उतरौला (बलरामपुर) क़ृषि बीज गोदाम प्रभारी डॉ जुगुल किशोर ने सरसों की खेती करने वाले किसानों को सचेत करते हुए कहा कि इस समय सरसों में माहू यानी चेपा कीट मुख्य रूप से लगने का ज्यादा डर रहता है।
इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ पीलापन लिए हुए हरे रंग के होते हैं जो झुंड के रूप में पौधों की पत्तियों, फूलों, डंठलों,फलियों में रहते हैं।यह कीट छोटा,कोमल शरीर वाला और हरे मटमैले भूरे रंग का होता है।
          बादल घिरे रहने पर इस कीट का प्रकोप तेजी से होता है,इसकी रोकथाम के लिए कीट ग्रस्त पत्तियों को प्रकोप के शुरुआती अवस्था में ही तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए। सरसों के नाशीजीवों के प्राकृतिक शत्रुओं जैसे इन्द्र गोपभृंग,क्राईसोपा,सिरफिड फ्लाई,का फसल वातावरण में संरक्षण करें।एजाडिरेक्टीन(नीम आयल)०,15प्रतिशत 2,5लीटर या डाई मेथोएट 30ईसी एक लीटर को 600-700लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से फसल को कीट से सुरक्षित रखा जा सकता है। सरसों में झुलसा रोग का प्रकोप अधिक हो सकता है,इस रोग से पत्तियों और फलियों पर गहरे कत्थ‌ई रंग के धब्बे बन जाते हैं जिनमें गोल छल्ले पत्तियों पर स्पष्ट दिखाई देते हैं, जिससे पूरी पत्ती झुलस जाती है।इस रोग पर नियंत्रण करने के लिए 2किग्रा0मैकोजेब 75प्रतिशत डब्लू पी,या 2किलोग्राम जीरम 80प्रतिशत डब्लू पी या 2किलोग्राम जिनेब 75प्रतिशत डब्लू पी या 3किलोग्राम कापर आक्सीक्लोराईड 50प्रतिशत डब्लू पी को 600-700लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
पहला छिड़काव रोग के लक्षण दिखाई देने पर और दूसरा छिड़काव 15से 20दिनों के अंतर पर करें।अधिकतम 4से 5बार छिड़काव करने से फसल को सुरक्षित रखा जा सकता है।
असग़र अली
उतरौला

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