राजकुमार गुप्ता 
मथुरा।बलदेव। ब्रज के होली महोत्सव के पर्व के रूप में श्री दाऊजी महाराज का विश्व प्रसिद्ध हुरंगा देखने भारी संख्या मे जनसैलाब मंदिर प्रांगण में उमड़ पड़ा। हर ओर होली का उत्साह व जोश नजर आया। सुबह से ही भारी भीड़ मन्दिर की ओर उमड़ती रही। हुरंगा में नंगे बदन पर तडातड कोड़ों की मार देखने के लिए हजारों लाखों देसी विदेशी श्रद्धालु उमड़ पडे। हुरंगा के नायक शेषावतार श्री दाऊजी महाराज व रेवती मैया रहे।  दाऊजी के‌ हुरंगा की अनूठी परंपरा है।  कवि की कल्पना ने कहा है देख देख या ब्रज की होरी ब्रह्मा मन ललचाए।  ब्रज की होली भगवान श्रीकृष्ण में केंद्रित है,  तो दाऊजी का हुरंगा उनके बड़े भ्राता श्री बलदेव जी पर केंद्रित है।  हुरंगा में पुरुषों गोप समूह को महिलाओं गोपिका स्वरूप द्वारा प्रेम से भीगे पोतने कोड़ों की मार नंगे बदन पर उनके कपड़े फाड़ कर तडातड देना शुरू किया तो दर्शक आनंदित हो गये।  इस दृश्य को देखकर श्रद्धालु  आनंदित हो गये। हुरंगा ब्रज की होली का मुकुट मणि है कहावत है सब जग में होली ब्रज में होरा । हुरंगा का आयोजन दोपहर 11 बजे से मंदिर प्रांगण में हुआ। हुरंगा खेलने के लिए ब्रज की गोपिका स्वरूप महिलाएं आकर्षक पहनावे में परंपरागत लहंगा फरिया आभूषण पहनकर अपने झुंड के साथ द्वारों से मंदिर में होली गीत गाते हुए आयी।  श्रद्धालु प्रात: से ही छतों पर एकत्र हो गये। मंच पर श्री कृष्ण बलराम सखाओं के साथ अबीर गुलाल उड़ाते नजर आये। हुरंगा में गोस्वामी श्री कल्याण देव जी के वंशज सेवायत पांडेय समाज ही खेलते हैं। समाज गायन के स्वर होली आई रे श्याम सुध लीजो के स्वर सुनाई दिये। महिलाएं नंद के तोते गोरी जब खेलूं मेरी पोहची में नग जडवाय स्वर में गाती हुई उलाहना दे रही थी। महिलायें पुरुषों के बदन से कपड़े फाड़ फाड़ कर उन्हें प्रेम से टेशू के रंग में भिगोकर उनका कोड़ा बनाकर नंगे बदन पर तडातड प्रेम से प्रहार कर रही थी, पुरुष आनंदित हो कर कोड़ा की मार खा कर नाचते गाते नजर आये। हुरियारिनें यह नहीं देखती कि पिटने वाले जेठ है, ससुर है। इसलिए कहावत है फागुन में जेठ कहे भाभी। छतों से गुलाल फूलों की पंखुड़ियां उड़ता नजर आया।  आसमान इंद्रधनुषी हो गया। गुलाल लाल भरे बदरा का दृश्य दिखाई दिया। हुरंगा में‌ हुरियारिनें झंडा छीनने का प्रयास करती नजर आयी तो पुरुष उसे बचाने का प्रयास कर रहे थे। अंत में‌‌ महिलायें झंडा छीनने में सफल रही, महिलायें गाती है हारे रे रसिया जीत चली ब्रज नारि कह‌ कर  पुरुषों पर उलाहना देती है,  इसी के साथ हुरंगा संपन्न हो जाता है।  सभी अपने-अपने घरों को प्रस्थान करते हैं।   

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