जौनपुर। अश्लीलता और फूहड़पन ने छीन लिया होली पर्व का अपनापन: पत्रकार सूरज विश्वकर्मा 

पारंपरिक होली गीत की जगह गूंज रहे फूहड़ और द्विअर्थी गीत..

गांव के चौपाल में बैठकर होली मनाने की परंपरा हो रही विलुप्त

मुंगराबादशाहपुर, जौनपुर। अश्लीलता और फूहड़पन ने छीन लिया होली पर्व का अपनापन..पारंपरिक होली गीत की जगह गूंज रहे फूहड़ और द्विअर्थी गीत..गांव के चौपाल में बैठकर होली मनाने की परंपरा हो रही विलुप्त। जाति व धर्म से परे ऊंच नीच का भेदभाव किए बगैर हर तबके के लोग एक दूसरे के साथ प्रेम के पूर्वक पारंपरिक होली गीत गाया करते थे।


लेकिन आधुनिकता के इस युग में यह परंपरा अब लगभग विलुप्त होने के कगार पर है। पहले पारंपरिक होली गीतों के दौरान तरह तरह के शब्द बनाकर एक दूसरे पर मजाक के लिए छीटा कशी की जाती है। गीतों में भी प्रेम और अपनापन का भाव होता था, लेकिन आज के युवा वर्ग पर हावी आधुनिकता का रंग ने इन सभी परंपराओं को ध्वस्त करते हुए सिर्फ अश्लीलता को बढ़ावा देने का काम किया है। आज के इस व्यस्तता भरे युग में मानव पुरानी परंपराओं को भूल कर अपनी संस्कृति का नुकसान करने पर तुले हुए हैं। अब ना तो पहले वाले लोग रहे ना पहले वाली होली रही और ना ही पहले वाले होली के गीत रहे।वर्तमान में अधिकांश गायकों के द्वारा होली के गीतों के नाम पर श्रोताओं के बीच सिर्फ फूहड़ गीत के द्वारा अश्लीलता परोसा जा रहा है। एक दौर था जब गांव के बुजुर्गों के द्वारा गाए जाने वाले होली गीतों में भारतीय संस्कृति की झलक होती थी। ग्रामीण चौपाल में गाए जाने वाले पारंपरिक होली गीत होली खेले रघुवीरा अवध में,मोहन संग होली खेले राधा, होली खेल रहे नंदलाल बिरज में या फिर अन्य पुराने फिल्मों में बजने वाले होली गीत काफी कर्णप्रिय होते थे। वही वर्तमान में बजने वाले होली गीत के कारण घरों में बहू बेटियों के साथ बैठना भी मुश्किल हो जाता है होली के त्यौहार के दौरान अब प्रेम और सौहार्द की जगह सिर्फ अश्लीलता दिखाई पड़ती है। ढोल और मंजीरा के थाप पर बजने वाली होली गीत सुनने के लिए कान अब तरस जाते हैं. ऐसे में समाज को इस पर विचार करके होली की परंपरा को बचाने के लिए एक सार्थक पहल की आवश्यकता आन पड़ी है।

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