बगुलापारा गांव के लोग बताते हैं कि चुनाव के समय ही नेताओं को जनता की दिक्कतें याद आती है. चुनाव पूरा होते ही फिर कोई इस समस्या के लिए जनता के पास नहीं आता. अभी तक आने-जाने के लिए लोग नाव का सहारा लेते थे, या फिर कोनीघाट पुल और बालजती पुल के जरिए होते हुए लंबा रास्ता लेना पड़ता था. जिनकी दूरी लगभग 20- 25 किलोमीटर की है.  

उत्तर प्रदेश के सीतापुर में ग्रामीणों ने अपने पैसों और अपनी मेहनत से लकड़ी का पुल बनाकर सिस्टम को आईना दिखा दिया है. ग्रामीणों का कहना है कि गांव को दूसरे गांवों से जोड़ने के लिए और आवागामन आसान करने के लिए उनको एक पुल की जरूरत थी. जनप्रतिनिधियों के संज्ञान में भी यह बात थी, लेकिन कोई सुनने के लिए तैयार ही नहीं था. आखिरकार थक-हार कर दर्जनों ग्रामीणों ने मिल कर एड़ी-चोटी का जोर लगा बांस और लकड़ी से खुद ही पुल तैयार कर सिस्टम को ठेंगा दिखा दिया.  ग्रामीणों के हौसले की लोग सराहना कर रहे हैं. 

सीतापुर के सिधौली तहसील के बगुलापारा घाट पर पुल बनने की राह ताक रहे ग्रामीणों को जब जनप्रतिनिधियों से उम्मीद खत्म हो गई, तो ग्रामीणों ने खुद ही बीड़ा उठाया और बल्ली और बांस के सहारे लकड़ी का पुल बनाकर आने-जाने का रास्ता तैयार कर लिया. इस पुल से लगभग 50 गांवों के लोगों को तहसील मुख्लाय या जिला मुख्यालय जाने के लिए 20 से 25 किलोमीटर की दूरी कम तय करनी पड़ेगी 

यह पुल गोंदलामऊ ब्लॉक के कुर्सी से जानकीपुर जाने वाली सड़क के पास सरायन नदी पर स्थित बगुलापारा घाट पर बनाया गया है. इस घाट पर पुल बनने से पहले राहगीरों के साथ-साथ गाड़ियों को भी काफी लम्बे रास्ते से तहसील मुख्यालय और जिला मुख्यालय तक जाना पड़ता था. पुल के बनने से किसानों, छात्रों, व्यापारियों और साग-सब्जी ढोने वाले लोगों को भी काफी सहूलियत मिल रही है. 


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