त्याग और साधना सफलता की कुंजी
जिस प्रकार भगवान की भक्ति प्राप्त करने के लिए मनुष्य को संसार के अस्थायी सुखों का त्याग करना पड़ता है। उसी प्रकार विद्यार्थी को अपने जीवन में सफलता पाने के लिए कई सुख सुविधाओं का त्याग करना पड़ता है।
भक्ति मार्ग में भक्त अपना पूरा ध्यान केवल ईश्वर की ओर केन्द्रित करता है। वह मोह-माया, आलस्य और विषय-वासना से दूर रहकर केवल साधना में लीन रहता है। इसी प्रकार एक छात्र का जीवन साधक के समान होता है। यदि वह अच्छे अंक प्राप्त करना चाहता है, तो उसे अपने मनोरंजन, आराम, आलस्य को त्याग कर मेहनत और एकाग्रता का मार्ग अपनाना पड़ता है।
आज के समय टीवी, मोबाइल और खेलकूद का आकर्षण विद्यार्थियों को भटकाता है, परन्तु जो विद्यार्थी अपने लक्ष्य को सर्वोपरि मानते हैं, वह इन क्षणिक सुखों को त्यागकर अध्ययन का अपना धर्म बना लेते हैं। त्याग ही उनकी शक्ति बन जाता है।
जैसे एक साधक कठिन तपस्या करके ईश्वर का साक्षात्कार करता है, वैसे ही एक परिश्रमी छात्र कठिन मेहनत और अनुशासन से परीक्षा में सफलता की सीढी बन जाते हैं।
अतः यह सत्य है कि चाहे भगवान की भक्ति हो या विद्यार्थी का अध्ययन दोनों ही मार्ग में त्याग और परिश्रम आवश्यक है। सुखों का त्याग ही हमें हमारे वास्तविक लक्ष्य तक पहंुचाता है।
- संतोष तिवारी, ओएसडी, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

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