राजकुमार गुप्ता 
मथुरा| गोकुल में सोमवार की सुबह करीब साढ़े 5 बजे होलिका दहन के बाद  आपस में जौ बांटकर होली की शुरुआत हुई तथा धूल गुलाल और रंगों से होली का महोत्सव गोकुल,महावन सहित ब्रज के गांवों में धूमधाम से मनाया गया| 
ब्रज के 40 दिवसीय होली महोत्सव की धूम वृंदावन में श्री बांकेबिहारी जी मंदिर से होकर नंदगांव - बरसाना की लड्डू मार , लठा मार होली  रमणरेती की प्राकृतिक पुष्पों और अबीर गुलाल,टेसू के रंगो की होली गोकुल की छड़ी मार  होली,दाऊजी हुरंगा की कोड़े मार होली का सामूहिक स्वरूप गांव गांव पहुंचा और बड़ी धूमधाम से  धूल,गुलाल तथा रंगों से होली का पर्व मनाया गया|
 बताते हैं कि  होलिका दहन के बाद 'रंग उत्सव' मनाने की परंपरा भगवान श्रीकृष्ण के काल से प्रारंभ हुई। तभी से इसका नाम फगवाह हो गया, क्योंकि यह फागुन माह में आती है। कृष्ण ने राधा पर रंग डाला था। इसी की याद में रंग पंचमी मनाई जाती है। श्रीकृष्ण ने ही होली के त्योहार में रंग को जोड़ा था।

गोकुल की होली छड़ीमार होली में झलकता है स्नेह
गोकुल की छड़ीमार होली खेलने के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु आते हैं। इस उत्सव का आयोजन यहां सदियों से चला आ रहा है। प्राचीन परंपराओं का निर्वहन करते हुए हर साल यहां छड़ीमार होली का आयोजन किया है। छड़ीमार होली के दिन कान्हा की पालकी और पीछे सजी-धजी गोपियां हाथों में छड़ी लेकर चलती हैं।छड़ीमार होली की शुरुआत सबसे पहले नंदभवन में ठाकुरजी के समक्ष राजभोग का भोग लगाकर होती है। हर साल होली खेलने वाली गोपियां 10 दिन पहले से छड़ीमार होली की तैयारियां शुरू कर देती हैं। यहां गोपियों को दूध, दही, मक्खन, लस्सी, काजू बादाम खिलाकर होली खेलने के लिए तैयार किया जाता है। फिर फाल्गुन शुक्ल की द्वादशी तिथि को धूमधाम से छड़ीमार होली का आयोजन होता है।

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