गुणवत्तायुक्त उत्पादन के लिए वरदान हैं परम्परागत कृषि विधियॉरू:-  जिला कृषि अधिकारी, 

राजकीय कृषि बीज भण्डारों पर उपलब्ध है ढैंचा बीज

बहराइच 05 मई। जिला कृषि अधिकारी सतीश कुमार पाण्डेय ने बताया कि परम्परागत कृषि विधियों यथा कतार में बुवाई, फसल चक, सहफसली खेती, ग्रीष्म कालीन जुताई आदि कम लागत में गुणवत्तायुक्त उत्पादन प्राप्त करने के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इनको अपनाने से जल, वायु, मृदा व पर्यावरण प्रदूषण में व्यापक कमी होती है। कीट एवं रोग नियन्त्रण की के लिए बिना एकीकृत नाशी जीव प्रबन्धन (आई.पी.एम.) के अर्न्तगत भी इन परम्परागत विधियों को अपनाने पर विशेष बल दिया जाता हैं। रबी फसल की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई आगामी खरीफ फसल के लिये अनेक प्रकार से लाभकारी है। 
श्री पाण्डेय ने बताया कि ग्रीष्मकालीन जुताई मानसून आने से पूर्व मई-जून महीने में की जानी चाहिए। उन्होंने बताया कि ग्रीष्मकालीन जुताई करने से मृदा की सरचना में सुधार होता है जिससे मृदा की जल धारण क्षमता बढ़ती है जो फसलों के लिये अत्यन्त उपयोगी होती है। खेत की कठोर परत को तोड़कर मृदा की जड़ों के विकास के लिये अनुकूल बनाने हेतु ग्रीष्मकालीन जुताई अत्यधिक लाभकारी है। ऐसा करने से खेत में उगे हुए खर-पतवार एवं फसल अवशेष मिटटी मे दबकर सड़ जाते है तथा जैविक खाद में परिवर्तित हो जाते है जिससे मृदा में जीवांश की मात्रा बढ़ती है। ग्रीष्मकालीन जुताई से मृदा में छिपे हुए हानिकारक कीड़े मकोड़े उनके अण्डे लार्वा, प्यूपा एवं खरपतवारों के बीज गहरी जुताई के बाद सूर्य की तेज किरणों के सीधे सम्पर्क में आने से नष्ट हो जाते है। जिससे फसलों पर कीटनाशकों एवं खरपतवार नाशी रसायनों का कम उपयोग करना पड़ता हैं।
इसी प्रकार गर्मी की गहरी जुताई के उपरान्त मृदा में पाये जाने वाले हानिकारक जीवाणु, कवक, निमटोड एवं अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीव मर जाते है जो फसलों में मृदा जनित रोग के प्रमुख कारक होते है। निमटोड का नियंत्रण करने हेतु कीटनाशकों का प्रयोग खर्चीला होता है परन्तु ग्रीष्मकालीन जुताई से इनका नियंत्रण बिना किसी अतिरिक्त लागत के हो जाता है। मृदा में वायु संचार बढ़ जाता है जो लाभकारी सूक्ष्म जीवों के वृद्धि एवं विकास में सहायक होता है जिससे फसलों के गुणवत्तापूर्ण उत्पादन में लाभ होता है। मृदा में वायु संचार बढ़ने से खरपतवारनाशी एवं कीटनाशी रसायनों के विषाक्त अवशेष एवं पूर्व फसल की जड़ों द्वारा छोड़े गये हानिकारक रसायनों के अपघटन में सहायक होती है।
जिला कृषि अधिकारी श्री पाण्डेय ने जनपद के कृषकों को सलाह दी है कि फसलों में कीट/रोग नियंत्रण व अच्छा उत्पादन प्राप्त करने हेतु रबी फसल की कटाई के उपरान्त अपने खेतों में ग्रीष्मकालीन जुताई अवश्य करे। धान की बुआई/रोपाई करने से पहले हरी खाद हेतु ढैचा की बुआई समय से करें। श्री पाण्डेय ने बताया कि ढैंचा बीज रू. 54.65 प्रति कि.ग्रा. की दर से जनपद के समस्त राजकीय कृषि बीज भण्डारों पर उपलब्ध है जिस पर 50 प्रतिशत का अनुदान भी अनुमन्य है।
                         

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