चित्रकूट चित्त का प्रदेश - मोरारी बापू - मोरारी बापू की चित्रकूट से ऑनलाइन रामकथा का पाँचवा दिन चित्रकूट ब्यूरो चित्रकूट का कण - कण , पत्ता - पत्ता रामकथा है । पावन सलिला , पाप विनासनी , मोक्षदायिनी माँ मन्दाकिनी सभी तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ है । क्योंकि यह अनु रान की कर्मभूमि रही है । मानस में पाँच की महत्ता है जैसे पाँच माताएँ जिनने कौशल्या , कैकेई , सुमित्रा , सुनैना , मन्थर जिन्होंने स्थूल या सूक्ष्म में प्रकट किया है । चरित्र को अपनी खूबसूरती होती है जो उसे सबसे अलग बनाती है । भरत का चरित्र प्रेमधारा है । जिसमे स्थूल नही सूक्ष्मता की महिमा है।छिति जला पावक गगन समोरा , पच रचित अति अधम सरीरा में भी बताया गया है कि शरीर का निर्माण पञ्च तत्वो से हुआ है । आज कथा का भी पांचवा दिवस है और आज पचक हमे जगत की खोज नहीं करनी बल्कि स्वयं की खोज करनी है जगत की सेवा करनी है । हमारे जीवन का लक्ष्य प्रतिदिन कम से कम एक व्यक्ति को प्रसन्न रखना होना चाहिए , क्योंकि प्रेम मे देत भी अद्वैत हो जाता है । मनुष्य को निजता मे जीवन जीना चाहिए हरि व्यापक सर्वत्र L समाना । ये बाते मानस मर्मज्ञ मोरारी बापू द्वारा रानकथा के पाँचवे दिन कही । दीनदयाल शोध संस्थान के आरोग्यधाम परिसर चित्रकूट में रामकथा के 5 वे दिन मोरारी बापू ने कहा कि कोई सूत्र , कोई मन्त्र , एक शास्त्र , एक बालक जो हमें परम को राह दिखायें उसके कुल - मूल को न देखिये । केवट निषादराज भरत के नागदर्शन बने । जीवन के परन लक्ष्य को प्राप्त कराने में मागदर्शक कोई भी हो सकता है । जब कोई भगवान का दर्शन करना चाहता है , तो यह प्रभु के नाति – नाति के रूप के दर्शन की इच्छा रखता है । यह अच्छा है लेकिन अपेक्षा मात्र इरिमिलन में रुकावट है । ईश्वर जितना ज्यादा निरोह है उतना ज्यादा भक्त के लिये निरह है । सबकी प्राप्ति , सबका साक्षात्कार हरि चाहता है , तो हो जाता है । भजन की महिमा का बखान करते हुये उन्होंने कहा कि सबसे श्रेष्ठ भजन है निस्काम भजन मुझे तेरे सुमिरन मे आसू आये , आन्द आये वही भान है । मीरा को वृन्दावन के साधुओ ने पूछा कृष्ण आया - कृष्ण आया , तो मीरा ने कहा आनंद आया चित्रकूट तो मानस की राजधानी है यहाँ रामकथा जितनी भी हो कम है । अयोध्या और जनकपुर बुद्धि का प्रदेश है , चित्रकूट चित्त का प्रदेश है , लका अहकार का प्रदेश है आनद का सबध अगर कही है तो चित्त के साथ है मैं कहता हूँ आप सदा मुस्काराइयें कि आप चित्रकूट में है यहाँ श्री है ऐश्वर्य है , आनव है " चित्रकूट अति विचित्र सुदर बन महि पवित्र , पावनि पय सरित सकल नल निकदिनि । आनद अकारण होता है खुशी के कारण होते है , आनद के कोई कारण नहीं होते कथा के बितन में आगे बढ़ते हुए बापू ने कहा कि जो परम तत्व है , जो ब्रह्म है वह अनाम है - अनाम , अरूप , अक्रिय , अज्ञेय है । कोई कार्य - कारण न होते हुए भी अपने भक्तों के लिए जब अवतार लेकर अपना चरित्र दिखाते हैं , तब चार वस्तु होती है - नाम , रूप , लीला और भान । परम तत्व जब जग मगल के लिए अवतार धारण करता है , तब वह अनाम होते हुए भी उसके साथ नाम जुड़ जाता है । वह अरूप सोते हुए भी उसका रूप दिखाई देता है । अक्रिय होते हुए भी , यह लीला करता है वह जो करे , वो कर्म नहीं है लीला है- क्रीडा हैं कर्म का बोझ लगता है , क्रोडा निर्भार होती है । अक्रिय ब्रह्म हमारे लिए क्रिया का आरोप अपने पर ले लेता हैं और जिस भूमि पर वह लोला करता है , उस भूमि का नाम उसके चरित्र के साथ जुड जाता है -जिसे भाम कहते है । जो जगत को निर्भार करता है , ऐसा नाग भरत है । भरत जी का नाम इतना पवित्र है कि भरत नाम लेने से ही हमारे सारे पाप धुल जाते हैं । ' न ' माने भक्ति में जो रत है , वह भरत है और भारत का रूप , रान रूप है । भरत बिल्कुल राम जैसे ही दिखते हैं । भगवान राम वनवास पूर्ण करके जब वापस आते है और भरत को गले लगाते हैं 

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