विविध उत्पादन एवं उनके विज्ञापनों के लिए भी हिन्दू देवी-देवताओं का भारी मात्रा में उपयोग किया जाता है । निजी (प्राईवेट) उत्पादकों समान ही अब सरकारी विज्ञापनों द्वारा भी देवी-देवताओं का अनादर किया जाता है । चुनाव आयोग के श्री गणेश एवं मूषक का उपयोग मतदार पहचानपत्रों की प्रसिद्धी के लिए भी विज्ञापन, एड्स जनजागृति मोहिम के हस्तपत्रक पर भगवान शिव-पार्वती का चित्र, इसके साथ ही व्यसनमुक्ति की मोहिम पर धूम्रपान के दुष्परिणाम बताने के लिए बह्मचारी साधु को नपुंसक दिखानेवाले विज्ञापन भी इसके कुछ चुनिंदा उदाहरण हैं । इस प्रकार अन्य धर्मियों के श्रद्धास्थानों को लेकर कोई भी विज्ञापन करने का दुस्साहस नहीं करते ।

 हिन्दू देवी-देवताओं के चित्रयुक्त पटाखों के संदर्भ में !

‘शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध एवं शक्ति एकत्र होती है’, इस अध्यात्मशास्त्रीय सिद्धांत के अनुसार देवता का चित्र (रूप) अर्थात प्रत्यक्ष देवता ही है । इसलिए पटाखों पर किसी देवता का चित्र होना अर्थात प्रत्यक्ष में उस देवता का भी वहां अधिष्ठित होना । ऐसे पटाखे जलाने से उस देवता के चित्र की चिथडे हो जाते हैं । फिर पटाखों पर विद्यमान देवताओं के चित्र पैरों तले आते हैं या फिर वे कूडेदान में चले जाते हैं । इससे धर्महानि होती है ।

इस संदर्भ में जनजागृति हो और सरकार द्वारा भी कार्यवाही हो; इसलिए महाराष्ट्र के आरक्षक महासंचालक को सनातन संस्था ने पत्र भेजा, ‘हिन्दू देवी-देवताओं के चित्रयुक्त पटाखे जलाने से देवी-देवताओं का अनादर होता है, इसलिए ऐसे पटाखों पर प्रतिबंध लगाएं ।’ इस पर आरक्षक महासंचालक के कार्यालय से सरकारी ढंग से उत्तर आया । ‘जो पटाखे बनाते हैं और जो जलाते हैं, उनका धर्म का अनादर करने का कोई उद्देश्य नहीं होता । जहां उद्देश्य नहीं, तो वहां अपराध कैसे होगा ? इसलिए ऐसे पटाखों पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते ।’ यही पत्र अन्य धर्मियों ने भेजा होता, तो आरक्षक महासंचालक न क्या ऐसा उत्तर दिया होता ? यह यदि अन्य धर्मियों के बारे में होता, तो शासन ने ही सर्वप्रथम उस पर प्रतिबंध लगा दिया होता ।

इसका उत्तम उदाहरण है केरल में सनातन संस्था की बहियों पर महाराष्ट्र भूषण छत्रपति शिवाजी महाराज का चित्र छापकर उसके नीचे ‘पांच मुसलमान पातशाहियों द्वारा हिन्दुओं पर राज्य किया जा रहा था । इससे हिन्दू धर्म संकट में था !’’, यह सत्य इतिहास लिखने से केवल एक मुसलमान ने धार्मिक भावना आहत करने की बात कहते ही केरल के हिन्दूविरोधी साम्यवादी सरकार ने उन बहियों पर प्रतिबंध लगाकर उन्हें जप्त कर लिया । इतना ही नहीं, अपितु इन बहियों को नि:शुल्क वितरण करनेवाले श्री. सुरेश भट नामक हिन्दू धर्माभिमानी को बंदी बनाकर आरक्षक कोठरी (पुलिस कस्टडी) में रखा । देखिए, सरकार अन्य धर्मियों की धार्मिक भावनाओं के विषय में कितनी जागृत है !

सरकार ऐसे ही अन्य धर्मियों के विषय में यह जागरूकता नहीं दिखाती । इसके पीछे ठोस कारण यह है कि अन्य धर्मीय स्वयं अपने धर्म के प्रति अत्यंत जागरूक और संवेदनशील हैं । इसलिए सरकार को भी तुरंत कार्यवाही करनी पडती है । इस तुलना में हिन्दू देवी-देवताओं के अनादर के विरोध में होनेवाले आंदोलनों में कितने हिन्दू सम्मिलित होते हैं ? यह मात्रा अत्यंत अल्प है । जैसे कि हमने देखा ही है डेन्मार्क के व्यंगचित्र के उपरांत इस्लामधर्मियों के श्रद्धास्थानों का अनादर करनेवाला एक भी चित्र नहीं निकला; परंतु हिन्दू देवी-देवताओं का अनादर करनेवाले चित्र आए दिन आते ही रहते हैं । बाजार में लाखों रुपयों में उनकी बिक्री भी हो रही है । आज भी बाजार में ‘तुलसी जर्दा’ के नाम से पैकट के वेष्टन पर संत तुलसीदासजी के चित्रवाली तंबाखू खुले आम बिक रही है । इमारत के कोनों में लोग थूके नहीं; इसलिए देवी-देवताओं के चित्रयुक्त ‘टाइल्स’ लगाए जाते हैं । इसके साथ ही बहुरूपिए देवी-देवताओं की वेशभूषा बनाकर, भीख मांगते हुए दिखाई देते हैं ।

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