी अनीता नाम की एक बेटी भी हैं, जो जर्मनी में अपने परिवार के साथ रहती हैं। देश की आजादी के लिए सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिंद सरकार की स्थापना की और आजाद हिंद फौज का गठन किया। साथ ही  उन्होंने आजाद हिंद बैंक की भी स्थापना की। दुनिया के दस देशों ने उनकी सरकार, फौज और बैंक को अपना समर्थन दिया था। इन दस देशों में बर्मा, क्रोसिया, जर्मनी, नानकिंग (वर्तमान चीन), इटली, थाईलैंड, मंचूको, फिलीपींस और आयरलैंड का नाम शामिल हैं। इन देशों ने आजाद हिंद बैंक की करेंसी को भी मान्यता दी थी। फौज के गठन के बाद नेताजी सबसे पहले बर्मा पहुंचे, जो अब म्यांमार हो चुका है। यहां पर उन्होंने नारा दिया था, तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा। देश आजादी की ओर था। साल 1938 में सुभाष चंद्र बोस को राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष भी निर्वाचित किया गया। उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया। एक साल बाद 1939 के कांग्रेस अधिवेशन में गांधी जी के समर्थन से खड़े पट्टाभि सीतारमैया को नेताजी ने हरा दिया। इसके बाद गांधी जी और बोस के बीच की अनबन बढ़ गई तो नेताजी ने खुद से कांग्रेस पार्टी छोड़ दी। उन दिनों दूसरा विश्व युद्ध हो रहा था। नेताजी ने अंग्रेजो के खिलाफ अपनी मुहिम तेज कर दी। जिसके कारण उन्हे घर पर ही नजरबंद कर दिया गया लेकिन नेताजी किसी तरह जर्मनी भाग गए। यहां से उन्होंने विश्व युद्ध को काफी करीब से देखा। दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने पर नेताजी ने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी मुहिम तेज कर दी। जिसके कारण उन्हें घर पर ही नजरबंद कर दिया गया, लेकिन नेताजी किसी तरह जर्मनी भाग गए और वहां से अपनी मुहीम जारी रखी। नेताजी एक नाटकीय घटनाक्रम में 7 जनवरी, 1941 को गायब हो गए और अफगानिस्तान और रूस होते हुए जर्मनी पहुंचे। 9 अप्रैल, 1941 को उन्होंने जर्मन सरकार को एक मेमोरेंडम सौंपा जिसमें एक्सिस पावर और भारत के बीच परस्पर सहयोग को संदर्भित किया गया था। सुभाषचंद्र बोस ने इसी साल नवंबर में स्वतंत्र भारत केंद्र और स्वतंत्र भारत रेडियो की स्थापना की। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी उन्हें बहुत मानते थे। उन्होंने नेताजी को देशभक्तों के देशभक्त की उपाधि से नवाजा था। दिल्ली में संसद भवन में उनका विशालकाय पोर्ट्रेट लगा है तो पश्चिम बंगाल विधानसभा भवन में उनकी प्रतिमा लगाई गई है। सुभाष चंद्र बोस की 18 अगस्त 1945 को विमान हादसे में रहस्यमयी ढंग से मौत हो गई थी। नेताजी ने उस विमान से ताइवान से जापान के लिए उड़ान भरी थी। नेताजी की मौत आज भी लोगों के लिए पहेली बनी हुई है।
नोट-लेखक पूर्व में भारत सरकार और वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार के प्रथम श्रेणी के अधिकारी है तथा इन्होंने बान प्रस्थ आश्रम के आचरण एवं विचार को अपना लिया है तथा ईस्कान के पैट्रान भी है तथा अयोध्या में साधनाश्रम अयोध्या धाम के सहसंस्थापक में एक है। पत्रकारों द्वारा सूर्य नाम दिया है तथा संतो द्वारा वेदांती का नाम।
जय राष्ट्रवाद, जय श्री राम, जय हनुमान जी।
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