*"गरीबों को खाना"*

सभी   चाहते   हैं   वतन   को   बनाना।
मगर  झूठ  का   है  यहां  ना  ठिकाना।।

पकौड़े   कहीं    चाय   जो   बेचते   हों।
उन्हें   राजनीति   कभी   ना    बताना।।

मेरे    देश     में     रामराज्य     जरूरी।
मगर  देवी  सीता  को  मत भूल जाना।।

जहां  आम  भी  होते   लंगड़े   वहां  से।
किसी  चोचलेबाज  को  मत  जिताना।।

जिन्हें सिर्फ कुर्सी व  सत्ता से  मतलब।
वे  शिक्षा  को  बेचेंगे  हरगिज बचाना।।

जिन्हें कुछ नया करना आता  नहीं  है।
उन्हें  सिर्फ  आता  है  उंगली  उठाना।।

न  भूलो  लगी   पेट  में  आग  जिनके।
कठिन है  उन्हें  देर  तक  रोक  पाना।।

मेरे   देवताओं   के  घर  तुम  बनाओ।
करो बंद लोगों का पर दिल  दुखाना।।

लगी  आग  बाजार  सड़कें  हैं  महंगी।
कि सीना दिखाकर भरो तुम खजाना।।

दोनों को  क्या  है  जरूरी  तो समझो।
अमीरों  को  योगा,गरीबों  को  खाना।।...*"अनंग"*

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