कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के गांव लमही स्थित सुभाष भवन में आयोजित बैठक में विभिन्न मठों के मठाधीश, साधु-संत समेत कई सामाजिक कार्यकर्ता और इतिहासकार शामिल हुए। बैठक में संतों ने कहा कि अदालत का फैसला आने तक ज्ञानवापी में पूजा नहीं तो नमाज भी बंद होनी चाहिए। बैठक की अध्यक्षता कर रहे पातालपुरी मठ के महंत स्वामी बालक दास ने कहा कि ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंगनुमा आकृति मिली है। बावजूद इसके हमें हमारे आराध्य देवता की पूजा करने से रोका जा रहा है। वहीं मस्जिद में आम दिनों की तरह नमाज पढ़ी जा रही है। उन्होंने कहा कि यदि हमारी पूजा पर रोक है तो नमाज अदा करने पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए। संत परिषद ने मुस्लिम धर्मगुरूओं से अपील की कि वो सनातन धर्म के प्रमुख आस्था के केंद्र पर से अपना दावा छोड़ें। इतना ही नहीं धर्म परिषद में इस बात पर भी सहमति बनी की मक्का और मदीना के इमामों को पत्र लिखकर औरंगजेब के काशी के मंदिरों के विध्वंस के इतिहास को बताया जाएगा । काशी धर्म परिषद में जिन प्रस्तावों पर मुहर लगी उनमें वर्शिप एक्ट 1991 को खत्म करने और शिवलिंग के साथ छेड़छाड़ करने वालों पर तत्काल मुकदमा दर्ज करने की मांग की गई है।  प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान एक संत ने कहा कि जैसे ईसाइयों के लिए वेटिकन सिटी और मुस्लिमों के लिए मक्का-मदीना है, वैसे ही सनातन धर्म को मानने वाले के लिए काशी सबसे प्रमुख आस्था का केंद्र है। मक्का के 25 किलोमीटर परिधि के क्षेत्र में गैर मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है। वेटिकन सिटी में भी गैर क्रिश्चियन का प्रवेश वर्जित है। उसी तर्ज पर काशी में पंचकोशी क्षेत्र में गैर हिंदू के प्रवेश पर रोक लगाई जाए। साथ ही इस पूरे पंचक्रोशी क्षेत्र को मांस-शराब से मुक्त किया जाए।

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