राजकुमार गुप्ता 
मथुरा।आज अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस है। भारत में इसकी शुरुआत साल 1886 में हुई थी। यह दिन मजदूरों के महत्व, सम्मान, एकता और अधिकारों के समर्थन में मनाया जाता है। श्रमिकों और श्रमिक आंदोलन द्वारा किए गए संघर्षों और उपलब्धियों को याद कर इस क्षेत्र में विशेष योगदान करने बालों का सम्मानित किया जाता है। उनके अमूल्य योगदान और श्रमिक वर्ग के चल रहे संघर्षों के लिए एक वैश्विक श्रद्धांजलि भी है। इस साल की थीम बदलते माहौल में काम पर सुरक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित करने पर केंद्रित है। किसान और मजदूर हमारे समाज का वह तबका है जिस पर देश की समस्त आर्थिक उन्नति टिकी  है । ये दोनों मानवीय श्रम का सबसे आदर्श उदाहरण हैं  ! आज के मशीनी युग में भी इनकी महत्ता कम नहीं हुई बल्कि बढ़ गयी है । उद्योग व्यापार, कृषि , मकान दुकान , कोठी से लेकर  पुल एवं सड़कों का निर्माण जैसे तमाम काम इनके बिना हो ही नहीं सकते। किसान और मजदूर एक तरह से देश की  रीढ़ हैं, हमारे भोजन के लिए अथक परिश्रम करते हैं, भीषण परिस्थितियों में काम करते हैं। जिन आलीशान कोठियों में लोग आराम करते हैं, उनको बनाने वाले झुग्गियों में, छोटे मोटे मकान और रूखी सूखी खाकर भी खुश रह लेते हैं। किसान, मजदूर  दूध घी फल जैसी तमाम खाने पीने की वस्तुओं को अपने बच्चों तक को नहीं खिला पिला पाता है और उनको देश उपलब्ध कराकर अपना जीवन जैसे तैसे काट ले जाते हैं। 
आज बिचौलिए मालामाल हैं लेकिन आजादी के 75 सालों में मजदूरों और किसानों का भाग्य रेखा नहीं बदली! इनके बच्चो को अच्छी शिक्षा, रोजगार की समस्या कम नहीं हुई। गरीब अमीर की खाई चौड़ी हो गई है। श्रमिक दिवस को औपचारिक तौर पर न मनाकर हमें प्रतिज्ञा करनी है कि जिम्मेदार नागरिक और समाज के सदस्य के रूप में हम सभी श्रमिकों के अधिकारों और सम्मान के लिए पीछे नहीं रहेंगे, अपने आस पास काम करने वाले श्रमिकों को पूरा सम्मान देंगे, उनकी मदद करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि उनके साथ सभी जगह निष्पक्ष और उचित व्यवहार हो, कहीं कोई शोषण न हो। इसी तरह किसानों के लिए हमें सोचना होगा कि उनको भी फसलों का लाभकारी मूल्य मिले, उनके बच्चे भी अच्छे स्कूलों में पढ़ सकें, वह भी बेटियों की अच्छी शादी ब्याह कर सकें।

रामवीर सिंह तोमर
सामाजिक चिंतक
एवम किसान नेता

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